भारत में राजनीतिक दलों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. ज्यादातर दल वैसे आपको नजर नहीं आएंगे लेकिन चुनाव के समय ऐसे दलों की सक्रियता बढ़ जाती है.
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ट्वेंटी 20 पार्टी, मदर इंडिया पार्टी, राष्ट्रीय पावर पार्टी, सभी जन पार्टी, द ह्यूमनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, द इम्पीरियल पार्टी ऑफ इंडिया, वतन जनता पार्टी ये भारत में मौजूद दो हजार राजनीतिक दलों में से कुछ के नाम हैं. आमतौर पर चुनाव के समय लोगों को कुछ ही राजनीतिक दलों का ध्यान रहता है लेकिन भारत में राजनीतिक दल की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. ज्यादातर दल वैसे आपको नजर नहीं आएंगे लेकिन चुनाव के समय इनकी भी सक्रियता बढ़ जाती है.
कितने तरह के राजनीतिकदल
भारत के निर्वाचन आयोग के अनुसार राजनीतिक दल तीन तरह के होते हैं. सबसे पहले आते हैं राष्ट्रीय दल. इस समय भारत में कुल सात राजनीतिक पार्टियों को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला हुआ है. ये पार्टियां हैं — भारतीय जनता पार्टी, इंडियन नेशनल कांग्रेस, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए जरूरी है कि कम से कम तीन राज्यों में 11 लोकसभा सीट जीती हो या चार राज्यों में छह फीसदी वोट मिले हों या फिर चार राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा प्राप्त हो.
दूसरे नंबर पर राज्य स्तरीय दल आते हैं. निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार ऐसे दलों की संख्या 50 है. ये वो दल होते हैं जो अपने राज्य की विधानसभा में कम से कम तीन सीट या कुल सीट का तीन फीसदी सीट जीतने में सफल होने के अलावा छह फीसदी वोट भी पाए हुए हों.
तीसरी श्रेणी में सामान्य राजनीतिक दल आते हैं, जिनका सिर्फ निर्वाचन आयोग में रजिस्ट्रेशन होता है. इस समय इनकी संख्या 2293 है.
2019 के चुनावों में ये सब पहली बार हो रहा है
भारतीय चुनाव आयोग अब तक 16 आम चुनाव करवा चुका है. लेकिन आयोग चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष रखने के लिए समय-समय पर कई चीजें आजमाता रहा है. लोकसभा चुनाव 2019 में आयोग ये नए कदम उठाने जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उम्मीदवारों की तस्वीरें
देश के कुल वोटरों में से 30 करोड़ निरक्षर हैं. आयोग ने इनका ध्यान रखते हुए अब राजनीतिक दल के चिन्हों के साथ वोटिंग मशीन में उम्मीदवारों की तस्वीर लगाने का फीचर भी जोड़ा है. साथ ही धांधली और वोटिंग मशीन में किसी भी गड़बड़ी से बचने के लिए मतदाता को वोट डालने के बाद एक चिट दी जाएगी. इसके अलावा वोटिंग मशीन ले जाने वाले वाहनों की निगरानी के लिए उन्हें जीपीएस से जोड़ा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
आरोपों की स्वघोषणा
मौजूदा संसद के करीब 186 सांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. इसमें से 112 ऐसे हैं जिन पर हत्या और बलात्कार जैसे संगीन आरोप लगे हैं. इस बार कानूनी मामलों में फंसे उम्मीदवार को कम से कम तीन अखबार या टीवी विज्ञापनों के जरिए अपने ऊपर चल रहे मामलों के बारे में आम लोगों को बताना होगा. ये विवरण उस इलाके के लोगों को देना होगा, जहां से उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.
तस्वीर: Press information department of India
दागी नेताओं के रिकॉर्ड
भारतीय थिंक टैंक 'द एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म' (एडीआर) ने 2014 की एक रिपोर्ट में कहा था कि ऐसे उम्मीदवार जिन पर संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं उनकी जीतने की संभावनाएं काफी प्रबल होती हैं. इस साल सभी उम्मीदवारों को अपने पिछले पांच साल के इनकम टैक्स रिटर्न का ब्यौरा भी सार्वजनिक करना होगा. साथ ही विदेश में अपनी संपत्ति और देनदारियों का ब्यौरा देना भी उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य किया गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Strdel
ऑनलाइन निगरानी
वेब कैमरों के जरिए इंटरनेट पर पांच हजार से अधिक मतदान और गिनती केंद्रों की लाइव स्ट्रीमिंग की जाएगी. इसके अलावा एक स्मार्टफोन ऐप के जरिए नागरिक मतदान केंद्र पर हुए किसी भी प्रकार के अभद्र व्यवहार, चुनावी गड़बड़ी, शराब या ड्रग्स जैसी बातों की शिकायत कर सकेंगे. गुमनाम शिकायतकर्ता किसी भी फोटो और वीडियो को इस ऐप कर अपलोड कर सकेंगे जिस पर अधिकारियों को 100 मिनट के भीतर कार्रवाई करनी होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
फीडबैक और सोशल मीडिया
आयोग ने इस बार एक टोल-फ्री हेल्पलाइन भी शुरू की है. इस हेल्पलाइन के जरिए मतदाता कोई जानकारी और शिकायत दर्ज कराने के अलावा वोटिंग से जुड़ा अपना फीडबैक भी दे सकेंगे. इस बार उम्मीदवारों को अपने चुनावी दस्तावेज में सोशल मीडिया खातों की भी जानकारी देनी होगी. इस नए कदम का मकसद चुनावों में सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाना है.
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ऑनलाइन विज्ञापन
अब चुनाव आयोग सोशल मीडिया के विज्ञापनों पर भी नजर रखेगा. साथ ही राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के चुनावी विज्ञापन को उनके चुनावी खर्च के साथ जोड़ा जाएगा. फेसबुक ने साफ किया है कि पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से वह राजनीतिक विज्ञापनों में उसे छपवाने वाले की जानकारी देगा. यह नई नीति फोटो शेयरिंग ऐप इंस्टाग्राम पर भी लागू होगी.
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थर्ड जेंडर
यह पहला मौका है जब भारत के तकरीबन 39,000 नागरिकों ने स्वयं को बतौर "थर्ड जेंडर" रजिस्टर किया है. देश में ट्रांसजेंडर्स लोगों की आबादी करीब 50 हजार है, लेकिन अब से पहले उन्हें पुरुष या महिला के रूप में स्वयं को रजिस्टर करना होता था.
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महिलाओं का बूथ
इन चुनावों में पहली बार हर निर्वाचन क्षेत्र को एक मतदान केंद्र सिर्फ महिलाओं के लिए तैयार करना होगा. हालांकि कर्नाटक में यह संख्या कहीं ज्यादा है. राज्य में ऐसे तकरीबन 600 मतदान केंद्र होंगे, जहां स्टाफ से लेकर सुरक्षा तक की सारी जिम्मेदारी महिलाएं संभालेंगी. (एएफपी/एए)
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अधिकृत दलों का फायदा
राष्ट्रीय पार्टी बन जाने पर सबसे ज्यादा फायदा चुनाव चिन्ह का होता है. पूरे देश में राष्ट्रीय पार्टी एक ही चुनाव निशान पर लड़ सकती है. इससे मतदाताओं में इस पार्टी की अलग छवि रहती है. राज्य स्तरीय पार्टी केवल अपने राज्य में एक चुनाव निशान पर लड़ सकती है. इसके अलावा इन दलों को रियायती दरो पर जमीन मिलती है, जिसपर वो अपना कार्यालय बना सकते हैं.
उत्तर प्रदेश में सरकार में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर इस वजह से नाराज चल रहे हैं कि उनके दल को अभी तक कार्यालय हेतु भवन का आवंटन नहीं हुआ है. इसी तरह पिछली 2012 में उत्तर प्रदेश की विधान सभा में पीस पार्टी के चार विधायक जीत गए और इसके अध्यक्ष डॉ अयूब ने भी अपनी पार्टी के लिए अलग सरकारी भवन की मांग उठा दी थी.
चुनाव प्रचार के लिए इनको मुफ्त में दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर समय भी मिलता है. इसके अलावा इनको फ्री में मतदाता सूची की प्रतिलिपि भी उपलब्ध कराई जाती है.
वहीं दूसरी ओर सामान्य दल जिनकी संख्या हजारो में है, उनको भी कम फायदे नहीं हैं. चुनाव के दौरान उनके उम्मीदवार को भी समान मौका मिलता है. इसमें मतगणना एजेंट, बूथ एजेंट इत्यादि शामिल हैं. कई बार देखने में आया है कि तमाम ऐसे छोटे मोटे दल किसी बड़ी पार्टी के लिए कवर अप की तरह काम करते हैं.
अकसर यह भी हो जाता है कि कई कैंडिडेट ऐसी पार्टी से खड़े होकर पूरे चुनाव का समीकरण ही बिगाड़ देते हैं. इस वजह से चुनाव के दौरान हर लड़ने वाली पार्टी का ख्याल रखा जाता है.
राजनीतिक दलों को चंदा भी मिलता है. इस बात की हमेशा आशंका रहती है कि कहीं इन राजनीतिक दलों का इस्तेमाल ब्लैक मनी को ठिकाने लगाने के लिए तो नहीं किया जा रहा है. चंदा देने पर इनकम टैक्स में छूट और चंदे की कोई सीमा न होने के कारण इन दलों का महत्व बना रहता है.
बहुत से छोटे दल, जिनका प्रभाव सीमित इलाके या जाति विशेष तक रहता है, वो चुनाव के समय बड़ी बड़ी पार्टियों के लिए सरदर्द बन जाते हैं. ऐसे में वो गठबंधन का हिस्सा भी बन जाते हैं. अगर त्रिशंकु लोकसभा या विधान सभा हुई, तो इन पार्टियों के एक भी जीते उम्मीदवार की पूछ बढ़ जाती है.
कैसे बनता राजनीतिक दल
भारत का निर्वांचन आयोग राजनीतिक दलों को रजिस्टर करता है. ये सब लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के सेक्शन 29ए के अंतर्गत होता है. इसके लिए निर्धारित प्रारूप पर राजनीतिक दल को अपना आवेदन देना पड़ता है. सभी जरूरी कागज के साथ दस हजार रुपये की फीस भी जमा करनी होती है.
रजिस्ट्रेशन से पहले अखबारों में विज्ञापन दिया जाता है जिससे अगर किसी को कोई आपत्ति है, तो वो सामने आ जाएं. चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार साल 5 मार्च 2019 को 16 और 8 मार्च 2019 को ही सात नए राजनितिक दलों ने रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन कर डाला, यानी चुनाव आते ही राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ने लगी.
क्या चुनाव भी लड़ते हैं?
ऐसा नहीं होता. इतनी भारी संख्या में राजनीतिक दल होने के बावजूद ये हमेशा चुनाव नहीं लड़ते हैं. इस समय भी 2000 के लगभग राजनितिक दल हैं. अगर पिछले लोकसभा 2014 के आंकड़े देखे तो केवल 464 राजनीतिक दलों ने चुनाव में हिस्सा लिया. जिसमें छह राष्ट्रीय दल, 39 राज्य स्तरीय दल और 419 अन्य रजिस्टर्ड दल थे. वहीं उससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में कुल दलों की संख्या, जिन्होंने चुनाव में हिस्सा लिया था वो 363 थी.
हालांकि सब राजनितिक दल चुनाव नहीं लड़ते हैं लेकिन फिर भी ये सैकड़ों की संख्या ही बहुत ज्यादा है. इससे सबसे पहला असर ये पड़ता है कि बैलट पेपर लंबा हो जाता है. अब जब ईवीएम से चुनाव होते हैं, तो एक ईवीएम में अधिकतम 16 कैंडिडेट्स का नाम आ सकता है, जिसमें नोटा भी शामिल है. अगर किसी क्षेत्र में कैंडिडेट 15 से एक भी ज्यादा हो गए, तो दूसरी ईवीएम साथ में जोड़नी पड़ेगी. वैसे ज्यादातर जगह पर कैंडिडेट 15 हो ही जाते हैं और दो मशीन हर बूथ पर लगानी पड़ती हैं.
अधिक राजनितिक दल होने से चुनाव चिन्ह की भी दिक्कत बढ़ जाती है. सीढ़ी, शंख, टीवी, बल्ला, रेडियो, फोन, मोटरसाइकिल, ट्रेक्टर, जेसीबी मशीन, छत का पंखा, कप प्लेट, कंप्यूटर और तमाम चीजें चुनाव चिन्ह के रूप में प्रयोग करनी पड़ती हैं. ऐसे में फ्री सिम्बल्स की लिस्ट लम्बी हो जाती है. ज्यादा पार्टियां, ज्यादा कैंडिडेट का मतलब है चुनाव मैनेजमेंट का खर्चा बढ़ जाता है. आदर्श आचार संहिता के लिए ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है.
भारतीय चुनाव: आखिर खर्चा कितना होता है?
भारत का जनमानस तय करेगा कि वह फिर पीएम नरेंद्र मोदी को बागडोर सौंपेगा या उसके मन में कुछ और है. जो भी हो, यहां पेश हैं भारतीय आम चुनाव के कुछ दिलचस्प आंकड़े.
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कितनी सीटें
आम चुनाव में लोकसभा की कुल 545 सीटों में से 543 पर चुनाव होता है. दो सीटों पर राष्ट्रपति एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों को नामांकित करते हैं. ये ऐसे यूरोपीय लोगों का समुदाय है जिन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय लोगों से शादी की और यहीं रह गए.
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कितने वोटर
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भारत में 83 करोड़ से ज्यादा वोटर थे, जो अमेरिका की आबादी का तीन गुना हैं. लेकिन इनमें से 66 प्रतिशत यानी 55.3 करोड़ लोगों ने ही अपना वोट डाला था.
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कितनी पार्टियां
पिछले आम चुनाव में कुल 8,251 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे और कुल पार्टियों की संख्या थी 460. भारत में चुनाव का सारा काम केंद्रीय चुनाव आयोग देखता है. दिल्ली में उसके मुख्यालय में तीन सौ से ज्यादा अधिकारी काम करते हैं.
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कितने उम्मीदवार
पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के आधार पर देखें तो हर निर्वाचन क्षेत्र में औसतन 15 उम्मीदवार थे. चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं एक सीट पर सबसे ज्यादा 42 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे.
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कितने बूथ
चुनाव आयोग ने 2014 के चुनाव में कुल 9,27,553 मतदान केंद्र बनाए थे और हर केंद्र पर वोट डालने वालों की औसतन संख्या 900 थी. चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार किसी भी वोटर के लिए मतदान केंद्र दो किलोमीटर से दूर नहीं होना चाहिए.
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कितने कर्मचारी
पिछले आम चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 50 लाख सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था जो पैदल, सड़क मार्ग, ट्रेन, हेलीकॉप्टर, नौका या फिर कभी कभी हाथी पर चढ़ कर भी निर्वाचन क्षेत्रों तक पहुंचे थे.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
एक वोटर के लिए मतदान केंद्र
2009 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने गुजरात में गीर के जंगलों में सिर्फ एक वोटर के लिए मतदान केंद्र बनाया था. यह जंगल एशियाई शेरों का अहम ठिकाना है और इसके लिए यह दुनिया भर में मशहूर है. (फोटो सांकेतिक है)
तस्वीर: Reuters/Danish Siddiqui
मतदान और मतगणना
भारत के आम चुनाव कई चरणों में होता है और आम तौर पर इसमें एक महीने से ज्यादा का समय लगता है. लेकिन सभी सीटों पर वोटों की गिनती एक ही दिन होती है. पहले मतपत्रों की वजह से नतीजा आने में कई दिन लगते थे, लेकिन ईवीएम आने के बाद एक दिन में ही परिणाम आ जाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/P. Gill
चुनाव का खर्च
भारत जैसे विशाल देश में चुनाव पर खर्चा भी बहुत आता है. केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2014 के आम चुनावों पर कुल 38.7 अरब रुपये यानी साढ़े पांच करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च हुए थे.
तस्वीर: Fotolia/ARTEKI
ईवीएम
2014 के आम चुनाव में कुल 18 लाख ईवीएम मशीनें इस्तेमाल की गई थीं. ईवीएम से चुनाव प्रक्रिया आसान तो हुई है लेकिन कई विपक्षी पार्टियां यह कह कर इनकी आलोचना करती हैं कि ईवीएम से गड़बड़ी होती है. कई पार्टियां बैलेट के जरिए चुनाव की मांग करती हैं. लेकिन फिलहाल ऐसी संभावना नहीं दिखती है.