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समाज

लड़कियों की कमी से लड़कों की शादी हुई मुश्किल

श्रेया बहुगुणा
१७ दिसम्बर २०१९

भारत में औसतन हर दसवें लड़के के लिए दुल्हन नहीं है और इस वजह से उनकी शादी में मुश्किलें आ रही हैं. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना रिपोर्ट बताती है कि भारत में पुरुष और महिलाओं के बीच खाई बढ़ती जा रही है.

Hochzeit in Indien
तस्वीर: picture-alliance/dpa/epa/D. Solanki

उत्तर प्रेदश के बागपत जिले से खेड़ा हटाना गांव में रहने वाले अनुज शर्मा पिछले दस साल से परेशान हैं. वजह है उनकी शादी. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने बताया, "जब मै 25 साल का था, तब से मेरे घरवाले मेरे लिए दुल्हन खोज रहे हैं. लेकिन आस पास के गांव में लड़कियों की इतनी कमी है कि आज 10 साल हो गए हैं और खोज आज भी बरकरार है. वो बताते हैं इस पूरे गांव में आपको हर परिवार में मेरे जैसे ही कई कुंवारे लड़के मिल जाएंगे. जो कई कई साल से दुल्हन की खोज में हैं. कोशिश अब तक नाकाम है."

अनुज के मुताबिक उनके गांव में कम से केम 30 लड़के कुंवारे हैं और दुल्हन की तलाश में हैं. वो खुद ये बात कबूलते हैं कि आस पास के इलाकों को जोड़ दें तो यहां 100 लड़कों पर 70 लड़कियां ही मिलेंगी. लिंगानुपात में असमानता कपिल शर्मा और उनके गांव के तमाम लड़कों के कुंवारे होने की सबसे बड़ी वजह है.  

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की मानें तो शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक नेतृत्व के मामले में महिलाओं को पुरुषों के बराबर पहुंचने में 257 साल लगेंगे. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट बताती है कि 153 देशों में राजनीतिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य और समान वेतन के क्षेत्र में महिलाओं की क्या स्थिति है. इसी के आधार पर इन देशों की रैंकिंग तैयार की जाती है. इस फोरम की हाल की रिपोर्ट बताती है कि भारत स्वास्थ्य, शिक्षा और समान वेतन के मामले में पहले से कहीं ज्यादा पिछड़ गया है. इस रिपोर्ट मुताबिक महिलाओं को आर्थिक, राजनीतिक अधिकार और शिक्षा के हिसाब से पुरुषों के बराबर पहुंचने में 257 साल लगेंगे. पिछले साल ये आंकड़ा 202 का साल था. यह रिपोर्ट 153 देशों पर रिसर्च करके तैयार की गई है. यह रिपोर्ट शिक्षा. स्वास्थ्य, आर्थिक अवसर और राजनैतिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में  रिसर्च करने के बाद तैयार की गई है.

तस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

महिलाओं का स्वास्थ्य में स्थान

महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में भारत का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है. 153 देशों की सूची में भारत 150वें स्थान पर है. भारत लिंगानुपात में 149 वें स्थान पर है, पिछले साल देश की स्थिति बेहतर थी. भारत पिछले साल 108वें नंबर पर था. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान के बाद भी भारत में हर 100 लड़के पर महज 91 लड़कियां हैं. जो पाकिस्तान जैसे देशों के मुकाबले भी खराब स्थिति है. पाकिस्तान में यह अनुपात 100 और 92 का है. यहां तक कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे देश भी भारत से ऊपर हैं. नेपाल 101 और बांग्लादेश 50 वें स्थान पर है. यमन और इराक का प्रदर्शन सबसे ज्यादा खराब रहा है.

मनोवैज्ञानिक भारत की कई समस्याओं में इस घटते लिंगानुपात को भी वजह मानते हैं. मनोवैज्ञानिक शुचि गोयल कहती हैं, "भारत में बढ़ते रेप का सबसे प्रमुख कारण भी लिंगानुपात का घटना है."

इकोनॉमिक फोरम ने अपनी रिपोर्ट में कहा "लिंगानुपात को कम करने में जहां पिछले साल 2018 की रिपोर्ट में 108 साल का वक्त बताया गया था, इस साल वो घटकर 99.5 साल तो हो गया है लेकिन महिलाओं के साथ वेतन, राजनीति, शिक्षा, और स्वास्थ्य में होने वाले भेदभाव को खत्म होने में एक व्यक्ति के जीवन काल का वक्त लग जाएगा."

तस्वीर: picture alliance/AP Photo/R. Kakade

भारत में महिलाओं का राजनीति में स्थान

भारत को 153 देशों की सूची में महिलाओं को राजनीतिक सशक्तिकरण देने के मामले में 18वां स्थान मिला है. हालांकि प्रतिनिधित्व के मामले में महिलाएं पुरुषों से कहीं पीछे हैं. भारत की रैंकिग अच्छी दिखने की बड़ी वजह है 50 सालों में 20 साल महिला का प्रधानमंत्री रहना. अगर आंकड़ो को देखें तो पिछले सालों में केवल 14.4 प्रतिशत महिलाए ही संसद पहुंच पाई हैं. इस मामले में भारत की रैकिंग 122वीं है. भारत में केवल 23.1 प्रतिशत महिलाएं कैबिनेट मंत्री बनी हैं और देश की रैंकिंग 69वीं है.  

आम आदमी पार्टी की नेता और लोकसभा चुनाव में पार्टी की ओर से उम्मीदवार रहीं आतिशी मारलेना कहती हैं "भारत जैसे देश में महिलाओं के लिए पब्लिक डोमेन में रहने वाले प्रोफशन में काम करना मुश्किल है. जिस देश में लिंगानुपात की खाई को ही भरा ना गया हो वहां पर महिलाओं की राजनीति में भागीदारी और राजनीति में प्रतिनिधित्व दूर का सपना है. वो महिलाएं जिनके परिवार से पहले कोई भी राजनीति में ना रहा हो वो आपको ना के बराबर मिलेंगी. खुद से आगे बढ़ने वाली महिलाओं के लिए यहां पर सफलता की राह मुश्किल होती है. यही वजह है कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिनिधित्व कम है."

महिलाओं को समान वेतन देने के मामले में भारत 149वें स्थान पर

 महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले समान वेतन देने के मामले में भारत 153 देशों की सूची में 149वें स्थान पर है. महिलाओं को आर्थिक अवसर देने के मामलें में भी भारत को काफी मेहनत करनी होगी. 

2006 से अब तक महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले असमान वेतन की खाई बढ़ी है. यहां पूरी जनसंख्या की केवल एक चौथाई महिलाएं ही श्रमिक कार्यों से जुड़ी हुई हैं. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक "तकनीकी और पेशेवर नौकरियों में महिलाओं के नेतृत्व में भारी कमी देखी गई है. भारत का स्थान 136वां है. हिंसा, जबरन शादी, स्वास्थ्य सुविधाओं में भेदभाव इसकी बड़ी वजह हैं." 

तस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

शिक्षा के क्षेत्र में भारत 112वें स्थान पर

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव देखे गये हैं, लेकिन साक्षरता दर में बड़ा अंतर है. महिलाओं की साक्षरता दर जहां 66 प्रतिशत है तो पुरुषों की 82 प्रतिशत है." महिलाओं के प्रति हिंसा, लिंगानुपात में अंतर, महिलाओं के साथ भेदभाव इसकी एक बड़ी वजह हैं.

आईसलैंड,नॉर्वे, फिनलैंड, स्वीडन महिलाओं को पुरुषों जैसी जगह देने में अव्वल रहे हैं. जर्मनी भी 10 वें स्थान पर जगह बनाने में सफल रहा है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम अपनी रिपोर्ट में कहता है, "रोल मॉडल इफेक्ट का सकारात्मक असर नेतृत्व और वेतन पर पड़ना शुरु हो गया है. उदाहरण के तौर पर जो 10 देश इस बार लिस्ट में सबसे ऊपर रहे हैं, वहां महिलाएं बड़े पदों पर रही हैं. जिसका असर 2006 से 2019 के बीच देखने को मिला. राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी से श्रमिक बाजार में भी महिलाओं की भूमिका में सुधार हुआ."

भारत में महिलाओं के मुद्दों के बारे में जारी ये आंकड़े और रैंकिग वाकई चिंताजनक हैं. आर्थिक, समाजिक, शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में अगर इस खाई को भरा नहीं गया तो अनुज शर्मा जैसे कई लड़के अपनी दुल्हन का इंतजार करते रह जाएंगे.

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम स्विट्जरलैंड का एक गैरलाभकारी संगठन है. जिसकी शुरुआत 1971 में हुई. यह फोरम शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थशास्त्र और दूसरे मुद्दों के लिए दुनिया को एक मंच पर लाता है.

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