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समाज

भूख मिटाने के लक्ष्य से बहुत दूर है दुनिया

१३ अक्टूबर २०२०

भूख और गरीबी को मिटाने की दुनिया की लड़ाई पिछड़ गई है. नए आंकड़े बता रहे हैं कि कोरोना के असर को परे रख के देखें तो भी भूख मिटाने का लक्ष्य खतरे में है.

यह तस्वीर 1967 के नाइजीरिया की है. तस्वीर: picture-alliance/dpa/Kruse

दुनिया से भूख मिटाने के लक्ष्य पर सेहत, अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन से जुड़े संकट का गंभीर असर हो रहा है. बर्लिन के वेल्टहुंगरहिल्फे का कहना है कि अगर इसी तरह यह लड़ाई चली तो 2030 तक कम से कम 37 देश भूख मिटाने का लक्ष्य पूरा करने में नाकाम हो जाएंगे. यह संगठन हर साल दुनिया की भूख का सूचकांक जारी करता है. भूख से दुनिया की लड़ाई गरीबी, जलवायु परिवर्तन और हथियारबंद संघर्षों से पहले ही मुश्किल में है. अब इसमें कोरोना के रूप में एक और संकट जुड़ गया है. वेल्टहुंगरहिल्फे की प्रमुख मार्लेन थिमे का कहना है कि भूख और गरीबी की लड़ाई में कोरोना किसी आग भड़काने वाली चीज की तरह काम कर रहा है.

संयुक्त राष्ट्र ने 2015 में सर्वसम्मति से 2030 तक टिकाऊ विकास के लिए भूखमरी मिटाने के लिए लक्ष्य तय किए थे. हालांकि अब आंकड़े बता रहे हैं कि कोरोना का संकट शुरू होने के पहले भी दुनिया भर में करीब 69 करोड़ लोग भूख के संकट का सामना कर रहे थे. अब कोविड-19 के कारण यह संकट और बड़ा हो गया है. वेल्टहुंगरहिल्फे की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के 50 देश भूख और कुपोषण से जूझ रहे हैं.

ग्लोबर हंगर इंडेक्स दुनिया के 107 देशों में भूखे रहने वाले लोगों का ब्यौरा देता है. इन देशों में 14 ऐसे हैं जहां 2012 की तुलना में ज्याद लोग अब भूख का सामना कर रहे हैं. इन देशों में केन्या, मैडागास्कर, वेनेज्वेला और मोजाम्बिक शामिल हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2006 से ही हर साल तैयार किया जाता है. दूसरी चीजों के अलावा इसमें बाल मृत्यु दर, कुपोषण और पांच साल से कम उम्र के बच्चों में पर्याप्त शारीरिक विकास नहीं होने के आंकड़ों को शामिल किया जाता है.

संगठन का कहना है कि खाना उगाने वालों को पर्याप्त कीमत देकर उनके मानवाधिकार के साथ ही पर्यावरण और पूरे वैल्यू चेन को संरक्षित किया जा सकेगा. नए ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दूसरी चीजों के अलावा भारी पैमाने पर खेती और फैक्ट्री फार्मिंग का जलवायु, मिट्टी और जैव विविधता पर पड़ने वाले असर पर भी ध्यान दिया गया है.

कोरोना से पहले ही भूख की स्थिति कई इलाकों में बेहद बुरी थी. खासतौर से अफ्रीकी, दक्षिणी सहारा के देश और दक्षिण एशिया में तो यह खतरे की घंटी बजा रहा है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स एक 100 अंकों का पैमाना है. इसमें 9.9 अंक को नीचे और 30 अंक तक को गंभीर माना जाता है. उप सहारा के देशों, अफ्रीका और दक्षिण एशिया में यह 27.8 या  26 है. जाहिर है कि इन देशों में स्थिति गंभीर है. चाड, ईस्ट तिमोर और मैडागास्कर में तो यह 35-49.9 के बीच है यानी बेहद गंभीर स्थिति.

एनआर/आईबी (ईपीडी)

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