स्वीडन, डेनमार्क और जर्मनी में सोशल मीडिया पर भारत को लेकर एक पोस्ट वायरल हुई है. पोस्ट में दिखाया गया है कि कैसे यह जानलेवा बीमारी करोड़ों गरीबों के लिए आफत बन गई है.
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स्वीडन की एक फेसबुक यूजर ने 28 मार्च को यह पोस्ट शेयर की. 24 घंटे के भीतर यह पोस्ट कई देशों के यूजर्स तक पहुंच गई. कइयों ने इसे शेयर किया और इस पर बहस भी होने लगी. देखिए ऐसा क्या है इसमें.
एक भारतीय डॉक्टर का नजरिया
"सोशल डिस्टेंसिंग एक विशेषाधिकार है. इसका मतलब है कि आपके पास इतना बड़ा घर है कि आप इसे अमल में ला सकें. हाथ धोना एक विशेषाधिकार है. इसका मतलब है कि आपके पास लगातार पानी की सप्लाई है. हैंड सैनेटाइजर एक विशेषाधिकार है. इसका मतलब है कि आपके पास इन्हें खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे हैं. लॉकडाउन एक विशेषाधिकार है. इसका मतलब है कि आप घर पर रहने की लागत बर्दाश्त कर सकते हैं. कोरोना को दूर रखने के ज्यादातर तरीके धनी लोगों के पास ही हैं. सच तो यही है कि दुनिया भर में उड़ान भरने वाले अमीरों ने बीमारी फैलाई है और अब ये करोड़ों गरीबों को मारेगी. हम सभी, जो सोशल डिस्टेंसिंग का अभ्यास कर रहे हैं, जिन्होंने खुद को लॉकडाउन किया है, उन्हें अपने इस विशेषाधिकार का अहसास होना चाहिए. कई भारतीय इनमें से कोई भी चीज नहीं कर सकते हैं."
इसे शेयर करने वाले तमाम यूजर्स में से एक ने लिखा, "एक भारतीय डॉक्टर हमें अहसास करा रहा है कि अलग अलग रहना, कितना बड़ा विशेषाधिकार है."
एक अन्य यूजर ने कमेंट किया, "मुझे लगता है कि शुरुआत में ईरान और इटली में यह चीन के गरीब मजदूरों से फैला. बाकी बातें आपकी भावनाओं पर आधारित हैं."
रूसी भाषा में एक यूजर ने लिखा, "समस्या का समाधान करने के बजाए लोगों के भीतर शर्म का भाव न भरें."
भारत में 24 मार्च से अगले 21 दिनों के लिए लॉकडाउन है लेकिन उसके अगले दिन 25 मार्च से ही लोग पैदल अपने गांवों और कस्बों की तरफ जाने लगे. यह सिलसिला जारी है. देखिए...किस तरह से लोग जान जोखिम में डाल कर सफर कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
घर जाने की बेताबी क्या होती है जरा इन लोगों से पूछिए. यह समूह किसी भी तरह से अपने घर, अपने गांव जाना चाहता है. जिंदगी को लॉकडाउन से बचाने लोग सिर पर गठरी और गोद में बच्चा लिए निकल पड़े हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
परेशान हाल मजदूर और उनके परिवार पिछले कुछ दिनों से इसी तरह से बदहवास हैं, पहले जनता कर्फ्यू और उसके बाद 21 दिनों का लॉकडाउन. उन्हें कोई भी गाड़ी नजर आती है तो वे उसे रुकने का इशारा करते हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
कुछ लोगों के पैरों में चलते-चलते छाले पड़ गए हैं. हाथों में एक बैग है. पानी-बिस्कुट के सहारे वह सफर तय करना चाहते हैं.
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मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, गुड़गांव, दिल्ली, नोएडा में हजारों लोग किसी तरह से अपने घरों को पहुंचना चाहते हैं. वे कहते हैं कि शहर में अब रहकर क्या करना जब कोई काम ही नहीं है.
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कई लोगों का कहना है कि वे पिछले कुछ दिनों से भरपेट खाना नहीं खा पाए हैं. उन्होंने बताया कि वे जहां काम करते थे, वहां से उन्हें पांच-पांच सौ रुपये देकर जाने को कह दिया गया.
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यह परिवार नोएडा में रहता था, लेकिन तालाबंदी की वजह से उसके पास काम नहीं है और ना ही इतने पैसे कि आगे का खर्च निकल पाए. इसलिए पति-पत्नी ने झांसी के लिए पैदल ही चलने का फैसला किया.
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कुछ दिनों पहले तक यह लोग इस शहर का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन अब उन्हें इस शहर में अपना भविष्य नजर नहीं आता है. वे कहते हैं, “कोरोना से पहले, हमें भूख मार डालेगी.“
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कई प्रवासी मजदूर छोटे बच्चे और महिलाओं के साथ सफर कर रहे हैं. सफर में जंगल से भी गुजरना होगा और सुनसान हाइवे से भी. खतरों के साथ उन्हें सैकड़ों किलोमीटर सफर तय करना है.
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जो लोग अपने गांवों के लिए निकले हैं, उनके पास खाने-पीने का पर्याप्त इंतजाम नहीं है. ऐसे में कुछ लोग उन्हें खाने के पैकेट देकर मदद कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
राज्य सरकारों ने ऐसे लोगों के खाने पीने का इंतजाम किया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए बसों का इंतजाम किया है. दिल्ली सरकार ने लोगों से अपील की है कि वे जहां हैं, वहीं रहें.