1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भाषाएं जानने से याददाश्त में मदद

९ नवम्बर २०१३

क्या ज्यादा भाषाएं बोलने वालों की याददाश्त ज्यादा दिन तक साथ देती है? हैदराबाद की रिसर्चर सुवरना अल्लाडी ने भारत के अशिक्षित वर्ग में कुछ ऐसा ही पाया.

तस्वीर: Pius Utomi Ekpei/AFP/Getty Images

अमेरिकी साइंस पत्रिका न्यूरोलॉजी में छपी अल्लाडी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आपको जितनी ज्यादा भाषाओं का ज्ञान होगा भूलने की बीमारी उतना ही आपसे दूर रहेगी. रिसर्चरों की टीम ने भारत के 648 लोगों पर यह अध्ययन किया. औसतन 66 वर्ष की आयु वाले इन सभी लोगों को भूलने की बीमारी थी. लेकिन जब उन्होंने आंकड़े मिलाए तो पाया कि जिन लोगों को एक से ज्यादा भाषाएं आती थीं उनकी याददाश्त पर करीब साढ़े चार साल बाद असर पड़ा.

रिसर्च में शामिल किए गए 14 फीसदी लोग अशिक्षित थे. यानि उनकी याददाश्त का संबंध शिक्षित होने से नहीं बल्कि ज्ञान से है. इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली न्यूरोलॉजिस्ट सुवरना अल्लाडी हैदराबाद के निजाम्स इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में रिसर्चर हैं. डॉयचे वेले ने उनसे इस रिसर्च पर बात की.

डीडब्ल्यू: इस रिसर्च को अशिक्षित लोगों पर करने के पीछे क्या मकसद था?

अल्लाडी: डेमेंशिया यानि याददाश्त कम होने की बीमारी के बारे में यह रिसर्च पहले कनाडा में हो चुकी है, लेकिन भारत में ज्यादातर लोग एक से ज्यादा भाषाएं बोलते हैं. हम यह जानना चाहते थे कि याददाश्त का सिर्फ भाषाओं के ज्ञान से संबंध है या पढ़ाई लिखाई से भी. इसलिए हमने ऐसे लोग चुने जो अशिक्षित हैं. इससे हमें पता चला कि भूलने की बीमारी से बचने में भाषाओं का ज्ञान मदद करता है.

तस्वीर: Fotolia/Web Buttons Inc

डीडब्ल्यू: कैसे होता है यह मस्तिष्क में?

अल्लाडी: जब हम एक भाषा बोलते बोलते बीच में दूसरी भाषा बोलने लगते हैं तो मस्तिष्क का एक खास हिस्सा एक खास तरह के नियंत्रण का प्रदर्शन करता है. जैसे अभी अगर मैं हिन्दी बोल रही हूं और मुझे पता हो कि मुझसे बात करने वाले को अंग्रेजी भी आती है, तो बीच बीच में कुछ वाक्य मैं अंग्रेजी में भी बोलती रहूंगी. इसके अलावा घर में काम करने वालों से हम अक्सर उनके सहूलियत की भाषा या दफ्तर में अक्सर अलग भाषा बोलते हैं. ऐसे में दिनभर हमारे दिमाग के उस नियंत्रक हिस्से की कसरत होती रहती है. इस कसरत से याददाश्त को ज्यादा दिन तक सही बने रहने में मदद मिलती है.

डीडब्ल्यू: आपने बताया कि इस बारे में पहले भी शोध हो चुके हैं, तो आपकी रिपोर्ट में नया क्या है?

अल्लाडी: वैसे तो हमारी रिसर्च पुराने परिणामों का ही विस्तार है. जो अलग बात हमने पाई वह यह कि हमने यह रिसर्च अशिक्षित लोगों के साथ की है जिससे पता चला कि याददाश्त को बचाए रखने या अच्छा रखने में हमारे ज्ञान का नहीं बल्कि दिमाग के उस हिस्से का हाथ है जो भाषाओें की अदला बदली के नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है. इसका शिक्षा से कोई लेना देना नहीं. इसके अलावा हमने इस रिसर्च में करीब साढ़े छह सौ लोगों पर अध्ययन किया है. इस तरह की रिसर्च पर यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है.

डीडब्ल्यू: क्या पढ़े लिखे लोग भी भाषाओं को सीखने पर ध्यान दें तो भूलने की बीमारी से बच सकते हैं?

अल्लाडी: हम इस बारे में कह नहीं सकते. भाषाओं का कम उम्र में सीखा जाना और उनका उम्र भर इस्तेमाल जरूरी है. बाद में भाषा का सीखा जाना कितना मदद करेगा इस बारे में हम फिलहाल कुछ कह नहीं सकते. उसके लिए आगे और रिसर्च करने की जरूरत है.

इंटरव्यू: समरा फातिमा

संपादन: एन रंजन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें