सीरिया का इदलीब इलाका इस वक्त शांत तो है लेकिन बेहद तनाव में है. विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाके में रूस और सीरिया के हवाई हमले रुक गए हैं.
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इदलीब में बीते तीन महीनों की लड़ाई में कम से कम 10 लाख लोग बेघर हुए है. गुरुवार को मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और तुर्की के प्रधानमंत्री रेचप तैयप एर्दोवान के बीच चली लंबी बातचीत के बाद आखिरकार युद्धविराम का एलान हुआ.
इलाके के बाशिंदों और लड़ाकों का कहना है कि मुख्य मोर्चे पर एक तरफ रूसी और सीरिया के हवाई हमले चल रहे थे और दूसरी तरफ तुर्की ड्रोन और टैंक से मुकाबला कर रहा था. युद्धविराम का घोषित वक्त शुरू होने के कुछ घंटों बाद हमले थम गए और खामोशी फैल गई.
चश्मदीदों का कहना है कि मशीनगनों और मोर्टार से छिटपुट गोलीबारी की आवाजें आई हैं. हालांकि यह उत्तर पश्चिमी अलेप्पो और दक्षिणी इदलीब के कुछ मोर्चों की तरफ से आई हैं जहां असद की सेना और इरानी मिलीशिया ने मोर्चा संभाल रखा है.
दूसरे इलाकों में लड़ाई फिलहाल थम गई है. विपक्षी नेता इब्राहिम अल इदलीबी विद्रोही लड़ाकों के संपर्क में हैं. उनका कहना है, "शुरुआती घंटों में लड़ रहे सभी पक्षों की ओर हमने बेहद तनावपूर्ण शांति देखी. हर कोई इस से वाकिफ है कि किसी भी तरफ से उल्लंघन का करारा जवाब आएगा. लेकिन यह युद्धविराम बहुत नाजुक है."
सीरिया के सरकारी मीडिया ने ताजा युद्धविराम संधि के बारे में खबर नहीं दी है. विपक्षी नेता इसके जारी रहने पर आशंका जता रहे हैं क्योंकि इसमें तुर्की की मुख्य मांग को शामिल नहीं किया गया है और इस वजह से इसकी आलोचना भी हो रही है. तुर्की चाहता है कि सीरियाई सेना इदलीब में तय हुए बफर जोन से बाहर निकल जाए. इस बफर जोन पर रूस और तुर्की ने 2018 में सोची में हुई बैठक में सहमति बनाई थी.
इस बार दोनों नेता एम4 हाइवे के पास एक सुरक्षित कॉरिडोर बनाने पर रजामंद हुए हैं जो इदलीब के पूर्वी हिस्से से लेकर पश्चिमी हिस्से तक जाएगा. 15 मार्च से यहां दोनों और के सैनिक संयुक्त रूप से गश्त लगाएंगे.
उत्तरपश्चिम में मौजूद हाइवे पर नियंत्रण हासिल करना सीरिया के लिए रूस समर्थित अभियान का सबसे बड़ा लक्ष्य रहा है. विद्रोही लड़ाकों को इसी हाइवे से खुराक मिलती रही है. युद्ध से पहले प्रतिबंधों में घिरने के बाद सीरिया की अर्थव्यवस्था की जो दुर्गति हुई है उससे निबटने के लिए उसे इस मार्गों की जरूरत है.
असद के विरोधियों की इच्छा के उलट तुर्की और रूस के बीच हुई संधि में सेफ जोन का जिक्र नहीं है. लाखों की तादाद में शरणार्थियों को इसी सेफ जोन में रखने की योजना थी ताकि वहां से उन्हें उनके घरों तक वापस भेजा जा सके. ये लोग रूस समर्थित हमलों की वजह से अपना घर छोड़ कर भाग आए हैं.
सीरिया की सरकारी सेना से बगावत कर विद्रोहियों में शामिल हो चुके भूतपूर्व जनरलअहमद रहाल का कहना है, "किसी ने भी सेफ जोन या फिर ऐसे इलाके की बात नहीं की जहां से सेना हटाई जाएगी. जब सेना हटेगी नहीं तो फिर विस्थापित कहां जाएंगे. वो शासन के अधीन वाले इलाकों में जाने के लिए तैयार नहीं होंगे. आज जो हम सुन रहे हैं उसमें राहत की कोई बात नहीं है."
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि हमलों की वजह से करीब 10 लाख लोग बेघर हुए हैं और बीते 9 साल से चली आ रही जंग में यह सबसे बड़ा पलायन है.
रहाल ने बताया कि सीरिया की सीमा पर और उसके भीतर तुर्की बड़ी सेना तैनात कर रहा है और उसके हिसाब से नतीजे नहीं आए हैं. सीरिया के विद्रोही लड़ाकों का कहना है कि तुर्की ने करीब 15000 सैनिकों को तैनात किया है ताकि रूस समर्थित हमलों के बाद इदलीब में बढ़ रही सेना को रोका जा सके. इदलीब में कई युद्धविराम हुए हैं लेकिन रूस समर्थित सेनाओं के आगे बढ़ने के बाद वो सब टूट गए.
एनआर/ओएसजे(रॉयटर्स)
क्रांति और विरोध से क्या मिला अरब दुनिया को
अरब दुनिया के देशों बीते आठ सालों में क्या कुछ नहीं झेला. ट्यूनीशिया की क्रांति ही देश में लोकतंत्र ला पाई, वहीं बाकियों को मिला युद्ध, बर्बादी और पहले से भी ज्यादा दमन. एक नजर.
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बहरीन
छोटे से शिया बहुल खाड़ी देश बहरीन में सुन्नी खलीफा वंश का राज चलता है. इन्हें अपने पड़ोसी शक्तिशाली सऊदी अरब का भी समर्थन है. 2011 से कई बार अशांति और असंतोष की खबरें आईं, जब प्रशासन ने राजनीतिक सुधारों की मांग करने वाले शिया समुदाय के प्रदर्शनों को कुचला. देश में शासन के विरोधियों का पक्ष लगातार बढ़ता गया और बदले में सैकड़ों विरोधियों को या तो प्रशासन ने जेल में डाल दिया है या नागरिकता छीन ली है.
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सीरिया
आठ साल से हिंसा और युद्ध की चपेट में रहा सीरिया तबाह हो गया है. चार लाख लोग मारे गए जबकि 1.2 करोड़ लोग बेघर हो गए. शुरुआत 15 मार्च, 2011 को शांतिपूर्ण प्रदर्शन से हुई. जो आगे चलकर राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ हथियारबंध आंदोलन बना. 2012 से यहां युद्ध छिड़ा, जिसे बाहर से रूस, ईरान और लेबनान के शिया संगठन हिज्बुल्लाह का समर्थन मिला. एक बार फिर देश का दो-तिहाई इलाका सरकार के नियंत्रण में आ चुका है.
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लीबिया
15 फरवरी 2011 को देश में 42 साल से राज कर रहे मोअम्मर गद्दाफी के खिलाफ विरोध फूटा. प्रदर्शनों को कुचलने में खूब हिंसा और दमन हुआ. असंतोष बढ़ कर हथियारबंद विद्रोह बना, जिसे नाटो की मदद मिली. 20 अक्टूबर को गद्दाफी पकड़ा गया और जान से मारा गया. अब देश में समांतर शासन है. राजधानी त्रिपोली में अंतरराष्ट्रीय-समर्थन वाली फयाज अल-सराज की सरकार तो वहीं पूर्व में सेना-समर्थित खलीफा हफ्तार की सरकार चलती है.
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ट्यूनीशिया
2010 में पुलिस प्रताड़ना से तंग आकर रेड़ी लगाने वाले एक व्यक्ति ने खुद को जला कर जान दे दी. इस घटना ने देश में फैली गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं के ढेर में चिंगारी लगा दी. जनता के दबाव के चलते लंबे समय से राज कर रहे राष्ट्रपति को देश छोड़ भागना पड़ा और फिर देश में शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ. 2014 में देश ने नया संविधान स्वीकार किया जिसमें राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित किया गया.
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मिस्र
2011 में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ 18 दिनों तक चले सामूहिक विरोध प्रदर्शनों में 850 लोग मारे गए. तीस साल के राज के बाद पद छोड़ना पड़ा. जून 2012 में मोहम्मद मोर्सी जनता द्वारा चुने गए देश के पहले असैनिक प्रमुख बने. लेकिन अल-सीसी के नेतृत्व में सेना ने मोर्सी को पद से हटा दिया और मोर्सी समर्थकों को निशाना बनाया जाने लगा. दो बार से राष्ट्रपति रहे सीसी पर दमनकारी सरकार चलाने के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. A. E. Ghany
यमन
तीन दशकों से सत्ता भोगने वाले अली अब्दुल्ला सालेह को कड़ा विरोध झेलने के बाद फरवरी 2012 को हटना पड़ा और उनके डिप्टी अब्दरब्बू मंसूर हादी ने पद संभाला. 2014 में हूथी विद्रोहियों ने हमले कर राजधानी सना समेत देश के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया. अगले एक साल में सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन ने वहां हूथियों का विजयरथ रोका. हिंसा में हजारों लोग मारे गए और करीब 1 करोड़ लोग भूखमरी की कगार पर हैं.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
अल्जीरिया
अल्जीरिया में 22 फरवरी, 2019 को अचानक से विरोध प्रदर्शनों की लहर सी उठी. सन 1999 से राज कर रहे अब्देलअजीज बूतेफ्लिका बीमार थे, फिर भी पांचवी बार उम्मीदवार बनना चाहते थे. दबाव के चलते 11 मार्च को बूतेफ्लिका ने अपना नामांकन तो वापस ले लिया लेकिन चुनावों की तारीख को भी स्थगित करवा दिया. विरोध जारी रहा तो 2 अप्रैल को बूतेफ्लिका ने इस्तीफा दे दिया.