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पाम ऑयल मिशन से भूमि अधिकारों और जैव विविधता को खतरा

रोशनी मजुमदार, दिल्ली से
१० सितम्बर २०२१

भारत पाम ऑयल को लेकर दूसरे देशों पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है. लेकिन पर्यावरणविद चिंतित हैं कि देश में पाम ऑयल के नए लक्ष्यों से वन्यजीवों और जंगलों के साथ-साथ आदिवासी भूमि अधिकारों को भी खतरा हो सकता है.

अंडमान निकोबार
प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि अंडमान निकोबार द्वीपों को पाम ऑइन पहल से फायदा होगातस्वीर: picture-alliance/AP Photo/G. Singh

भारत पाम ऑयल के सबसे बड़े उपभोक्ता देशों में से एक है. पाम ऑयल का इस्तेमाल साबुन से लेकर चिप्स बनाने तक लगभग हर चीज में किया जाता है. लेकिन भारत अभी भी अपने देश में इस्तेमाल होने वाले पाम ऑयल के अधिकांश हिस्से का आयात करता है. अब दूसरे देशों पर निर्भरता और आयात को कम करने के लिए, भारत सरकार पाम ऑयल के उत्पादन को बढ़ाना चाहती है. इसके लिए, सरकार ने अगस्त में एक नई योजना ‘पाम ऑयल मिशन' पेश की है.

भारत सरसों और सोयाबीन जैसे अन्य वनस्पति तेलों का भी उत्पादन करता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पाम ऑयल की मांग में काफी ज्यादा वृद्धि देखने को मिली है. ऐसे में सरकार ने पॉम ऑयल के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने का फैसला किया. इस साल पॉम ऑयल की आसमान छूती कीमतों ने भी सरकार को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है.

क्या है पाम ऑयल मिशन?

भारत सरकार ने नेशनल मिशन फॉर एडिबल ऑयल-ऑयल पाम (NMEO-OP) नाम की योजना शुरू की है. इसका उद्देश्य उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में पाम ऑयल के उत्पादन को बढ़ावा देना है. पाम ऑयल के उत्पादन के लिए पूरे साल बारिश की आवश्यकता होती है. साथ ही, इसकी सबसे अच्छी खेती उन इलाकों में हो सकती है जहां तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस या इससे कुछ ज्यादा रहता हो और नमी 80 फीसदी से भी ज्यादा हो.

भारत अपनी इस परियोजना के लिए देश के पूर्वोत्तर हिस्से और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के पूर्वी द्वीपसमूह का इस्तेमाल करना चाहता है. ये क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हैं और कई अलग-अलग प्रकार के वनस्पतियों और जीवों के घर हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनएमईओ-ओपी को "गेम-चेंजर" बताया है और कहा है कि इस परियोजना से इन क्षेत्रों को लाभ होगा. सरकार को यह भी उम्मीद है कि इस पहल से किसानों को अपनी आय बढ़ाने में मदद मिलेगी. यह एक ऐसी फसल है जो मूंगफली या सूरजमुखी जैसे पारंपरिक तिलहनों की तुलना में अधिक तेल का उत्पादन करती है.

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भारत ने तय किया नया लक्ष्य

फिलहाल, भारत तीन लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर पॉम ऑयल का उत्पादन करता है. अब 2025-26 तक छह लाख 50 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर पॉम ऑयल के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल पाम रिसर्च के वैज्ञानिक एमवी प्रसाद के अनुसार, भारत में हर साल 2.5 करोड़ टन पाम ऑयल की खपत है. देश में करीब एक करोड़ टन का उत्पादन होता है. वहीं, 1.5 करोड़ टन दूसरे देशों से आयात किया जाता है.

एमवी प्रसाद ने डॉयचे वेले को बताया कि भारत में नए इलाकों में उत्पादन शुरू होने के बाद, करीब 11 लाख मीट्रिक टन पाम ऑयल का उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी. सरकार पाम ऑयल की नई परियोजना को लागू करने के लिए एक करोड़ डॉलर से अधिक खर्च कर सकती है.

जैव विविधता कैसे प्रभावित होगी?

अधिकारियों ने बताया है कि सरकार चाहती है कि पाम ऑयल की फसलों की खेती उन जमीन पर हो जिनका इस्तेमाल किसान पहले से ही कर रहे हैं. हालांकि, पर्यावरणविद संशय में हैं और इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस परियोजना का भारत के वन्यजीवों पर किस तरह का प्रभाव पड़ सकता है.

नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर सुधीर कुमार सुथर कहते हैं कि एक प्रकार के जंगल को हटाकर दूसरे प्रकार का जंगल लगाने से कई जीवों के अस्तित्व को खतरा है. पाम ऑयल की खेती के मामले में भी ऐसा ही करने पर विचार किया जा रहा है. वे कहते हैं कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र 51 प्रकार के जंगलों का घर है. पाम ऑयल की खेती इस इलाके और इन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है.

मलेशिया के वैज्ञानिकों ने 2020 के एक अध्ययन में पाया कि वन क्षेत्रों को पाम ऑयल के बागानों में बदलने से कार्बन का उत्सर्जन भी अधिक हुआ. यह देखा गया कि 1990 से लेकर 2005 तक, पाम ऑयल के लगभग 50 से 60 प्रतिशत पेड़ पुराने जंगलों को साफ कर उन्हीं जगहों पर लगाए गए. वहीं, वर्षावनों को नष्ट करने से जलवायु परिवर्तन से निपटने के अंतरराष्ट्रीय प्रयास बाधित होंगे.

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किसान और आदिवासी समूह किस तरह प्रभावित होंगे?

विनीता गौड़ा जीवविज्ञानी हैं. उन्होंने पूर्वोत्तर भारत का व्यापक अध्ययन किया है. वह चेतावनी भरे लहजे में कहती हैं कि भारत सरकार को इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे पाम ऑयल के उत्पादक दिग्गजों के साथ जो हो रहा है उससे सीखना चाहिए. दक्षिण एशिया के ये दो देश दुनिया में इस्तेमाल होने वाले 80 से 90 प्रतिशत पाम ऑयल का उत्पादन उन इलाकों में लगाए गए पेड़ से करते हैं जहां पहले कभी जंगल हुआ करते थे.

अब पर्यावरण के संरक्षण में जुटे लोग इंडोनेशिया की सरकार से पाम ऑयल की नई खेती पर लगी रोक के समय को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. इंडोनेशिया में 2018 में पाम ऑयल की नई खेती पर अगले तीन साल के लिए रोक लगाई गई थी. इस बीच, अमेरिका ने श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार के कथित दावों पर मलेशिया के दो बागानों से पाम ऑयल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है.

सुथर के मुताबिक, पाम ऑयल की खेती से देश में भूमिगत जल स्तर नीचे जा सकता है. साथ ही, किसानों और आदिवासी लोगों द्वारा जमीन का इस्तेमाल करने के तरीके पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है. सुथर ने भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश का हवाला दिया. यहां की अधिकांश भूमि पर आदिवासी समुदायों का मालिकाना हक है. उन्होंने चेतावनी दी कि पाम ऑयल की खेती से आदिवासियों के वन अधिकार प्रभावित होंगे.

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