इस दशक की सबसे जानलेवा फेरी दुर्घटना में इस बार भूमध्य सागर में करीब 400 लोगों के डूब कर जान गंवाने की आशंका है. वहीं दूसरी ओर 16 अप्रैल 2014 को हुई दक्षिण कोरिया की फेरी दुर्घटना को आज एक साल हो गया.
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आंकड़े बताते हैं कि पिछले दस साल में हर साल 500 से ज्यादा लोग इन्हीं दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. बीते कुछ सालों से अफ्रीका और मध्यपूर्व के संकटग्रस्त इलाकों से यूरोप आने वालों की संख्या काफी बढ़ गई है. यूएन रेफ्यूजी एजेंसी ने सोमवार को भूमध्य सागर में डूबने से हुई इतनी बड़ी संख्या में मौतों पर चिंता जताते हुए कहा है कि इस दिशा में यूरोपीय सरकारों को बचाव और राहत की कोशिशों को और तेज करने की जरूरत है.
इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ माइग्रेशन कह चुकी है कि स्थिति "संकट के स्तर" पर पहुंच चुकी है. यूएन हाई कमिशनर फॉर रिफ्यूजी आंतोनियो गुटेरेस ने कहा कि यह दुनिया भर के रिफ्यूजी और प्रवासियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले चार प्रमुख रूटों में से "सबसे खतरनाक बन कर उभरा" है. गुटेरेस ने बताया कि केवल पिछले ही साल में इस रास्ते से करीब दो लाख 19 हजार लोगों ने यात्रा की.
इस दुर्घटना से बच निकले कुछ लोगों ने यूएन रिफ्यूजी एजेंसी से बातचीत में बताया कि लीबिया के तटीय क्षेत्र में डूबी इस फेरी में कई सौ लोग सवार थे जो यूरोप की ओर आ रहे थे. गर्मियों में इस तरह की दुर्घटना में मरने वालों की संख्या और बढ़ने की आशंका है क्योंकि तब और भी ज्यादा लोग इस रास्ते से यात्रा करते हैं.
यूएनएचआरसी का अनुमान है कि पिछले साल भूमध्य सागर के रास्ते यूरोप पहुंचने की कोशिश करने वालों में करीब 3,500 लोगों की मौत हो गई. 2013 में यह संख्या 600 के आसपास थी. इनमें से भी केवल कुछ ही शव बरामद किए जाने के कारण कई मौतों को आधिकारिक रूप से घोषित भी नहीं किया गया. यूएनएचआरसी के आंकड़ों के अनुसार, 2015 में अब तक समुद्र के रास्ते में मारे गए या गायब हुए लोगों की संख्या 900 तक पहुंच चुकी है.
पिछले केवल एक हफ्ते के अंदर ही गरीबी और समस्याग्रस्त इलाकों से किसी तरह बच कर निकले 10,000 से भी अधिक शरणार्थियों के ईयू में प्रवेश करने की संभावना जताई गई है. यूरोपीय संघ के देशों की मुश्किल यह है कि भूमध्य सागर के रास्ते यूरोप पहुंच रहे शरणार्थियों की बढ़ती तादाद से कैसे निबटें. इस बारे में अभी तक कोई आपातकालीन ईयू बैठक नहीं हुई है.
आरआर/एसएफ (एपी)
ईको फ्रेंडली अंत्येष्टि
कहते हैं कि हम जिस मिट्टी के बने हैं, अंत में उसी में मिल जाना है. कुछ लोग इसकी भी सोच समझ कर पहले ही योजना बना लेते हैं कि उन्हें किस तरह का अंतिम संस्कार मिले और इस प्रक्रिया में पर्यावरण को नुकसान भी ना पहुंचे.
तस्वीर: ARKA Ecopod
फूलों की डलिया सा
खास तरह के विलो पेड़ों के तने से बनी ऐसी शवपेटिका कई लोगों की पहली पसंद है. यह मानव शरीर के साथ साथ खुद भी पूरी तरह से विघटित होकर मिट्टी में मिल जाती है. विलो पेड़ काफी जल्दी बड़े होते हैं और इन कास्केट को हाथ से बनाया गया है.
तस्वीर: Passages International, Inc.
कफन की परंपरा
हजारों सालों से शवों को कफन में लपेट कर दफन करने की परंपरा रही है. अब नए तरह के कफन चलन में आए हैं और शवों को कपड़े की जगह फूलों की चादर में लपेटा जा रहा है. नीचे का प्लेटफार्म बांस का बना होता है.
तस्वीर: Gordon Tulley, Respect Funeral Services
कल की खबर
देखा जाए तो दुनिया से जाने वाले इंसान को बीते दिनों की खबर के साथ जोड़ना तर्कसंगत लगता है. इकोपॉड कहे जाने वाली इस संरचना को रिसाइकिल किए गए अखबार से बनाया गया है. कई रंगो में उपलब्ध इन इकोपॉड को डिजाइन के शौकीन काफी पसंद करते हैं.
तस्वीर: ARKA Ecopod
लंबे आराम के लिए
इकोपॉड के निर्माता बताते हैं कि यह हल्का होने के कारण शव को ले जाने वालों के लिए आसान होता है. केंट में स्थित इस बरियल साइट में हुए एक अंतिम संस्कार में दफनाने की जगह पर खास पौधे उगाने की भी व्यवस्था है.
तस्वीर: ARKA Ecopod
एक नया जीवन
जिन धर्मों में मृत्यु के बाद दाह संस्कार की मान्यता है, वे भी इसे इको फ्रेंडली तरीके का इस्तेमाल करना चाह रहे हैं. इसके लिए भी पुराने अखबारों का इस्तेमाल हो रहा है. इसकी डिजाइनर हाजेल सेलीना बताती हैं कि वह प्राचीन मिस्र की कब्रगाहों से प्रभावित रही हैं.
तस्वीर: ARKA Ecopod
स्पीरिट ट्री या आत्मा-वृक्ष
स्पीरिट ट्री कहलाने वाले इस बायोडीग्रेडेबिल विकल्प में मिट्टी, उर्वरकों के साथ साथ राख मिली होती है. इसके बीचो बीच बोए गए बीज से जब पौधा फूटता है तो सिरामिक के ढक्कन को तोड़ते हुए बाहर आ जाता है.
तस्वीर: Spíritree
मछलियों के साथ
मिट्टी के अलावा दूसरे प्राकृतिक तत्व पानी को भी अंतिम ठिकाना बनाया जा रहा है. ईको फ्रेंडली पेपर से बने भस्म कलश को पानी में विसर्जित करते हैं जहां वह गल जाता है. इस कलश की सतह पर लोग अपने प्रियजनों के लिए अंतिम संदेश भी लिखवाते हैं.
तस्वीर: Passages International, Inc.
पवित्र जंगल
कैप्सुला मुंडी एक स्टार्च का बर्तन होता है जिसमें मृत व्यक्ति को ऐसे समेट कर रखा जाता है जैसे बच्चा मां के गर्भ में रहता है. मिट्टी में दफनाने पर बर्तन गल जाता है और इसके विघटन से मिट्टी में लगे पेड़ को पोषक तत्व मिलते हैं. इसे बनाने वाले इतावली डिजाइनरों का सपना है कि कब्रिस्तानों की जगह पवित्र जंगल ले सकें लेकिन इसमें अभी कानूनी बाध्यताएं हैं.