जो बाइडेन प्रशासन ने अंजलि भारद्वाज को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालों के लिए एक नए पुरस्कार के लिए चुना है. अंजलि को इराक, लीबिया, यूक्रेन आदि देशों से इस पुरस्कार के लिए चुने गए 12 ऐक्टिविस्टों में शामिल किया गया है.
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अंजलि को भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले अग्रणी ऐक्टिविस्टों में जाना जाता है. वो नैशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इन्फॉर्मेशन की सह-संयोजक हैं. यह वही संस्था है जिसके अभियानों की वजह से भारत में 2005 में सूचना का अधिकार कानून आया. अंजलि भारत में भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए एक निष्पक्ष और शक्तिशाली नियामक "लोकपाल" की स्थापना के लिए चलाए गए अभियान से भी जुड़ी रही हैं.
जिस पुरस्कार के लिए उन्हें चुना गया है वो जो बाइडेन प्रशासन द्वारा शुरू किया गया एक नया पुरस्कार है. अमेरिकी गृह मंत्रालय ने बताया कि इस पुरस्कार का उद्देश्य उन लोगों के काम को पहचान दिलाना है, जिन्होंने "पारदर्शिता के समर्थन में खड़े रहने, भ्रष्टाचार से लड़ने और अपने अपने देशों में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बिना थके काम किया."
अंजलि के आलावा इस पुरस्कार के लिए 11 और लोगों को चुना गया है. इनमें अल्बानिया के अर्दीयान द्वोरानी, इक्वेडोर की डायना सालाजार, फेडरेटेड स्टेट्स ऑफ माइक्रोनीशिया की सोफिया प्रेट्रिक, गुआतेमाला, के हुआन फ्रांसिस्को संदोवाल अल्फारो, गिनी की इब्राहीमा कलिल गुइये, इराक के ढूहा मोहम्मद, किर्गिज गणराज्य के बोलोत तेमिरोव, लीबिया के मुस्तफा अब्दुल्ला, सनल्ला, फिलीपींस के विक्टर सोट्टो, सिएरा लियॉन के फ्रांसिस बेन कैफाला और यूक्रेन के रुस्लान रयाबोशाप्का शामिल हैं.
पुरस्कार के लिए धन्यवाद करते हुए अंजलि ने ट्विट्टर पर लिखा कि यह पुरस्कार पूरे देश में फैले उन लोगों और संगठनों के काम का सम्मान है जो सत्ता में बैठे लोगों की जवाबदेही सुनिश्चित कराने की कोशिश में लगे हुए हैं. अंजलि ने 2003 में सतर्क नागरिक संस्थान नाम की संस्था की भी स्थापना की थी जो जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के काम पर रिपोर्ट कार्ड बनाने का काम करती है.
सूचना का अधिकार कानून लागू हुए 15 साल पूरे हो गए हैं. 12 अक्टूबर 2005 को कानून लागू हुआ था. इसका मकसद सरकारी काम में पारदर्शिता लाना और भ्रष्टाचार को खत्म करना था लेकिन 15 साल बाद भी लाखों शिकायतें आज भी लंबित हैं.
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लंबित मामले
केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग में 2.20 लाख से अधिक अपील और शिकायतें अब भी लंबित हैं. लंबित मामलों के यह आंकड़े 31 जुलाई 2020 तक के हैं. यही नहीं चिंता का विषय यह है कि कुल 29 सूचना आयोग में से 9 (31 फीसदी) में कोई मुख्य सूचना अधिकारी है ही नहीं. इसके अलावा अगस्त महीने से मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) का पद खाली है.
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रिपोर्ट कार्ड
सूचना का अधिकार कानून के 15 साल पूरे होने पर सतर्क नागरिक संगठन और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है. इस रिपोर्ट में पाया गया कि सबसे ज्यादा लंबित मामले महाराष्ट्र में 59,000 हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश (47,923) और सीआईसी में (35,653) हैं.
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खाली पद
रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड और त्रिपुरा में सूचना आयुक्त का पद खाली है और वहां सूचना के अधिकार से जुड़े मामले लंबित पड़े हैं और लोगों को सूचना नहीं मिल पा रही है. ओडिशा में चार आयुक्त काम कर रहे हैं और राजस्थान में सिर्फ तीन आयुक्त हैं.
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बढ़ता बोझ
प्रक्रिया धीमी होने के कारण मुख्य सूचना आयोग में भी लंबित मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. वहां 36,500 से ज्यादा मामले लंबित हैं.
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सजा कम
विश्लेषण में यह भी पाया गया कि सरकारी अधिकारियों को कानून का उल्लंघन करने के लिए किसी भी सजा का शायद ही सामना करना पड़ता है. 2019-20 में 16 आयोगों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में पाया गया कि जुर्माना केवल 2.2% मामलों में लगाया गया था.
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जुर्माना
1,995 मामलों में 18 आयोग ने करीब 2.5 करोड़ जुर्माना लगाया. सबसे ज्यादा जुर्माना हरियाणा में (65.4 लाख रुपये), उसके बाद मध्य प्रदेश में (43.3 लाख रुपये) और उत्तराखंड में (35.8 लाख रुपये) लगाया गया.
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सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आम नागरिक सरकारी प्राधिकरण से सूचना पाने के लिए आवेदन कर सकता है. कानून के मुताबिक 30 दिनों के भीतर सूचना देने की व्यवस्था की गई है. आरटीआई के तहत सरकारी काम में पारदर्शिता लाना, भ्रष्टाचार को खत्म करना, उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना और नागरिकों को सशक्त करना है.