आम जनता को भुगतान के डिटिजल विकल्पों से जोड़ने के लिये सरकार ने कई इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम लॉन्च किये हैं. इनका मकसद नकदी के इस्तेमाल को कम कर कैशलेश अर्थव्यवस्था तैयार करना है. एक नजर देश में मौजूद ऐसे कुछ विकल्पों पर.
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(यूपीआई)
सरकारी एजेंसी भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम ने अगस्त 2016 में इस सेवा को लॉन्च किया था पर इसके इस्तेमाल को लेकर बाजार में सुस्ती बनी रही. लेकिन दिसंबर में प्रधानमंत्री मोदी के भीम ऐप (बीएचआईएम) लॉन्च करने से इसके प्रदर्शन में सुधार आया. आज तमाम सरकारी और निजी ऋणदाता कंपनियां यूपीआई की इस ऐप का इस्तेमाल कर रही हैं. भीम को अब तक 1.7 करोड़ बार डाउनलोड किया जा चुका है. इस सिस्टम में उपयोगकर्ता को एक यूनिक वर्चुअल पेमेंट ऐड्रेस तैयार करना होता है जो देखने में ई-मेल की तरह लगता है लेकिन इसका इस्तेमाल पैसे के लेन-देन के लिये किया जाता है. हर प्रोफाइल में एक विशिष्ट क्विक रिस्पॉन्स (क्यूआर) कोड होता है जिसका इस्तेमाल पैसे के लेन-देन में होता है.
बोलने की आजादी और डिजीटल तकनीक
दुनिया के करीब हर कोने में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की आजादी खतरे में है. लेकिन गैर सरकारी संगठन अपनी चुनौतियों का सामना करने के लिए डिजीटल तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं.
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आन्या सिफरिन, निदेशिका, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, अमेरिका
"हमारे सर्वे 'मिट्टी के मोल प्रकाशन: नए विकास और पत्रकारिता स्टार्ट अप' से पता चला कि मीडिया स्टार्टअप आर्थिक महात्वाकांक्षाओं की वजह से नहीं बल्कि पत्रकारिता के समर्थन में पैदा हुए हैं. मीडिया स्टार्टअप बनाने वाले अत्यंत आदर्शवादी हैं. वे दुनिया को बदलना चाहते हैं, मीडिया की कमजोरियों को दूर करना चाहते हैं या समाज की जरूरतों की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं."
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कनक संध्या यतिराजुला, उप संयोजक, सहयोग, भारत
"हमारा एनजीओ भारत के हेल्थ सेक्टर में भ्रष्टाचार की रिपोर्ट मोबाइल टेलिफोन के जरिये करने में महिलाओं की मदद करता है. हमने सीखा है कि तकनीक मददगार होती है, लेकिन साधन से ज्यादा साध्य के रूप में. अंत में महिलाओं को समझाना जरूरी है कि वे हमारी सर्विस का इस्तेमाल करें. नई तकनीक थोपी नहीं जा सकती. महिलाएं खुद तय करती हैं और उसे बेहतर करती हैं."
"अपने एनजीओ की मदद से हम नाइजीरिया में विकास सहायता के लिए दिए जाने धन पर नजर रखते हैं. लेकिन ओपन डाटा अकेला समाधान नहीं है. उसके लिए हमारे जैसी संस्था की जरूरत है जो डाटा इस तरह पेश करते हैं कि पिछड़े तबके भी उसे समझ सकें. हमारा टार्गेट ऑडिएंस इंटरनेट में नहीं है. हम रेडियो और टीवी का इस्तेमाल करते हैं और लोगों से सीधी बात करते हैं."
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श्टेफान लाइडेल, डीडब्ल्यू अकादमी, जर्मनी
"ओपन डाटा, क्राउड सोर्सिंग और मैपिंग के रूप में हम दुनिया में हर कहीं ऐसी पहलकदमियां देख रहे हैं जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना का अधिकार हासिल करने के लिए डिजीटल तकनीक का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही हैं. एक्टिविस्ट बहुत तरह के हैं. उनमें एकल लोग हैं तो स्वतंत्र मीडिया संगठन और मानवाधिकार संगठन भी."
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एरिक अलब्रेष्ट, लेखक, जर्मनी
"मीडिया के क्षेत्र में नए लोग आ रहे हैं, मसलन कंप्यूटर एक्सपर्ट. आजकल मीडियाकर्मी होने के लिए अच्छी पत्रकारिता ही जरूरी नहीं है, यह भी पता होना चाहिए कि आईटी एक्सपर्टों और प्रोग्रामरों के साथ मिलजुलकर कैसे काम किया जाता है. मीडिया डेवलपमेंट संगठनों को भी भावी सहयोगियों की मदद करने के लिए नई जानकारी हासिल करने की जरूरत है."
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इंडिया/ भारत क्यूआर
यह ऐपलिक्शेन क्विक रिस्पॉन्स कोड पर आधारित है जिसमें कार्ड के बिना, एक खास प्रकार के लेबल के जरिये लोगों के पास भुगतान की और कारोबारियों के पास भुगतान मंजूर करने की सुविधा होती है. वैश्विक नेटवर्क कार्ड प्रदाता मास्टरकार्ड और वीजा इंक, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान कॉरपोरेशन के साथ मिलकर इस पर काम कर रही हैं. पिछले महीने भारत में इस सेवा को लॉन्च किया गया था.
आधार पे
इस भुगतान सेवा के लिये भारत के राष्ट्रीय बायोमेट्रिक पहचान पत्र का उपयोग होता है. इनके लिये प्वाइंट-ऑफ-सेल्स (पीओएस) मशीन की आवश्यकता नहीं होती जिसे क्रेडिट और डेबिट कार्ड के लिये इस्तेमाल किया जाता है. आधार पे पर पंजीकृत कारोबारी को अपना फोन, बायोमैट्रिक रीडर से जो़ड़ सकता है जिसमें ग्राहक अपने फिंगरप्रिंट के जरिये भुगतान कर सकेंगे.