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भूकंप का खतरा जांचने पाताल में रोबोट भेजेगा भारत

२६ अप्रैल २०११

भूकंप के खतरों को और करीब से जानने के लिए भारतीय वैज्ञानिक रोबोट को धरती के गर्भ में भेजने की तैयारी कर रहे हैं. यह रोबोट पृथ्वी के क्रोड़ में हुए बदलावों के बारे में जानकारी जुटाएगा.

तस्वीर: AP/NASA/Pat Rawlings

भारतीय वैज्ञानिक इसके लिए तकरीबन 8 किलोमीटर गहरा एक गड्ढा खोदेंगे. ये गड्ढा भूकंप के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील महाराष्ट्र के कोयना इलाके में खोदा जाएगा. पृथ्वी विज्ञान विभाग में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार ने बताया कि इस गड्ढे के जरिए रोबोट पृथ्वी के क्रोड़ तक जाएगा और वहां हुए बदलावों के बारे में जानकारी नियंत्रण केंद्र में बैठे वैज्ञानिकों तक पहुंचाएगा.

कोयना क्षेत्र में पनबिजली के कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं. यह इलाका भूकंप के लिहाज से अतिसंवदेनशील क्षेत्रों में आता है. वैज्ञानिकों के अध्ययन के लिहाज से यह जगह बेहद मुफीद है और इसके साथ ही वह भूकंप आने के बारे में संकेतों का भी पता लगा लेते हैं. भूकंप विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों की एक बैठक पिछले महीने हैदराबाद में हुई ताकि इस प्रोजेक्ट के लिए योजना बनाई जा सके. पृथ्वी विज्ञान विभाग ने भी इस योजना को हरी झंडी दिखा दी है. जनवरी में इंटरनेशनल कॉन्टिनेंटल ड्रिलिंग प्रोग्राम के साथ वो समझौते के करार पर दस्तखत कर देंगे.

तस्वीर: AP

प्रोजेक्ट से जुड़े एक वैज्ञानिक ने बताया कि पहले चरण में तकरीबन 200 मीटर की गहराई तक खुदाई की जाएगी. उन्होंने कहा, "इससे हमें ठीक ठीक ऐसी जगह का पता चल सकेगा जहां 8 किलोमीटर की गहराई तक खुदाई की जा सके."

केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार ने बताया कि इस प्रोजेक्ट पर कुल मिला कर 300 करोड़ रूपये का खर्चा आएगा. 12वीं पंचवर्षीय योजना में इसके लिए धन की व्यवस्था कर दी जाएगी. वैज्ञानिकों का मानना है कि कोयना और भूकंप का पूरी दुनिया में एक अनोखा रिश्ता है. यह दुनिया के उन चुनिंदा जगहों में से एक हैं जहां रिक्टर पैमाने पर 5 से ज्यादा की तीव्रता वाले चार दशकों के बाद भी आ रहे हैं. यहां पृथ्वी के नीचे हलचल की शुरूआत 1967 में हुई थी.

भारत की तरफ से इस तरह भूकंप के बारे में जानकारी जुटाने की पहली मुहिम मल्टी पारामेट्रिक जियोफिजिकल ऑब्जरवेटरी के रूप में शुरू हुई जो उत्तर भारत में उत्तराखंड के गुट्टू में एक पहाड़ पर स्थापित किया गया है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः उभ

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