संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है. दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है.
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राजस्थान और मध्य प्रदेश में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि देश के सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो इन मौतों को रोका जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र ने भारत में जो आंकड़े पाए हैं, वे अंतरराष्ट्रीय स्तर से कई गुना ज्यादा हैं. संयुक्त राष्ट्र ने स्थिति को "चिंताजनक" बताया है.
भारत में फाइट हंगर फाउंडेशन और एसीएफ इंडिया ने मिल कर "जनरेशनल न्यूट्रिशन प्रोग्राम" की शुरुआत की है. भारत में एसीएफ के उपाध्यक्ष राजीव टंडन ने इस प्रोग्राम के बारे में बताते हुए कहा कि कुपोषण को "चिकित्सीय आपात स्थिति" के रूप में देखने की जरूरत है. साथ ही उन्होंने इस दिशा में बेहतर नीतियों के बनाए जाने और इसके लिए बजट दिए जाने की भी पैरवी की. नई दिल्ली में हुई कॉन्फ्रेंस में सरकार से जरूरी कदम उठाने पर जोर दिया गया. राजीव टंडन ने सरकार से कुपोषण मिटाने को एक "मिशन" की तरह लेने की अपील की है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अगर चाहें, तो इसे एक नई दिशा दे सकते हैं.
एसीएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है, वैसा पूरे दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिला है. रिपोर्ट में लिखा गया है, "भारत में अनुसूचित जनजाति (28%), अनुसूचित जाति (21%), पिछड़ी जाति (20%) और ग्रामीण समुदाय (21%) पर अत्यधिक कुपोषण का बहुत बड़ा बोझ है."
वहीं महाराष्ट्र में राजमाता जिजाऊ मिशन चलाने वाली वंदना कृष्णा का कहना है कि राज्य सरकार कुपोषण कम करने के लिए कई कदम उठा रही है, पर साथ ही उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि दलित और आदिवासी इलाकों में अभी भी सफलता नहीं मिल पाई है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बच्चों को खाना ना मिलने के साथ साथ, देश में खाने की बर्बादी का ब्योरा भी दिया गया है.
आईबी/एमजे (पीटीआई)
भारत में व्याप्त गंभीर कुपोषण
2014 के वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति गंभीर बनी हुई है. देश में पर्याप्त संसाधन होने के बावजूद कुपोषण खत्म नहीं हो रहा. इसमें गरीबी और अशिक्षा एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.
आई थोड़ी बेहतरी
अगर पूरी दुनिया की बात करें तो हालात पहले से कुछ अच्छे हुए हैं. 2014 में दुनिया भर में साढ़े अस्सी करोड़ ऐसे लोग हैं जिनके पास पर्याप्त खाना नहीं है. वहीं करीब दो अरब लोग कुपोषित हैं.
तीन बिंदु हैं अहम
पांच साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु, उनमें कुपोषण और कुल जनसंख्या में कुपोषण की संख्या को आंका जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है. एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि केवल पेट भरना पोषण नहीं है.
तस्वीर: DW/K. Keppner
जागरूकता जरूरी
अक्सर माता पिता को यह पता ही नहीं होता कि उनके बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. अंधविश्वास के कारण वह इसे श्राप मानते रहते हैं और डॉक्टर की बजाए नीम हकीम से काम चलाते हैं.
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मध्यप्रदेश की स्थिति
कुपोषण के मामले में देश में मध्यप्रदेश की स्थिति बहुत खराब है. कुपोषित बच्चों के लिए खास केंद्र बनाए गए हैं, जहां मां और बच्चों को समुचित आहार दिया जाता है.
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लापरवाही
खरगोन में जन साहस नाम के गैर सरकारी संगठन के लिए काम करने वाली जासमीन खान बताती हैं कि अक्सर डॉक्टर इलाज के लिए मौजूद नहीं होते और मुश्किल में पड़े लोगों को मदद मिलने में देर हो जाती है.
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परिवार की मनाही
गरीबी के कारण खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाली महिलाएं परेशानी में आ जाती हैं. वे जानती हैं कि उनका बच्चा बीमार है लेकिन अक्सर परिजन ही उन्हें सहायता केंद्र जाने से रोक देते हैं.
तस्वीर: imago/Chromorange
मुश्किल में माएं
सोनू की मां रुना (तस्वीर में) अपनी बच्ची के कुपोषण को लेकर असमंजस में हैं. सहायता केंद्र में रहे तो मजदूरी जाती है और मजदूरी करे तो बच्ची बीमार. ऐसे कई परिवार हैं, जिन्हें सही जानकारी दिए जाने की जरूरत है.
तस्वीर: DW/K. Keppner
कुछ अच्छा भी
ये सही है कि दुनिया में भुखमरी का आंकड़ा कम हुआ है. मगर इराक जैसे देशों में अस्थिरता और युद्ध के कारण यह बढ़ा भी है. कोमोरोस, बुरुंडी और स्वाजीलैंड में भी भुखमरी बढ़ी है.