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भारत में यहां दिखती है नोबेल विजेता अभिजीत और एस्थर की छाप

चारु कार्तिकेय
१५ अक्टूबर २०१९

इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल जीतने वाले अभिजीत बनर्जी भले ही 2017 से अमेरिका के नागरिक हों, लेकिन वो और उनका काम भारत से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है.

Zeichnung Wirtschaftsnobelpreisträger 2019 | Abhijit Banerjee, Esther Duflo and Michael Kremer
तस्वीर: Nobel Media/Niklas Elmehed

अभिजीत भारत में जन्मे और यहीं अपनी स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी की. भारत उनके शोध-कार्य के भी केंद्र में है. भारत में गरीबी पर उनका बहुत विस्तृत शोध है और गरीबों के लाभ के लिए बनाई गई कई सरकारी योजनाओं में उनके सुझावों की छाप है.

मिसाल के तौर पर पंजाब में पिछले साल शुरू की गई योजना 'पानी बचाओ, पैसा कमाओ' को ले लीजिए. इस कार्यक्रम को तैयार किया था अमेरिका के मास्साचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (जे-पाल) ने, जिसके सह-संस्थापक हैं बनर्जी और उनकी पत्नी एस्थर दुफ्लो है. दोनों पति पत्नी नोबेल पुरस्कार में भी साझीदार हैं.

इस योजना के तहत एक तरह से किसानों को कम बिजली और पानी उपयोग करने के पैसे मिलते हैं. किसानों को अपने खेतों की सिंचाई करने के लिए बिजली की जरूरत होती है और भारत के अनेक राज्यों में, जहां बिजली की आपूर्ति कम है, वहां राज्य सरकारें इस पहेली से जूझती रहती हैं कि वो कैसे बिजली भी बचा सकें और कृषि भी प्रभावित न हो. बनर्जी और दुफ्लो के सुझाए हुए नुस्खे के अनुसार, पंजाब के 5900 ग्रामीण बिजली फीडर्स में से 6 पर पायलट के रूप में इस परियोजना को शुरू किया गया.

तस्वीर: Aditi Mukerji

इसके तहत पानी बचाने के लिए किसानों को सब्सिडी सीधे उनके खातों में दी जाती है. इस परियोजना पर किसानों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है और अब राज्य सरकार ने इसे 6 से बढ़ा कर 250 फीडर्स पर लागू कर दिया है.

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भारत में शिक्षा के क्षेत्र में भी बनर्जी और दुफ्लो का योगदान है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में राज्य सरकार द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों में इनके शोध से ही प्रेरित एक अनूठी शिक्षा पद्धति अपनाई गई है. 'चुनौती' नाम की इस योजना के तहत पढ़ाई में कमजोर छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाता है और उन्हें उनकी उम्र के बजाय वो जहां तक सीख पाए हैं उस स्तर के आधार पर अलग से पढ़ाया जाता है.

इसके पीछे बनर्जी और दुफ्लो का लगभग पंद्रह साल पहले 'सही स्तर पर पढ़ाने' को ले कर भारत में किया गया व्यापक शोध है. इस शोध में उन्होंने दस साल लगाए थे जिसके अंतर्गत उन्होंने मौजूदा शिक्षा प्रणालियों का अध्ययन और आंकलन भी किया और अपने विचारों को लेकर दिल्ली और 6 और राज्यों में परीक्षण भी किए.

दिल्ली सरकार ने वित्तीय क्षेत्र में भी बनर्जी और दुफ्लो की मदद ली और उनके सुझावों के आधार पार अपना "परिणाम बजट" बनाया. इसके तहत बजट में धन राशि का आबंटन समयसीमा से जुड़ा रहता है और हर साल सरकार विधानसभा में पिछले बजट में की गई घोषणाओं के क्रियान्वयन का लेखा जोखा देती है.

पश्चिमी भारत के राज्य गुजरात में भी इनके काम की छाप है. गुजरात के सूरत शहर में एक महीने पहले उत्सर्जन के व्यापार की एक अनूठी योजना की शुरुआत की गई और जे-पाल उन मुख्य एजेंसियों में से है जो इस योजना के पीछे हैं. इस योजना का लक्ष्य है प्रदूषण को कम करना और उत्सर्जन के मानकों का पालन करने में उद्योगों के खर्चे को कम करना. इसके तहत सूरत में 155 औद्योगिक इकाइयां पार्टिकुलेट मैटर का व्यापार कर रही हैं. अधिकारियों का कहना है कि वे अभी से उत्सर्जन के स्तरों में कमी आती हुई देख रहे हैं.

तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran

इसके अलावा बनर्जी और दुफ्लो के ही शोध की मदद से बनी एक योजना 2019 के राष्ट्रीय चुनावों में कांग्रेस पार्टी के अभियान की आधारशिला थी. न्यूनतम आय योजना, जिसे कांग्रेस ने संक्षेप में न्याय का नाम दिया. इसके तहत कांग्रेस वादा कर रही थी कि अगर केंद्र में उसकी सरकार बनी तो वो देश के 20 प्रतिशत सबसे गरीब परिवारों को गारंटीकृत न्यूनतम आय के रूप में नगद पैसे देगी. कांग्रेस ने घोषणा की थी कि ऐसे हर एक परिवार को साल में 72,000 रुपये तक की धनराशि मिलेगी और इससे करीब 25 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा.

इस योजना का सुझाव बनर्जी ने ही कांग्रेस को दिया था, हालांकि वो कहते हैं कि उन्होंने 2500 से 3000 रुपये प्रति माह की धनराशि प्रस्तावित की थी लेकिन कांग्रेस ने 6000 रुपये प्रति माह तक देने का वादा किया था. चूँकि कांग्रेस पार्टी चुनाव हार गई, अब ये कहना मुश्किल है कि ये योजना लागू हो पाती या नहीं और इसका क्या असर होता. कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री इस योजना को अपने राज्य में लागू करने की बात कर चुके हैं लेकिन अभी तक इसकी शुरुआत हुई नहीं है.

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