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भूटान के लोकतंत्र का दूसरा चुनाव

२२ अप्रैल २०१३

हिमालय की गोद में बसे छोटे से देश भूटान ने पांच साल पहले राजशाही की एकछत्र ताकत को खत्म कर लोकतंत्र को पनपने का मौका दिया. देश में दूसरी बार चुनाव मंगलवार को है.

तस्वीर: AFP/Getty Images

भूटान के लोग पहले ऊपरी सदन नेशनल काउंसिल के लिए सदस्यों को चुनेंगे. यह गैर दलीय संस्था है. इसके कुछ हफ्तों बाद नेशनल एसेंबली के चुनाव होंगे, उससे तय होगा कि देश की पांच राजनीतिक पार्टियों में से सरकार कौन बनाएगी. ऊपरी सदन में पांच सदस्यों को राजा जिग्मे खेसर वांगचुक नामांकित करेंगे और बाकी 20 सदस्यों के लिए 67 उम्मीदवार अप्रैल के शुरूआत से ही चुनाव प्रचार कर रहे हैं. स्थानीय प्रक्रिया के जरिए चुने गए ये उम्मीदवार अपने अपने जिलों में बहस और जनसभाएं कर रहे हैं. 

दूर दराज के इलाकों में गांव वाले घंटों या कई कई दिन चल कर बहस के फोरम और उम्मीदवारों से सीधे सवाल पूछने के लिए पहुंच रहे हैं. चुनाव कराने में लगे कर्मचारियों को भी पोलिंग स्टेशन बनाने में इतनी ही मशक्कत करनी पड़ रही है. बहुत से इलाके हैं जहां सड़क मार्ग से नहीं पहुंचा जा सकता. सोमवार को सुदूर उत्तर में मौजूद लुनाना तक चुनाव अधिकारियों को पहुंचाने में खराब मौसम के कारण भारतीय सेना के हैलीकॉप्टर की तीन कोशिशें नाकाम हो गईं.  

तस्वीर: AP

मंगलवार को सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी गई है और भूटान की जमीनी सीमाएं चुनाव के दौरान 24 घंटे के लिए बंद रहेंगी. चुनाव को लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह है, हालांकि संसद की क्या भूमिका है इस बारे में 50 फीसदी वाले देश के लोगों में कुछ उलझन भी है. यहां दशकों से राजशाही की जुबान से निकला एक एक शब्द कानून रहा है और वह आज भी लोगों के मन में कहीं गहरे बैठा हुआ है. यहां भाषा को लेकर थोड़ी उठापटक मची है. उम्मीदवारों के लिए राष्ट्रीय भाषा जोंका में बोलना जरूरी है और आधा दर्जन से ज्यादा भाषाओं वाले देश के आधे से ज्यादा लोग इस भाषा को ठीक से समझते ही नहीं.

नेशनल काउंसिल सरकार के कामकाज पर निगरानी और कानूनों की समीक्षा करने के साथ ही राजा को सलाह देती है. यह कानून का प्रस्ताव खुद भी रख सकती है लेकिन वह वित्तीय नहीं होना चाहिए. 4 लाख से कम मतदाताओं वाले देश में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल किया जा रहा है और चुनाव खत्म होने के तुरंत बाद ही नतीजों की घोषणा हो जाएगी.

प्रधानमंत्री जिग्मी वाई थिनले की मध्य दक्षिणपंथी द्रुक फुएन्सम शोग्पा (डीपीटी) पार्टी ने 2008 में शानदार जीत हासिल की और तब से देश की सत्ता पर काबिज है. उन चुनावों में उसने पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी को हराकर 47 में से 45 सीटें जीती थी. इस बार तीन नई पार्टियां भी मैदान में हैं जिनमें से दो का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है. हालांकि मध्य वामपंथी पार्टियों से बहुत मामूली फर्क और सभी उम्मीदवारों के लिए ग्रेजुएट होने की शर्त ने उनके लिए उम्मीदवार ढूंढना मुश्किल बना दिया है. भूटान में चुनावी सर्वेक्षणों पर रोक है और वहां विश्लेषक भी बहुत कम ही मौजूद हैं. डीपीटी इस बार पिछली कामयाबी दोहरानी की उम्मीद नहीं कर रही है.      

तस्वीर: nyiragongo/Fotolia

विदेशों में भूटान पर्यटन के लिए जाना जाता है और इसके अनोखे सकल राष्ट्रीय खुशहाली पैमाने ने डीपीटी सरकार के कार्यकाल में भारी विकास देखा है. हालांकि आमदनी में बढ़ता अंतर, युवा बेरोजगारी, अपराध और शहरों की ओर पलायन चुनाव के प्रमुख मुद्दे हैं. डीपीटी को कई प्रमुख चेहरों के चुनाव लड़ने पर लगी रोक से भी निबटना है. गृह मंत्री मिन्जुर दोरजी और नेशनल एसेंबली के स्पीकर जिग्मे शुल्टिम ने उन पर भ्रष्टाचार के दोषों के खिलाफ अपील की है. यह मामला पिछले चुनाव से पहले के जमीन आवंटन में गड़बड़ी का है.

अगर उनकी अपीलों पर सुनवाई नहीं हुई या उन्हें माना नहीं गया तो पार्टी को चुनाव से पहले नए उम्मीदवार ढूंढने होंगे. सूचना और प्रसारण मंत्री नंदलाल राय को भी घरेलू हवाई अड्डे के बड़े ठेकों में कथित गड़बड़ियों के लिए चुनावी दौड़ से बाहर किया जा सकता है.

एनआर/ओएसजे(एएफपी)

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