'हराम की बोटी'... दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों के योनि के एक हिस्से को यही नाम दिया गया है. वे बड़ी होकर 'भटके' न इसलिए इस हिस्से को काट दिया जाता है. इस अमानवीय प्रथा पर अब सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाने को कहा है.
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भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में मुसलमानों के दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों का खतना यह मानकर किया जाता है कि इससे वे बड़ी होने पर पति के अलावा किसी दूसरे पुरुष से शारीरिक संबंध नहीं बनाएंगी. इस परंपरा के मुताबिक, महिला को शारीरिक संबंध का आनंद लेने का अधिकार नहीं है. यदि उसका खतना होता है तो वह अपने पति के प्रति वफादार रहेगी और घर के बाहर नहीं जाएगी.
महिला खतना को अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटेशन कहते हैं. इसमें योनि के क्लिटोरिस के एक हिस्से को रेजर या ब्लेड से काट दिया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यह खतना चार तरह का हो सकता है- क्लिटोरिस के पूरे हिस्से को काट देना, कुछ हिस्सा काटना, योनि की सिलाई या छेदना. इस दर्दनाक और अमानवीय प्रथा से कई बार यौन संक्रमण संबंधी बीमारियां हो सकती है. मानसिक पीड़ा का असर सारी उम्र रहता ही है.
यहां आज भी होता है महिलाओं का खतना
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) या आसान भाषा में कहें तो महिला खतना पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोक के बावजूद दुनिया के कई देशों में यह एक हकीकत है. इसमें क्या होता है और यह कितने देशों में फैला हुआ है, चलिए जानते हैं.
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करोड़ों का खतना
दुनिया भर में लगभग 20 करोड़ महिलाओं और लड़कियों का खतना हुआ है. माना जाता है कि अफ्रीका में हर साल तीस लाख लड़कियों पर इसका खतरा मंडरा रहा है.
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कौन कौन प्रभावित
समझा जाता है कि तीस अफ्रीकी देशों, यमन, इराकी कुर्दिस्तान और इंडोनेशिया में महिला खतना ज्यादा चलन में है. वैसे भारत समेत कुछ अन्य एशियाई देशों में भी इसके मामले मिले हैं.
पुरानी बेड़ियां
औद्योगिक देशों में बसी प्रवासी आबादी के बीच भी महिला खतना के मामले देखे गए हैं. यानि नए देश और समाज का हिस्सा बनने के बावजूद कुछ लोग अपनी पुरानी रीतियों को जारी रखे हुए हैं.
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यहां होता है सबका खतना
जिन देशों में लगभग सभी महिलाओं को खतना कराना पड़ता है, उनमें सोमालिया, जिबूती और गिनी शामिल हैं. ये तीनों ही देश अफ्रीकी महाद्वीप में हैं.
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ऐसे होता है महिला खतना
महिला खतना कई तरह का होता है. लेकिन इसमें आम तौर पर क्लिटोरिस समेत महिला के जननांग के बाहरी हिस्से को आंशिक या पूरी तरह हटाया जाता है. कई जगह योनि को सिल भी दिया जाता है.
खतने की उम्र
लड़कियों का खतना शिशु अवस्था से लेकर 15 साल तक की उम्र के बीच होता है. आम तौर पर परिवार की महिलाएं ही इस काम को अंजाम देती हैं.
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खतने के औजार
साधारण ब्लेड या किसी खास धारदार औजार के जरिए खतना किया जाता है. हालांकि मिस्र और इंडोनेशिया जैसे देशों में अब मेडिकल स्टाफ के जरिए महिलाओं का खतना कराने का चलन बढ़ा है.
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धार्मिक आधार?
महिला खतने का चलन मुस्लिम और ईसाई समुदायों के अलावा कुछ स्थानीय धार्मिक समुदायों में भी है. आम तौर पर लोग समझते हैं कि धर्म के मुताबिक यह खतना जरूरी है लेकिन कुरान या बाइबिल में ऐसा कोई जिक्र नहीं है.
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खतने का मकसद
माना जाता है कि महिला की यौन इच्छा को नियंत्रित करने के लिए उसका खतना किया जाता है. लेकिन इसके लिए धर्म, परंपरा या फिर साफ सफाई जैसे कई और कारण भी गिनाए जाते हैं.
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विरोध की सजा
बहुत से लोग मानते हैं कि खतने के जरिए महिलाएं पवित्र होती हैं, इससे समुदाय में उनका मान बढ़ता है और ज्यादा कामेच्छा नहीं जगती. जो लड़कियां खतना नहीं करातीं, उन्हें समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जाता है.
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खतने के खतरे
महिला खतने के कारण लंबे समय तक रहने वाला दर्द, मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं, पेशाब का संक्रमण और बांझपन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कई लड़कियों की ज्यादा खून बहने से मौत भी हो जाती है.
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बड़ी कीमत
खतने के कारण उस महिला को मां बनने के समय बहुत सी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है. इसके कारण कई तरह की मानसिक समस्याएं और अवसाद भी हो सकता है.
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कमजोर कानून
बहुत ही अफ्रीकी देशों में महिला खतने पर प्रतिबंध है. लेकिन अकसर इस कानून को सख्ती से लागू नहीं किया जाता है. वहीं माली, सिएरा लियोन और सूडान जैसे देशों में यह कानूनी है.
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यूएन का प्रस्ताव
महिला खतने से कई अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन होता है. 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिला खतने को खत्म करने के लिए एक प्रस्ताव स्वीकार किया था.
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अपनी हालिया टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं का अपने शरीर पर अधिकार की वकालत की. केंद्र ने इस प्रथा पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका का समर्थन किया. कोर्ट में इस समुदाय के प्रतिनिधियों की पैरवी करते हुए सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह इस समुदाय की बुनियादी परंपरा है और कोर्ट इस समुदाय के धर्म से जुड़े अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. इस दलील का अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने विरोध किया. वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच से कहा, "इस प्रथा पर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कई अफ्रीकी देशों में रोक लग चुकी है. इस पर कानूनी प्रतिबंध लगना चाहिए."
चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर महिलाएं किसी प्रथा को स्वीकार न करें तो क्या उन पर उसे थोपा जा सकता है? उन्होंने कहा, "अगर वे इसके विरोध में हों तो क्या आप उन पर इसे थोप सकते हैं?" जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "अपने शरीर की अखंडता के महिला के अधिकार का हनन क्यों हो?" बेंच ने कहा कि वह इस मामले पर जुलाई में ही फिर सुनवाई करेगी और आदेश देगी.
साहियो नाम की एक गैर सरकारी संस्था महिला खतने के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चला रही है. भारत में साहियो की सह संस्थापक और पत्रकार आरेफा जोहरी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को आशा की किरण मानती है. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "हमें उम्मीद है कि महिलाओं के पक्ष में की गई कोर्ट की टिप्पणी फैसले में बदलेगी. खतना प्रथा एक गैर वैज्ञानिक और गैर जरूरी प्रथा है जिसे महिलाओं पर थोपा गया है. जो महिलाओं के शुद्धिकरण के नाम पर इसकी वकालत करते हैं, वे मूर्ख बना रहे हैं."
यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में हर साल 20 करोड़ महिलाओं का खतना होता है जिनमें अधिकतर की उम्र 14 वर्ष या उससे कम होती है. इंडोनेशिया में आधी से अधिक बच्चियों का खतना हो चुका है. भारत में दाऊदी बोहरा एक छोटा सा समुदाय है, लेकिन महिला खतना को लेकर वह अकसर सुर्खियों में रहता है. सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी ने इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठा रहे लोगों को एक उम्मीद दी है.
बिना खतने के औरत कहलाने का हक
बिना खतने के औरत कहलाने का हक
एफजीएम यानि फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या फिर महिलाओं के जननांगों की विकृति की परंपरा, आज भी अफ्रीका के कई देशों में है. केन्या में मासाई समुदाय की लड़कियां इसे खत्म कर रही हैं.
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अब तुम एक महिला हो!
मासाई समुदाय में तीन दिन तक चलने वाली रस्म के बाद लड़की को महिला का दर्जा मिलता है. इस रस्म के दौरान लड़कियों के जननांगों को काटने की परंपरा रही है. आज भी यहां तीन दिन तक त्योहार मनता है, नाच गाना होता है, लेकिन खतना नहीं.
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जागरूकता से फायदा
अब इस त्योहार के दौरान लड़कियों को उनके शरीर के बारे में जानकारी दी जाती है. सदियों से इस समुदाय की महिलाएं खतने के दर्दनाक तजुर्बे से गुजरती रही हैं.
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अपने शरीर को जानो
लड़कियों को बताया जाता है कि एक महिला का शरीर, उसके जननांग कैसे दिखते हैं, कैसे काम करते हैं और उनकी देखभाल कैसे की जाती है. कई गैर सरकारी संगठन इसमें मदद करते हैं.
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लड़कियों की शाम
ना केवल उन्हें पुरानी दकियानूसी परंपरा से छुटकारा मिल रहा है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर भी जोर है. शाम को लड़कियां एक दूसरे के साथ मिल कर गीत गाती हैं और रात भर मोमबत्तियां जला कर नाचती हैं.
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पुरुषों की भूमिका
रस्म शुरू होने से पहले मासाई समुदाय के पुरुष इकट्ठा होते हैं. इन्हीं में से कोई आगे चल कर समुदाय का मुखिया बनेगा. पुरानी परंपरा को खत्म करने के लिए पुरुषों का साथ बहुत जरूरी है.
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आजादी का एहसास
नाइस लेंगेटे इस समुदाय की पहली महिला हैं, जिनका खतना नहीं किया गया. रस्म के दौरान उन्होंने एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया, जहां उन्हें अपने शरीर के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला. आज वे खुद लोगों को जागरूक करती हैं, "और कमाल की बात है कि वे मेरी बात सुनते भी हैं. मैं उन्हें कंडोम के बारे में बताती हूं, एचआईवी के बारे में भी."
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हर रंग का एक मतलब
रस्म के लिए लड़कियां रंग बिरंगे कपड़े और गले में हार पहन कर तैयार होती हैं. मासाई समुदाय में हर रंग का अलग मतलब होता है. कोई रंग बहादुरी का प्रतीक है, तो कोई उर्वरता का. अब तक 7,000 लड़कियां इस नई तरह की परंपरा का लाभ उठा चुकी हैं.
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बुरी नजर से बचो
कई छोटी छोटी रस्में पूरी की जाती हैं. कई परिवारों में महिलाएं सर मुंडवाती हैं, तो अधिकतर में लड़कियों के चेहरों को रंगा जाता है. ऐसा उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिए किया जाता है.
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आशीर्वाद
आखिरी दिन कुछ ऐसा होता है. समुदाय के सदस्य हाथ में छड़ियां ले कर खड़े होते हैं और लड़कियां एक कतार बना कर उनके नीचे से गुजरती हैं. इस दौरान गीत भी गए जाते हैं और भाषण भी दिए जाते हैं. अंत में लड़कियों को सर्टिफिकेट भी मिलते हैं.