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भूटान, जहां तीरंदाजी एक जश्न है

११ अप्रैल २०११

तीरंदाजी भूटान की प्राचीन परंपरा और संस्कृति का अंग है, लेकिन सन 1971 में ही इसे राष्ट्रीय खेल का दर्जा दिया गया, जब भूटान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना. 1984 से वह ओलंपिक खेलों में इस प्रतियोगिता में भाग ले रहा है.

तस्वीर: AP

चाहे इसे खेल कहा जाए या परंपरा, भूटान के पुरुषों के लिए तीरंदाजी को ना कहना मुश्किल है. बहुतेरे पुरुषों के पास महंगे धनुष और तीर होते हैं. फाइबर ग्लास के बने आधुनिक धनुष की कीमत 50 हजार से एक लाख न्गुलट्रुम यानी लगभग इतने ही रुपये के बराबर होती है.

आधुनिक तीरंदाजी 1920 के दशक में भूटान के दूसरे राजा के दौर के बाद काफी लोकप्रिय हो चुकी है. लेकिन देश के अंदर इस खेल का रूप बिल्कुल अलग है. भूटान तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष किनजांग दोरजी इस सिलसिले में कहते हैं कि यह सिर्फ खेल नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव और उनकी समृद्धि संस्कृति और परंपरा की अभिव्यक्ति है. वे ध्यान दिलाते हैं कि तीरंदाजी के साथ खिलाड़ी नाचते गाते हैं, साथ में उनके परिवार के लोग होते हैं. यह एक सामाजिक त्योहार सा होता है.

नाच गान के साथ हूटिंग

हर टीम के अपने नाचने गाने वाले होते हैं. और नाचने गाने का इस्तेमाल सिर्फ अपनी टीम का उत्साह बढ़ाने के लिए ही नहीं किया जाता है, बल्कि यह विरोधी टीम की हूटिंग का भी साधन होता है. जब विरोधी टीम के तीरंदाज आते हैं, तो वे चांदमारी के इर्दगिर्द खड़े होकर शोर मचाते हैं, खिलाड़ी का मजाक उड़ाते हैं. तीर अगर निशाने पर लगता है, तो वे चीखते हैं.

तीरंदाजी की प्रतियोगिता में राजा जिग्मे नामग्याल वांगचुकतस्वीर: AP

तीरंदाजों को दो चांदमारियों के बीच दौड़ना पड़ता है, जिनके बीच की दूसरी 145 मीटर की होती है. ओलंपिक में 90 मीटर की दूरी पर निशाना साधना होता है.

खेल या पीने का त्योहार

परंपरागत पोशाक में त्योहार का माहौल. और एक बात. शायद यह दुनिया की अकेली प्रतियोगिता है, जिसमें शराब पीने की इजाजत होती है. फेडरेशन के अध्यक्ष दोरजी कहते हैं कि भोज - और शराब के बिना तीरंदाजी की परंपरागत प्रतियोगिता की बात सोची ही नहीं जा सकती. यह रिवाज चला आ रहा है. परंपरागत ढंग से होने वाली प्रतियोगिता में पीने की इजाजत दी जाती है. लेकिन 32 साल के तीरंदाज तेनजिन का कहना है कि कुछ लोग सिर्फ खाने पीने के लिए ही वहां आते हैं, और खास कर देहाती इलाके में मारपीट की नौबत आ जाती है. दोरजी भी मानते हैं कि आधुनिक धनुष की वजह से ऐसा माहौल काफी खतरनाक हो सकता है. इसलिए बड़ी प्रतियोगिताओं में शराब की मात्रा पर रोक लगाई जाती है, ताकि दूसरों को नुकसान न हो.

शराब उड़ेली जाएगी, पर बहेगी नहीं. क्या यह मुमकिन हो पाता है. दोरजी खुद भी कभी तीरंदाजी में माहिर रहे हैं और वे कहते हैं कि इसकी जिम्मेदारी टीम मैनेजरों को सौंपी जाती है.

रिपोर्ट: शेरपम शेरपा/उभ

संपादन: ए कुमार

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