भारत सरकार इस समय देश से करीब 40,000 अवैध रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश और म्यांमार लौटाने पर बातचीत कर रही है. राज्य सरकारों को मिले हैं इनकी पहचान के लिए टास्क फोर्स गठित करने के निर्देश.
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भारत सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया है कि राज्य सरकारों को रोंहिग्या की पहचान के लिए टास्क फोर्स गठित करने का निर्देश दिया गया है. 1990 के दशक की शुरुआत से ही हजारों, लाखों रोहिंग्या मुसलमान बौद्ध-बहुल देश म्यांमार में जारी साम्प्रदायिक हिंसा बचने के लिए बांग्लादेश भागने लगे थे. इनमें से कई लोग बांग्लादेश के साथ खुली सीमा पार कर हिंदू-बहुल देश भारत पहुंच गये.
भारत सरकार का अनुमान है कि इस समय देश में रह रहे करीब 14,000 रोहिंग्या ही यूएन शरणार्थी एजेंसी के साथ पंजीकृत हैं और बाकी सभी अवैध रूप से रह रहे हैं, जिन्हें वापस भेजा जाना चाहिये. भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और ना ही उस पर देश में ही कोई राष्ट्रीय कानून है.
जान बचाने के लिए भागें भी कैसे?
म्यांमार में तटीय इलाकों में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की नावें जब्त कर ली गई हैं. भागने के लिए अब रोहिंग्या प्लास्टिक की खतरनाक नावों का सहारा ले रहे हैं.
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नावें जब्त
म्यांमार प्रशासन ने रखाइन प्रांत में रोहिंग्या समुदाय की नावें जब्त कर लीं. अधिकारी चाहते हैं कि रोहिंग्या नावों के सहारे भाग न सकें. प्रशासन का दावा है कि इलाके में उग्रवादी गतिविधियां चल रही हैं, जिन्हें रोकने के लिए ऐसा किया गया है.
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पेट पर लात
अधिकारियों द्वारा कई नावें जब्त किये जाने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों को रोजी रोटी के लाले भी पड़े हैं. आम तौर पर मछली पकड़कर परिवार चलाने वाले मायूस हैं. कुछ ने प्लास्टिक और लकड़ी का सहारा लेकर कामचलाऊ नावें बनाई. अब इन्हीं नावों के जरिये मछली पकड़ी जाती है.
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नाकाफी कमाई
प्लास्टिक की नावें समुद्र में बहुत दूर तक नहीं जा पातीं. इसीलिए तट के करीब ही मछुआरे थोड़ी बहुत मछली पकड़ लेते हैं और बीच पर ही उन्हें बेच देते हैं.
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जान बचाने का जरिया
रोहिंग्या समुदाय के लोगों को लगता है कि नावें ही जान बचाने का सबसे बढ़िया जरिया हैं. हिंसा की आंशका या भनक लगते ही लोग जरूरी साजो सामान लेकर संमदर में निकल पड़ते हैं.
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पीछे छूटती जिंदगी
प्लास्टिक की नावों पर बच्चों और महिलाओं को नहीं चढ़ाया जाता. सिर्फ नौजवान इनका इस्तेमाल करते हैं. वे और उनका परिवार जानता है कि हर सफर आखिरी सफर भी हो सकता है.
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आलोचना दबाने का तरीका
म्यांमार के अधिकारियों को लगता है कि अगर रोहिंग्या भाग नहीं पाएंगे तो दुनिया को कुछ पता भी नहीं चलेगा. भागकर दूसरे देशों में पहुंचे लोगों के जरिये ही म्यांमार के रोहिंग्या समुदाय की खबरें सामने आती हैं.
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गृह मंत्रालय के प्रवक्ता केएस धतवालिया ने कहा, "बांग्लादेश और म्यांमार दोनों के साथ इन विषयों पर डिप्लोमौटिक स्तर की वार्ता चल रही है." उन्होंने उम्मीद जतायी कि "सही समय पर इस पर और स्पष्टता आ जाएगी."
गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने संसद में दिये अपने बयान में जानकारी दी थी कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को "जिला स्तर पर टास्क फोर्स गठित कर अवैध रूप से रह रहे विदेश नागरिकों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने" के निर्देश दिये हैं. हाल ही में म्यांमार में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेकर लौटे रिजिजू ने यह नहीं बताया है कि उन्होंने वहां रोहिंग्या मुद्दे पर बात की या नहीं. इस बारे में म्यांमार से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पायी है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि रोहिंग्या लोगों को वापस भेजना और त्यागना "अनर्थक" कदम होगा. सवा अरब से अधिक आबादी वाले भारत में संसाधनों और नौकरियों की कमी से जूझ रहे भारतीय देश में रह रहे रोंहिग्या को बोझ ही मानते हैं. इसके अलावा देश में बढ़ रही राष्ट्रवादी, इस्लाम-विरोधी भावनाओं के कारण भी रोंहिग्या को लेकर घृणा में बढ़ोत्तरी हुई है. भारत में रोहिंग्या लोग मुख्य रूप से जम्मू, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और हैदराबाद इलाकों में रहते हैं.
आरपी/ओएसजे (रॉयटर्स)
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
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दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
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सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.