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भारत से रिश्ता बढ़ाए यूरोप

६ अक्टूबर २०१२

मंदी से जूझते यूरोप के लिए जरूरी है कि भारत से उस के रिश्ते मजबूत हों. भारत और जर्मनी की दोस्ती के साझा रंग ढूंढने के लिए भारत और जर्मनी में महोत्सव हो रहे हैं. इनके बीच जर्मन राजदूत उम्मीद भरे नजर आते हैं.

तस्वीर: DW

भारत में जर्मनी के राजदूत मिषाएल श्टाइनर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "भारत के साथ हमारे रिश्ते में जीत ही जीत है. हम भारत के और करीब आना चाहते हैं और यह कई क्षेत्रों में हो रहा है. मेरा मानना है कि हम कर्ज संकट से निकल जाएंगे. आखिरकार मजबूत यूरोपीय संघ भारत के लिए भी अच्छा है."

भारत में जर्मनी के राजदूत मिषाएल श्टाइनरतस्वीर: DW

जर्मन राजदूत की उम्मीदों से विश्लेषक भी कमोबेश सहमत हैं. उनका कहना है कि भारत को अपनी बढ़ती आर्थिक ताकत का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए भी करना चाहिए. एपीजे यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर सी जयंती कहती हैं, "अब तक भारत और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच जो भी सहयोग हो रहा है वह द्विपक्षीय है. इसे बदलना होगा. भारत की यूरोपीय संघ के साथ साझेदारी को दोनों इलाकों में रणनीतिक साझेदारी के रूप में देखे जाने की जरूरत है."

मुक्त व्यापार समझौता

भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता कई सालों से चर्चा में हैं लेकिन कई तारीखें बीत गईं और अब तक यह करार नहीं हो सका है. यह कहना मुश्किल है कि इसके लिए जिम्मेदार यूरोप का मौजूदा आर्थिक संकट है या फिर भारत की नीतियों में ठहराव जिसकी वजह से करार नहीं हो पा रहा है. सेंटर फॉर यूरोपीयन स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर गुलशन सचदेवा कहते हैं, "जर्मनी भले ही यूरोपीय संघ में भारत का सबसे बड़ा साझीदार हो लेकिन भारतीय कारोबारी वहां दिख रहे बुरे हालात की वजह से बहुत उत्साह में नहीं हैं. इस संकट ने यूरोप की निवेश के लिए उपयुक्त जगह की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है और सच्चाई तो यह है कि वहां बीते कुछ सालों में निवेश घटा है."

जर्मनी देख रहा है भारत में बड़ा बाजार

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भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक यूरोपीय संघ और भारत के बीच कारोबार फिलहाल 67 अरब यूरो का है जबकि चीन और यूरोपीय संघ का कारोबार 423 अरब यूरो का है. कई जानकारों का मानना है कि मुक्त व्यापार समझौता दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा. इसके बाद भारत भी यूरोपीय संघ से चीन की तरह ही अपनी मांगें मनवा सकेगा. सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में असिस्टेंट प्रोफेसर हैप्पीमॉन जैकब ने डीडब्ल्यू से कहा, "अभी हो यह रहा है कि यूरोपीय संघ ड्रैगन यानी चीन से प्रेम कर रहा है और हाथी को लुभा रहा है जो हम हैं. यह समीकरण निश्चित रूप से कुछ सालों में बदलेगा."

रक्षा सौदे पर नजर

20 अरब डॉलर के मल्टी मीडियम कॉम्बैट रोल एयरक्राफ्ट का सौदा फ्रांस के डेसो रफायल को मिला और जर्मनी के नेतृत्व वाला यूरोफाइटर निराश हुआ. लेकिन भारत के इस फैसले पर कोई आवाज नहीं उठी. रक्षा विश्लेषक जोजी जोसेफ इसके बारे में कहते हैं, "रक्षा सौदे में दांव पर सिर्फ पैसा ही नहीं. यह राष्ट्रीय गौरव का भी मसला है. नौकरियां पैदा करने के साथ ही सबसे जरूरी बात यह है कि यूरोपीय संघ भारत के साथ गहरे रणनीतिक रिश्ते बनाना चाहता है." भविष्य की बात करें तो विश्लेषक मानते हैं कि यूरोप को भारत के साथ ऐसा रिश्ता बनाना होगा जो वास्तविकता से भरा हो और तभी इसका पूरा फायदा उठाया जा सकेगा.

रिपोर्टः मुरली कृष्णन/एनआर

संपादनः महेश झा

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