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भारत से मुखातिब नवाज शरीफ

१३ मई २०१३

पाकिस्तान में चुनाव के बाद भारत के साथ रिश्ते अचानक करवट लेने लगे हैं. नवाज शरीफ ने शपथ समारोह के लिए भारतीय प्रधानमंत्री को दावत दे दी, तो सिंह ने उन्हें जीत पर बधाई दी. क्या वाकई दोनों देशों के रिश्ते बदलने वाले हैं.

तस्वीर: Reuters

शरीफ से जब पूछा गया कि क्या वे भारतीय प्रधानमंत्री को शपथ ग्रहण समारोह के लिए बुलाना चाहते हैं, तो उन्होंने कहा, "मुझे बहुत खुशी होगी कि जब मैं उन्हें बुलाऊंगा. अगर वे आते हैं तो बहुत अच्छा लगेगा." शरीफ ने बताया कि भारतीय प्रधानमंत्री ने जीत पर बधाई पहले ही दे दी है, "उन्होंने कल मुझे फोन किया और मुझे बधाई दी. उन्होंने भी मुझे भारत बुलाया है."

भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के दिनों में अगर मुंबई के आतंकवादी हमले को छोड़ दिया जाए, तो 1999 में कारगिल का संघर्ष शरीफ के प्रधानमंत्री काल में ही हुआ था. उसी साल भारत ने कंधार विमान अपहरण कांड के बाद पांच पाकिस्तानी आतंकवादियों की रिहाई की, हालांकि उस वक्त तक शरीफ का सत्ता पलट हो गया था.

तस्वीर: Reuters

जानकारों का मानना है कि अगर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री फौज के जनरलों को दूर रखने में कामयाब रहे, तो यह भारत के लिए अच्छा होगा. शरीफ ने दावा किया था कि कारगिल का संघर्ष उनकी राय के बगैर शुरू किया गया था. उनका कहना है कि उस वक्त के फौजी प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने ऐसा किया. मुशर्रफ ने ही बाद तख्ता पलट किया था.

भारत के पूर्व विदेश सचिव ललित मानसिंह का कहना है कि शरीफ ने पिछली बार प्रधानमंत्री रहते हुए इस बात का इशारा दिया था कि वह भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहते हैं. तभी दोनों देशों के बीच लाहौर समझौता भी हुआ था, "हमने पहले भी उनके साथ काम किया है और उनके साथ काम करना आसान है. भारत के साथ बातचीत शुरू करने में जितना योगदान नवाज शरीफ का रहा है, उतना किसी दूसरे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का नहीं रहा है."

पाकिस्तान के समीक्षक अहमद रशीद का कहना है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते तभी अच्छे रह पाएंगे, जब सेना खुद को इससे दूर रखे. उनका कहना है कि शरीफ 1990 के दशक में दो बार प्रधानमंत्री रहे और उस दौरान ऐसा नहीं हो पाया, "दोनों बार उन्होंने भारत के साथ शांति बनाने की कोशिश की लेकिन सेना ने दोनों बार उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया."

रशीद का कहना है कि पाकिस्तानी सेना के प्रमुख परवेज कियानी इस बात से खुश नहीं हैं कि भारत उनके देश में ज्यादा निवेश करे और ऐसे में शरीफ के लिए काम करना इस बार भी आसान नहीं होगा.

भारत के सुरक्षा एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी का भी कहना है कि अगर पाकिस्तानी सेना खुद को थोड़ा पीछे करती है, तो यह दोनों ही देशों के लिए अच्छा होगा, "जब तक शरीफ सरकार असैनिक-सेना समीकरण को नहीं बदलती है, मुझे नहीं लगता है कि दोनों देशों के रिश्तों में कोई बड़ा बदलाव होने वाला है." चेलानी का कहना है, "कारगिल से लेकर मुंबई हमलों तक हमने देखा है कि पाकिस्तानी सेना का हाथ रहा है. इसलिए भारत को कूटनीतिक तौर पर कोशिश करनी चाहिए कि पाकिस्तान में असैनिक सरकार मजबूत हो."

कारगिल भी शरीफ के काल में हीतस्वीर: picture-alliance/dpa

भारत और पाकिस्तान ने तीन बार लड़ाई लड़ी है, जिनमें से दो बार कश्मीर के मुद्दे पर जंग हुई है. कारगिल के संघर्ष के बाद आम तौर पर दोनों देशों में ठंडक रही है लेकिन इस साल के शुरू में नियंत्रण रेखा के पास जवानों की मौत के बाद दोनों देशों में तकरार जरूर हुआ था.

26/11 वाले मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता टूट गई, हालांकि बाद में निचले स्तर पर यह दोबारा शुरू हुई है. शरीफ एक कारोबारी परिवार से आते हैं और जानकारों का मानना है कि इसकी वजह से वह दोनों देशों के कारोबारी रिश्तों पर ध्यान देंगे. मानसिंह का कहना है, "वह सीमा पार व्यापार को प्राथमिकता बनाएंगे और कोशिश करेंगे कि दोनों देशों के बीच आयात निर्यात पर लगी बंदिशों को खत्म किया जा सके."

हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच चीन का रोल भी अहम होगा, जो पाकिस्तान का करीबी रहा है. दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार श्रीराम चौलिया का कहना है, "वे कोशिश करेंगे कि भारत सिर्फ दक्षिण एशिया की एक शक्ति के रूप में काम करे ताकि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के प्रभुत्व के लिए खतरा न हो."

एजेए/एएम (एएफपी, रॉयटर्स)

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