भारत से दोस्ती करने आईं जर्मन महिला कारोबारी
२६ फ़रवरी २०१२जर्मनी की वी. डी. यू नाम की संस्था से जुड़ीं यह सभी महिला उद्यमी, भारत को पास से देखना और समझना चाहती हैं और दोस्ती के साथ- साथ कारोबारी रिश्तों को भी मजबूत करना चाहती है.
क्या है वी. डी. यू ?
1954 में मात्र 31 महिला उद्यमियों के साथ शुरू हुए इस व्यापारिक संगठन में आज सोलह सौ सदस्य हैं जो जर्मनी के अलग अलग हिस्सों में सफलता के साथ अपना कारोबार कर रही हैं. संगठन से जुड़ी महिलाएं आज पांच लाख लोगों को रोजगार देते हुए लगभग 85 अरब यूरो का कारोबार कर रही हैं. संगठन का उद्देश्य महिला उद्यमियों के लिए रोजगार के नए अवसर और क्षेत्र तलाशने के अलावा उन्हें तकनीकी और व्यापारिक जानकारी भी उपलब्ध कराना है. संगठन का मुख्यालय राजधानी बर्लिन में है पर उसके सदस्य पूरे देश में फैले हुए हैं.
भारत आने का उद्देश्य
महिला कारोबारियों का यह दल भारत पहुंचने के बाद सबसे पहले जयपुर पहुंचा. दल की ज्यादातर सदस्यों का कहना है, "भारत अब आर्थिक रूप से तेजी से विकास कर रहा है जहां अब व्यापार की बड़ी संभावनाएं हैं और इस के कोने कोने में बिखरे प्रकृति, कला, विरासत और ऐतिहासिक स्थलों के रंग किसी को भी लुभाने के लिए काफी हैं."
भारत को नजदीक से देखने की चाह ने दिल्ली से जयपुर का सफर बस से कराया और रास्ते में पड़ने वाले गांवों और कस्बों ने तो जैसे भारत के मूल से ही मिलवा दिया. सड़क पर हॉर्न बजाते वाहन, लोगों की रेलमपेल, सजी धजी महिलाएं, ढाबों पर मुस्कराहट के साथ परोसे जाने वाले स्वादिष्ट व्यंजनों ने तो जर्मनी से आने की पूरी थकावट ही उतार डाली.
दल की मुखिया स्टेफानी ब्शॉर ने कहा, "भारत से व्यापारिक संबंधों की यदि शुरुआत करनी हैं तो ज़रूरी है कि भारतवासियों को भी पहले समझा जाए और यहां की जरूरतों के आधार पर ही कारोबारी फैसले लिए जाएं". वे पहली बार भारत आई हैं और पर्यटन के अलावा भारतीय महिला उद्यमियों से मिल कर ऐसी नेटवर्किंग करना चाहती हैं जिस से दोनों देशों की महिलाएं एक दूसरे के देश में खुल कर कारोबार कर सकें.
वे कहती है कि इसी उद्देश्य से फेडरेशन आफ इंडियन चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के साथ व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर, भारत की विदेश राज्य मंत्री से मुलाकात, गुडगांव में जर्मन सेंटर का भ्रमण और मुंबई के इंडियन मर्चेंट्स चैंबर की महिला सदस्यों के साथ बैठक के कार्यक्रम रखे गए हैं. वे बताती हैं कि उनके दल में जर्मनी के कमोबेश सभी क्षेत्रों की महिलाएं शामिल हैं जो भवन निर्माण, गहने, फैशन, स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे अलग अलग उद्योग धंधों से जुडी हुई हैं. पेशे से कर सलाहकार स्टेफानी भारतीय मसालेदार खाने की खासी दीवानी हैं और तेज मिर्ची पर आने वाली हिचकी को बहुत एन्जॉय करती हैं.
आखिर क्यों आकर्षित करता है भारत
डॉक्टर डाग्मार श्टाइनमेत्स कहती हैं, "भारत विभिन्नताओं के साथ समानताओं वाला देश है जहां का मजबूत लोकतंत्र और सामाजिक आर्थिक स्वतंत्रता किसी को भी आकर्षित करने में सक्षम है." वे पिछले दस सालों से उर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का व्यवसाय कर रही हैं. वे 1945 में बने अंतरराष्ट्रीय महिला उद्यमी संगठन एफसीईएम की महासचिव हैं और चाहती है कि भारतीय महिला संगठन भी उन के संगठन से जुड़ें.वे बताती हैं कि एफसीईएम का अगला अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन बर्लिन में इस साल 27 सितम्बर से होना है और अगर भारत की महिला कारोबारी इस में भाग लेती हैं तो उनका भारत आना सार्थक हो जायेगा.
मोटर स्पोर्ट्स में अपने पति को गंवा चुकी डाग्मार का कहना है कि भारत के उत्साही लोग, यहां का तनाव रहित माहौल और ऐतिहासिक विरासत किसी को भी जिन्दगी जीना सिखा सकते हैं. सड़कों पर वाहनों की भीड़ हैं और हर किसी का हाथ हॉर्न पर भी है पर मजाल है कि किसी के चेहरे पर शिकन की एक लकीर भी उभरे. वे कहती है कि भारत के इस चित्र को बनाने के लिए अनगिनत रंगों की जरुरत पड़ेगी.
कमाल के हैं भारत के लोग
हैम्बुर्ग की प्लास्टिक व्यवसायी अल्फ्रीडे डॉर्न पिछले एक साल से भारतीय व्यवसायियों को अपने उत्पादों का निर्यात कर रही हैं. वे इस बात से खुश हैं कि उत्तम गुणवत्ता की पहचान रखने वाले भारतीय व्यवसायियों को उन का माल अत्यंत पसंद आ रहा है और वे निर्यात के भरपूर आर्डर भी दे रहे हैं. भारतीयों के कार्य कुशल होने का प्रमाण वे उन के यहां कंप्यूटर का काम संभाल रहे एक दक्षिण भारतीय के रूप में देते हुए कहती हैं कि जब से उस होनहार युवक ने काम संभाला है, उन के कंप्यूटर उन के इशारों पर चलने लगे हैं.
लुभा लिया जयपुर ने
आमेर का किला हो या हो चौमूं का सामोद महल या फिर हो गुलाबी नगर की तंग गलियों की सैर, जर्मन दल की हर सदस्य भरपूर जी लेना चाहती थी जयपुर में गुजरा हर पल और इस की सुनहरी यादों को कैद कर लेना चाहती थी अपने कैमरे में. सबरीना दल के अन्य सदस्यों की ही तरह आमेर के किले में हाथी की सवारी करना चाहती थीं पर इस के लिए उन्हें जर्मनी में अपनी मां को राजी करने के लिए मोबाइल पर काफी जद्दोजहद करनी पड़ी. मां की अनुमति ने जैसे अरमानों को पंख लगा दिए और वे कूद कर जा बैठी गजराज पर.
राजस्थानी गीत संगीत के बीच मनुहार के साथ परोसा गया राजस्थानी भोजन हर किसी को महारानी होने का आभास करा रहा था. यात्रा की आयोजक डेस्टिन एशिया की आंद्रेया थम्शर्ण अपनी साड़ी में इठला रही थी और उनके साथी दिलीप चौहान दो देशों की संस्कृतियों को एक होता हुआ देख रहे थे.
उल्लास और उत्साह से लबरेज जर्मनी की यह महिला कारोबारी जयपुर से आगरा, दिल्ली और मुंबई होते हुए अपने देश वापस होंगी पर भारत में अपनी सफलता, मेहनत और जुझारूपन का उदाहरण छोड़ गई हैं.
रिपोर्टः जसविंदर सहगल, जयपुर
संपादनः एन रंजन