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भूटान के साथ जर्मनी की एशिया में नई पहल

राहुल मिश्र
१ दिसम्बर २०२०

भूटान के साथ कूटनीतिक संबंधों की स्थापना कर जर्मनी ने एशिया में बढ़ती दिलचस्पी में एक नया अध्याय जोड़ा है. जर्मनी के इस कदम को चीन के साथ भारत के महीनों से जारी सीमा विवाद के सिलसिले में भी देखा जा रहा है.

Bhutan | Bild 1b Phunaka Dzong mit Kindern
तस्वीर: M. Marek/A. Steinbuch

भूटान के कूटनीतिक संबंधों के लिए 25 नवम्बर 2020 का खास महत्व है. इसकी वजह यह है कि इसी दिन भूटान ने जर्मनी के साथ अपने औपचारिक कूटनीतिक संबंधों का आगाज किया. भारत में भूटान के राजदूत मेजर जनरल वेत्सोप नामग्याल और भारत में जर्मन राजदूत वाल्टर लिंडनर के बीच आधिकारिक प्रपत्रों के आदान प्रदान के साथ संपन्न हुई इस प्रक्रिया को जर्मन विदेश मंत्रालय ने भी एक असाधारण और महत्वपूर्ण घटना माना है. ठीक बीस साल पहले जुलाई 2000 में इन दोनों देशों के बीच कंसुलर संबंधों की स्थापना हुई थी.

भूटान के साथ इन संबंधों की स्थापना के साथ जर्मनी उन 53 देशों और यूरोपियन यूनियन की सूची में आ गया है जिनके साथ भूटान के औपचारिक कूटनीतिक संबंध हैं और इन देशों के राजदूत और दूतावास कार्यालय भूटान की राजधानी थिम्पू में रह सकते हैं. हालांकि फिलहाल जर्मनी ने भारत से ही दूतावास संबंधी गतिविधियां चलाने का निर्णय लिया है लेकिन एक नया दूतावास बनाने का रास्ता तो खुल ही गया है. जर्मनी के अलावा भूटान के 15 अन्य यूरोपीय देशों के साथ भी कूटनीतिक संबंध हैं. जापान के साथ मिलकर इन यूरोपीय देशों ने "फ्रेंड्स ऑफ भूटान” नामक एक अनौपचारिक समूह भी बना रखा है जिसका प्रमुख उद्देश्य भूटान का उसके क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर विकास में सहयोग करना है.

खास हैं भूटान संग जर्मनी के रिश्ते

इस संदर्भ में जर्मनी की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है. जर्मनी यूरोपीय संघ के देशों में भूटान को सबसे ज्यादा आर्थिक मदद देने वाला देश है. गौरतलब है कि जहां अमेरिका और रूस जैसे दुनिया के अन्य बड़े देश अधिकांशतः अपने फायदे के मद्देनजर छोटे देशों के साथ सहयोग करते हैं तो वहीं इसके ठीक उलट जर्मनी ने सुदूर भूटान में भी अपनी रुचि दिखाई है और दोस्ताना सबंधों को आगे बढ़ाया है. इसकी साफ झलक इससे भी मिलती है कि जर्मनी 1970 के दशक से ही भूटान के विकास में योगदान देता रहा है.

दुनियादारी से दूर, और खुद में ही मगन, दुनिया के सबसे खुशहाल देश भूटान के लिए भी यह बड़ी बात है. इससे पहले, भूटान ने सात साल पहले मार्च 2013 में ओमान के साथ औपचारिक संबंध स्थापित किए थे. भूटान की वर्षों से यह नीति रही है कि वह शक्ति संतुलन की राजनीति से कोई वास्ता नहीं रखेगा. यही वजह है कि भूटान ने चीन और अमेरिका समेत संयुक्त राष्ट्र के किसी स्थाई सदस्य से कोई औपचारिक संबंध नहीं रखा है.

भूटान का विख्यात मंदिरतस्वीर: Michael Marek/Anja Steinbuch

भूटान में भारत की भूमिका

भारत के साथ 1949 में औपचारिक कूटनीतिक संबंधों की स्थापना के बाद से ही भूटान अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए भारत पर निर्भर रहा है. भारत की इसी "नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर” की भूमिका के चलते विदेश नीति के मामलों में भी भूटान की भारत पर खासी निर्भरता रही है. 1949 की मैत्री संधि के एक अनुच्छेद में यह प्रावधान है कि विदेश नीति के मामलों में भारत भूटान की मदद करेगा. भारत ने भी अपनी भूमिका का जमकर निर्वाह किया है. इसकी एक बड़ी मिसाल 2017 में तब दिखी जब डोकलाम  के भारत–चीन–भूटान के ट्राई-जंक्शन पर भारत ने चीनी सीमा अतिक्रमण को रोका और चीन की भूटान पर दबाव डालने की कोशिशों को भी नाकाम किया. दो महीनों से ज्यादा चले इस विवाद में चीन और भारत दोनों के दमखम और प्रतिबद्धताओं का पता चला.

इस बीच गलवान में भारत और चीन के सीमा विवाद के परिप्रेक्ष्य में भूटान और भारत दोनों के लिए चिंताजनक बात यह रही है कि चीन अभी भी सीमा पर, खास तौर पर इन तीनों देशों की सीमाओं को जोड़ने वाले इलाके में यथास्थिति को अपने पक्ष में करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है. इस संदर्भ में बीते वर्षों में चीन ने कई बार भूटान से औपचारिक कूटनीतिक संबंध बनाने की पेशकश भी की है. वैसे भूटान ने मकाऊ में सन 2000 से और हांगकांग में सन 2004 से  मानद कंसुलर दफ्तर खोल रखे हैं लेकिन औपचारिक कूटनीतिक संबंध फिलहाल संभव नहीं लगते. सीमा विवाद और अनिर्धारित सीमा के चलते भूटान चीन से सशंकित रहता है. 2005 में भूटान ने औपचारिक तौर पर यह शिकायत भी की थी कि चीन उसकी सीमा में रोड और पुल बना रहा है. 1959 में तिब्बत पर चीनी नियंत्रण के बाद से ही दोनों देशों के बीच की सीमा को बंद कर दिया गया है.

भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंगतस्वीर: Johannes Eisele/AFP

जर्मनी के लिए सही समय

भूटान के साथ जर्मनी की कूटनैतिक संबंधों की स्थापना ऐसे समय में हुई है जब जर्मनी ने अपनी इंडो-पेसिफिक नीति की घोषणा की है. उसके इस कदम को इलाके में जर्मनी की बढ़ती दिलचस्पी के तौर पर देखा जा सकता है. जर्मनी और भूटान के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंधों की स्थापना जर्मनी की इंडो-पैसिफिक नीति को भी मजबूती देती है. भूटान और भारत समेत दक्षिण एशिया के तमाम देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अभिन्न अंग है.

भारत ने जर्मनी और भूटान के इस समझौते पर कोई ऐतराज नहीं किया है. इसके उलट विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि यह दोनों देशों के संबंधों में बढ़ी परिपक्वता का नतीजा है. जर्मनी इंडो-पैसिफिक के देशों और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के विकास में एक बड़ी भूमिका अदा कर सकता है. खास तौर पर जब चीन, अमेरिका, फ्रांस, जापान और ब्रिटेन जैसे देश या तो संशय की दृष्टि से देखे जाते हैं या वे अभी अपनी आंतरिक उलझनों के सागर में ही गोते लगा रहे हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि जर्मनी इस तरह के और भी कदम उठाता है या बात भूटान पर ही रुकी रहेगी.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)

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