भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच देश में वायरस की एक नई किस्म पाई गई है जो काफी परेशान करने वाली भी साबित हो सकती है. क्या यह नई किस्म ही संक्रमण के मामलों में आई नई उछाल का कारण है?
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भारत में स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेताया है कि यूके, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में पहली बार देखी गई नई किस्मों के अलावा भारत में वायरस की एक बिलकुल नई किस्म पाई गई है. सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के डॉक्टर राकेश मिश्रा का कहना है कि इस नई किस्म में उस प्रोटीन में दो म्युटेशन देखे गए हैं जिनका इस्तेमाल वायरस खुद को शरीर की कोशिकाओं से जोड़ने के लिए करता है.
यह केंद्र उन 10 संस्थानों में से है जो इस वायरस का अध्ययन कर रहा है. डॉक्टर मिश्रा ने यह भी कहा कि वायरस में हुए ये जेनेटिक बदलाव चिंता का विषय हो सकते हैं क्योंकि संभव है इनकी मदद से वायरस और आसानी से फैले और इम्यून सिस्टम से बच निकले. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस नई किस्म को इस समय संक्रमण के मामलों में आई उछाल से नहीं जोड़ा जा सकता है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि नई किस्म महाराष्ट्र से लिए गए सैंपलों में से 15-20 प्रतिशत सैंपलों में पाई गई. महाराष्ट्र इस समय सबसे प्रभावित राज्य है. पूरे देश में सक्रिय मामलों में से 60 प्रतिशत अकेले महाराष्ट्र में हैं. नई दिल्ली स्थित नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के प्रमुख डॉक्टर सुजीत सिंह के मुताबिक नागपुर में इस नई किस्म से जो संक्रमण के मामले सामने आए हैं वो ऐसे इलाकों में हैं जो अभी तक संक्रमण से सबसे कम प्रभावित थे.
वायरस महामारी के दौरान लगातार म्यूटेट करता रहा है, लेकिन वैज्ञानिक इस बात की पड़ताल करते रहे हैं कि कौन सा म्यूटेशन वायरस को ज्यादा आसानी से फैलने में और लोगों को ज्यादा बीमार करने में मदद कर रहा है. जो तीन नई किस्में सामने आई थीं उन्हें सबसे ज्यादा चिंताजनक माना गया है और "चिंताजनक वेरिएंट" बता दिया गया है. इस बीच स्वास्थ्य अधिकारी मान रहे हैं कि वो आने वाले बसंत ऋतू से जुड़े त्योहारों को लेकर चिंतित हैं.
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी की डॉक्टर विनीता बाली ने बताया कि टीकाकरण कार्यक्रम का धीरे धीरे आगे बढ़ना सबसे ज्यादा चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि पिछले साल की स्थिति से उलट, इस बार वायरस ज्यादा अमीर मोहल्लों में फैल रहा है और ऐसे परिवारों को संक्रमित कर रहा है जो इससे पहले अपने अपने घरों में रह कर खुद को सुरक्षित रखने में कामयाब रहे थे. अब लोगों में डर कम हो गया है और वो सावधानी नहीं बरत रहे हैं. लोग मास्क पहन तो रहे हैं, "लेकिन मास्कों से लोगों की दाढ़ियों की सुरक्षा हो रही है, ना कि उनकी नाक की."
सीके/एए (एपी)
कोरोना वैक्सीन के हैं ये साइड इफेक्ट
कोरोना की वैक्सीन जितनी जल्दबाजी में बनी हैं, उसे देखते हुए कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि इसे लेना ठीक भी रहेगा या नहीं. जानिए कौन सी कंपनी की वैक्सीन के क्या साइड इफेक्ट हैं ताकि आपके सभी शक दूर हो जाएं.
कुछ सामान्य साइड इफेक्ट
कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है.
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बड़े साइड इफेक्ट का खतरा?
अब तक जिन जिन टीकों को अनुमति मिली है, परीक्षणों में उनमें से किसी में भी बड़े साइड इफेक्ट नहीं मिले हैं. यूरोप की यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ईएमए), अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन तीनों ने इन्हें अनुमति दी है. एक दो मामलों में लोगों को वैक्सीन से एलर्जी होने के मामले सामने आए थे लेकिन परीक्षण में हिस्सा लेने वाले बाकी लोगों में ऐसा नहीं देखा गया.
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बायोनटेक फाइजर
जर्मनी और अमेरिका ने मिलकर जो टीका बनाया है वह बाकी टीकों से अलग है. वह एमआरएनए का इस्तेमाल करता है यानी इसमें कीटाणु नहीं बल्कि उसका सिर्फ एक जेनेटिक कोड है. यह टीका अब कई लोगों को लग चुका है. अमेरिका में एक और ब्रिटेन में दो लोगों को इससे काफी एलर्जी हुई. इसके बाद ब्रिटेन की राष्ट्रीय दवा एजेंसी एमएचआरए ने चेतावनी दी कि जिन लोगों को किसी भी टीके से जरा भी एलर्जी रही हो, वे इसे ना लगवाएं.
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मॉडेर्ना
अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना का टीका भी काफी हद तक फाइजर के टीके जैसा ही है. परीक्षण में हिस्सा लेने वाले करीब दस फीसदी लोगों को थकान महसूस हुई. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके चेहरे की नसें कुछ वक्त के लिए पेरैलाइज हो गई. कंपनी का कहना है कि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ऐसा टीके में मौजूद किसी तत्व के कारण हुआ या फिर इन लोगों को पहले से ऐसी कोई बीमारी थी जो टीके के कारण बिगड़ गई.
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एस्ट्रा जेनेका
ब्रिटेन और स्वीडन की कंपनी एस्ट्रा जेनेका के टीके के परीक्षण को सितंबर में तब रोकना पड़ा जब उसमें हिस्सा लेने वाले एक व्यक्ति ने रीढ़ की हड्डी में सूजन की बात बताई. इसकी जांच के लिए बाहरी एक्सपर्ट भी बुलाए गए जिन्होंने कहा कि वे यकीन से नहीं कह सकते कि सूजन की असली वजह वैक्सीन ही है. इसके अलावा बाकी के टीकों की तरह यहां भी ज्यादा उम्र के लोगों में बुखार, थकान जैसे लक्षण कम देखे गए हैं.
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स्पूतनिक वी
रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी को अगस्त में ही मंजूरी दे दी गई थी. किसी भी टीके को तीन दौर के परीक्षणों के बाद ही बाजार में लाया जाता है, जबकि स्पूतनिक के मामले में दूसरे चरण के बाद ही ऐसा कर दिया गया. रूस के अलावा यह टीका भारत में भी दिया जाना है. जानकारों की शिकायत है कि इसके पूरे डाटा को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए साइड इफेक्ट्स के बारे में ठीक से नहीं बताया जा सकता.
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन भी स्पूतनिक की तरह विवादों में घिरी है. सरकार ने इसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अनुमति दी है लेकिन इसके भी तीसरे चरण के परीक्षणों के बारे में जानकारी नहीं है और ना ही यह बताया गया है कि यह कितनी कारगर है. भारत में महामारी पर नजर रख रही संस्था सेपी की अध्यक्ष गगनदीप कांग ने कहा है कि वे सरकार के फैसले को समझ नहीं पा रही हैं और अपने करियर में उन्होंने कभी ऐसा होते नहीं देखा.
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बच्चों के लिए टीका?
आम तौर पर पैदा होते ही बच्चों को टीके लगने शुरू हो जाते हैं लेकिन कोरोना के टीके के मामले में ऐसा नहीं होगा. इसकी दो वजह हैं: एक तो बच्चों पर इसका परीक्षण नहीं किया गया है और ना ही इसकी अनुमति है. और दूसरा यह कि महामारी की शुरुआत से बच्चों पर कोरोना का असर ना के बारबार देखा गया है. इसलिए बच्चों को यह टीका नहीं लगाया जाएगा. साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी फिलहाल यह टीका नहीं दिया जाएगा.
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सुरक्षित टीका क्या होता है?
जर्मनी में कोरोना पर नजर रखने वाले रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट की वैक्सीनेशन कमिटी के सदस्य के सदस्य क्रिस्टियान बोगडान बताते हैं कि किसी टीके से अगर एक वृद्ध व्यक्ति की उम्र 20 प्रतिशत घटती है लेकिन साथ ही अगर 50 हजार में से सिर्फ एक व्यक्ति को उससे एलर्जी होती है, तो वे ऐसे टीके को सुरक्षित मानेंगे. उनके अनुसार यूरोप में इसी पैमाने पर टीकों को अनुमति दी जा रही है.