क्या आप शुद्ध शहद खा रहे हैं?
२ दिसम्बर २०२०![Honig Brot und Milch](https://static.dw.com/image/44406395_800.webp)
सीएसई ने खुद की गई लंबी जांच-पड़ताल के आधार पर दावा किया है कि भारत के लगभग सभी प्रमुख ब्रांड के शहद के 77 प्रतिशत नमूनों में शुगर सिरप की मिलावट पाई गई है. संस्था ने इस जांच पर जारी की गई एक रिपोर्ट में यह भी कहा है कि शहद की शुद्धता की जांच के लिए तय भारतीय मानकों के जरिए इस मिलावट को नहीं पकड़ा जा सकता. रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की कंपनियां ऐसे शुगर सिरप तैयार कर रही हैं जो भारतीय जांच मानकों पर आसानी से खरे उतरते हैं और भारत में शहद बेचने वाली कंपनियां अपने शहद में यही सिरप मिला रही हैं.
सीएसई ने इस पड़ताल के लिए भारतीय बाजार में बिकने वाले शहद के 13 ब्रांडों को चुना. इनके नमूनों को सबसे पहले गुजरात के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) में स्थित सेंटर फॉर एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टॉक एंड फूड (सीएएलएफ) में जांचा गया. लगभग सभी शीर्ष ब्रांड शुद्धता के परीक्षण में पास हो गए, जबकि कुछ छोटे ब्रांड इस परीक्षण में फेल हुए. उनमें सी3 और सी4 शुगर पाया गया, जो चावल और गन्ने से मिलने वाली चीनी है.
जर्मन टेस्ट में फेल हुए भारतीय शहद
लेकिन भारत में परीक्षण में पास होने वाले इन ब्रांडों को जब जर्मनी की एक विशेष प्रयोगशाला में न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (एनएमआर) परीक्षण के द्वारा परखा गया तो लगभग सभी नमूने फेल पाए गए. सीएसी के अनुसार एनएमआर परीक्षण वैश्विक स्तर पर मोडिफाई शुगर सिरप को जांचने के लिए प्रयोग किया जाता है. इस पड़ताल में पाया गया कि 77 फीसदी नमूनों में शुगर सिरप के साथ मिलावट की गई थी. शहद के प्रमुख ब्रांड जैसे डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, झंडु, हितकारी और एपिस हिमालय, सभी एनएमआर टेस्ट में फेल पाए गए.
13 ब्रांड्स में से सिर्फ 3 – सफोला, मार्कफेड सोहना और नेचर्स नेक्टर, सभी परीक्षणों में पास पाए गए. भारत में एनएमआर परीक्षण इसी साल शुरू किया गया है. भारत से निर्यात किए जाने वाले शहद का एनएमआर परीक्षण 1 अगस्त 2020 से अनिवार्य कर दिया गया और सीएसी के अनुसार यह इस बात का प्रमाण है कि भारत सरकार इस मिलावटी व्यापार के बारे में जानती थी, इसलिए उसे अधिक आधुनिक परीक्षणों की आवश्यकता पड़ी.
चीनी कंपनियों की भूमिका
सीएसई की जांच में यह भी सामने आया है कि चीन की कंपनियां धड़ल्ले से ऐसे सिरप बेचती हैं जो शहद में 50 से 80 प्रतिशत तक मिला देने के बाद भी भारतीय परीक्षणों में पकड़े नहीं जाते. अलीबाबा जैसी कंपनियां के वेब पोर्टलों पर खुलेआम यह दावे विज्ञापनों में किए जा रहे हैं. सीएसई ने इस मामले में और जानकारी हासिल करने के लिए एक गुप्त ऑपरेशन चलाया और पाया कि चीन की कंपनियों से ऐसे सिरप आसानी से हासिल किए जा सकते हैं.
यह भी पता चला कि भारत में भी ऐसी फैक्ट्रियां हैं जो मिलावट के लिए सिरप बनाती हैं और उनसे आसानी से ऐसे सैंपल खरीदे जा सकते हैं. इन्हें आसानी से शुद्ध शहद में मिलाया जा सकता है और 50 प्रतिशत तक शुगर सिरप मिलावट के बावजूद ऐसे नमूने टेस्ट में पास हो जाते हैं.
अपनी पड़ताल के नतीजों को सार्वजनिक करते हुए सीएसई ने मांग की है कि चीन से सिरप और शहद का आयात बंद किया जाए और देश के अंदर सार्वजनिक परीक्षण को और मजबूत किया जाए, ताकि कंपनियों को जिम्मेदार ठहराया जा सके. इसके अलावा संस्था ने यह भी मांग रखी है कि शहद मधुमक्खी पालकों से लिया गया है या छत्तों से लिया गया है, सभी शहद बेचने वाली कंपनियों द्वारा इसकी जानकारी देना अनिवार्य कर देना चाहिए.
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि कोरोना काल की वजह से यह मामला और भी गंभीर हो जाता है, क्योंकि इस समय खुद को स्वस्थ रखने और अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए लोग शहद का ज्यादा सेवन कर रहे हैं. नारायण ने समझाया कि इस खुलासे के बाद लोगों को समझ जाना चाहिए कि वे शहद के धोखे में मूलतः खूब सारी चीनी खा रहे हैं और इस बारे में सावधान हो जाना चाहिए.
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