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कला

वो आवाज जो करोड़ों लोगों के सुर मिला देती थी

निखिल रंजन
२४ जनवरी २०१९

सैकड़ों भाषाएं और अनगिनत बोलियों वाले देश के एक अरब लोगों को एक सुर में मिलाने वाली आवाज 2011 में आज ही के दिन खामोश हो गई थी.

Bhimsen Joshi
तस्वीर: Imago

जिन लोगों ने हिमालय से उतरती गंगा की उछलती धाराओं को छुआ है, रामेश्वरम के किनारों से टकराती लहरों का वेग देखा है और जिन्हें मरुस्थल के चमकते सूरज में जमीन पर तूफान उठाती गर्म हवाओं की तपिश का अहसास है वो इस आवाज के खामोश होने के मतलब जानते हैं, और वो भी जिन्होंने दूरदर्शन पर मिले सुर मेरा तुम्हारा देखा है.

ख्याल की बंदिशों के साथ झूमती, इठलाती, गरजती और महकती आवाज के खामोश होने से उस राम को भी तकलीफ जरूर हुई होगी जिसका गुणगान कर पंडित जी ने भजन गायकी की परंपरा को समृद्ध किया. शास्त्रीय संगीत की समझ वाले तो पंडित जी की गायकी पर रीझे ही आम लोगों को भी अपने सुर से सम्मोहित करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा. हिंदी, कन्नड़ और मराठी संगीत में बराबर दखल रखने वाली पंडित जी की आवाज जब आलाप भरती तो सुर और संगीत का ऐसा समागम होता कि जहां तक आवाज पहुंचती, भावनाओं का झंझावात लोगों को हैरान कर देता. शुद्ध कल्याण, मियां की तोड़ी, पुरिया धनश्री, मुल्तानी, भीमपलासी,रामकली ये सारे राग पंडित जी की आवाज से मिल कर संगीत का तूफान उठाते और लोगों को इसमें भीगने के सिवा कोई रास्ता नहीं दिखता. रात के घुमड़ते अंधेरे में क्या जादू है ये तो बस उनसे पूछिए जिन्होंने पंडित भीमसेन जोशी को राग दरबारी गाते सुना है.

गायकी

हिंदुस्तानी संगीत की समृद्ध परंपरा से अभिभूत जोशी जी ने विरासत को मजबूत करने में ध्यान लगाया और नए प्रयोगों से बचते रहे. कर्नाटक संगीत के मजबूत स्तंभ एम बालमुरलीकृष्णा के साथ जुगलबंदियों की सीरीज छोड़ दें तो ऐसी मिसाल कम ही है. कम सरगम और ज्यादा आलाप के साथ सुरों से अठखेलियां करती उनकी आवाज लोगों के दिल में सीधे उतर जाती. इस आवाज में बादलों की गरज भी थी और शहद की मिठास भी. पंडित जी की तान ऊपर उठती तो पर्वतों को लांघ जाती और नीचे उतरती तो सागर की गहराई कम पड़ जाती.

तस्वीर: Getty Images/India Pictures

संगीत शिक्षा

घर के किसी कोने में पड़े कीर्तन करने वाले दादा के तानपुरे को नया नया चलना सीखे कदमों ने ढूंढ लिया. उत्तरी कर्नाटक के गडग में कन्नाडिगा परिवार ने तभी जान लिया कि संगीत और भीमसेन के बीच गहरा रिश्ता है जो आने वाले दिनों में परवान चढ़ेगा. नन्हा सा ये बच्चा मस्जिद से आती अजान और सड़क से गुजरती भजन मंडलियों की आवाज सुनने दौड़कर घर से बाहर चला जाता.

उस्ताद अब्दुल करीम खान की ठुमरी पिया बिन आवत नहीं चैन सुन पंडित जी ने ठान लिया कि गवैया ही बनना है. महज 11 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और संगीत साधना के लिए गुरु की तलाश में जु़ट गए. योग्य गुरु की तलाश में पूरे उत्तर भारत में जगह जगह भटकते रहे. इसी दौर में कुछ दिनों तक ग्वालियर में मशहूर सरोदवादक उस्ताद हाफिज अली खान के घर भी कुछ दिन रहे. तीन साल बाद पंडित जी के पिता ने उन्हें जालंधर में ढूंढ निकाला और घर ले आए. इसके बाद किराना घराना के पंडित रामभाउ कुंढोलकर ने उन्हें अपना शिष्य बनाया और उनकी संगीत शिक्षा शुरू हुई. यहां उनके साथ संगीत सीखने वालों में गंगूबाई हंगल भी थीं. इसी किराना घराना ने उनके भीतर गायकी के बीज को खाद-पानी और धूप-हवा देकर मजबूत पेड़ बनाया जिसकी जड़ें संगीत के जमीन में बहुत गहराई तक फैलती चली गईं. संगीत के जानकार इस घराने के अलावा उनके सुरों में उस्ताद आमिर खान साहब, बेखम अख्तर और केसर बाई केकर का असर भी महसूस करते हैं.

करियर

मुंबई में रेडियो पर उन्होंने 19 साल की उम्र में पहली बार गाया. म्यूजिक कंपनी एचएमवी ने जब पंडित जी का पहला अलबम लॉन्च किया तब उनकी उम्र केवल 22 साल थी.इस अलबम के साथ ही भारत के शास्त्रीय गायन में आने वाले कई दशकों के लिए एक ऐसी आवाज ने कदम रखे जिसकी आहट भर से संगीत समारोहों में सुर सज जाते. शास्त्रीय गायन, भक्ति संगीत के अलावा इसके अलावा कई फिल्मों के लिए भी उन्होंने गाने गाए.

पुरस्कार

भारत में संगीत से जुड़ा शायद ही कोई पुरस्कार होगा जो पंडित तक नहीं पहुंचा. 1972 में पद्रमश्री से इसकी शुरूआत हुई और भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न इसमें सबसे नया है. तैराकी और बेहतरीन कारों के शौकीन पंडित भीमसेन जोशी ने 1985 में मिले सुर मेरा तुम्हारा को आवाज दी और राष्ट्रीय एकता की अपील करने वाला ये गीत अमर हो गया. युग बीते, दौर बीता और दुनिया कहां से कहां पहुंच गई पर पंडित जी की आवाज का जादू लोगों को लुभाता रहा.

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