जीन एडिटिंग की मदद से वैज्ञानिकों ने दिल की घातक बीमारी फैलाने वाले जीन को हटाया. वैज्ञानिकों ने भ्रूण में इस जन्मजात बीमारी को छुपाने वाले म्यूटेशन को काट कर बाहर कर दिखाया.
विज्ञापन
अमेरिका में वैज्ञानिकों की टीम ने इंसानी भ्रूण से उस जीन म्यूटेशन को निकालने में सफलता पायी जो दिल की गंभीर बीमारी के लिए जिम्मेदार था. वैज्ञानिकों ने विवादित जीन एडिटिंग की मदद से बीमारी फैलाने वाले जीन को स्वस्थ जीन से बदल दिया. यह काम भ्रूण में किया गया. CRISPR-Cas9 के नाम से जानी जाने वाली तकनीक की मदद से यह किया गया. CRISPR-Cas9 तकनीक असल में कैंचियों के जोड़े की तरह काम करती है. यह बीमारी के लिए जिम्मेदार जीनोम के खास हिस्से को काट देती है. कटिंग से खाली हुई जगह को नए डीएनए से भर दिया जाता है.
यह प्रोजेक्ट ऑरेगॉन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी, साल्क इंस्टीट्यूट और कोरियाज इंस्टीट्यूट फॉर बेसिक साइंस का है. शोध के सह लेखक जुआन कार्लोस इजपिसुआ बेलमोंटे ने दावा किया, "हमने इंसानी भ्रूण में म्यूटेशन को ठीक करने की एक सुरक्षित और किफायती संभावना पेश कर दी है."
प्रयोग के तहत वैज्ञानिकों की टीम ने दिल की आनुवांशिक बीमारी हाइपरट्रोफिक कार्डियोमियोपैथी का सफाया किया. जन्म के साथ मिलने वाली इस बीमारी के चलते दिल की मांसपेशी मोटी हो जाती है. इसके कई लक्षण होते हैं. यह बीमारी 500 लोगों में से एक को होती है. समय से इसका पता चलने और सही उपचार मिलने पर सामान्य जिंदगी जी जा सकती है. लेकिन कई मामलों में इस बीमारी के चलते हार्ट फेल होने से लोगों की अचानक मौत हो जाती है. एथलीटों में ऐसा ज्यादा सामने आता है. माता पिता में से किसी एक के जीन में यह दोष हुआ तो बीमारी बच्चे तक पहुंच जाती है.
अमेरिका में वैज्ञानिकों ने एक स्वस्थ महिला के अंडाणु और म्यूटेशन वाले पुरूष का स्पर्म लिया. इन दोनों के मिलन से विकसित हुए भ्रूण में वैज्ञानिकों में म्यूटेशन को खोज निकाला और उसे काटकर बाहर कर दिया. उसकी जगह स्वस्थ डीएनए कड़ी लगायी गयी. लैब में विकसित किये जाने वाले ऐसे भ्रूणों को कुछ दिन बाद खत्म कर दिया जाता है.
जीन एडिटिंग पर काफी विवाद भी होते हैं. गंभीर आनुवांशिक बीमारियां दूर करने में सक्षम समझी जाने वाली इस तकनीक के दुरुपयोग की भी आशंका है. वैज्ञानिकों के एक वर्ग को लगता है कि जीन एडिटिंग की मदद से एक जैसे डिजायनर बच्चे विकसित किये जा सकते हैं. फिलहाल नैतिक बहस के बीच सिर्फ कुछ ही देशों में इस पर परीक्षण चल रहा है.
(आखिर क्यों मर जाता है शरीर, क्या है मृत्यु)
मृत्यु का विज्ञान
मृत्यु क्या है और इंसान क्यों मरता है, मनुष्य इन सवाल का जवाब हजारों साल से खोज रहा है. चलिये देखते हैं आखिर विज्ञान मृत्यु और उसकी प्रक्रिया के बारे में क्या कहता है.
तस्वीर: J. Rogers
विकास से विघटन तक
30 की उम्र में इंसानी शरीर में ठहराव आने लगता है. 35 साल के आस पास लोगों को लगने लगता है कि शरीर अब कुछ गड़बड़ करने लगा है. 30 साल के बाद हर दशक में हड्डियों का द्रव्यमान एक फीसदी कम होने लगता है.
तस्वीर: colourbox/S. Darsa
भीतर खत्म होता जीवन
30 से 80 साल की उम्र के बीच इंसान का शरीर 40 फीसदी मांसपेशियां खो देता है. जो मांसपेशियां बचती हैं वे भी कमजोर होती जाती है. शरीर में लचक कम होती चली जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Murat
कोशिकाओं का बदलता संसार
जीवित प्राणियों में कोशिकाएं हर वक्त विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनाती रहती हैं. यही वजह है कि बचपन से लेकर जवानी तक शरीर विकास करता है. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी होने लगती है. उनके भीतर का डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और नई कमजोर या बीमार कोशिकाएं पैदा होती हैं.
तस्वीर: Colourbox
बीमारियों का जन्म
गड़बड़ डीएनए वाली कोशिकाएं कैंसर या दूसरी बीमारियां पैदा होती हैं. हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि वो इस विकास को प्राकृतिक मानता है. धीरे धीरे यही गड़बड़ियां प्राणघातक साबित होती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Warmuth
लापरवाही से बढ़ता खतरा
आराम भरी जीवनशैली के चलते शरीर मांसपेशियां विकसित करने के बजाए जरूरत से ज्यादा वसा जमा करने लगता है. वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि ऊर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है, लिहाजा शरीर के भीतर हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और ये बीमारियों को जन्म देते हैं.
तस्वीर: Imago
शट डाउन
प्राकृतिक मौत शरीर के शट डाउन की प्रक्रिया है. मृत्यु से ठीक पहले कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. आम तौर पर सांस पर इसका सबसे जल्दी असर पड़ता है. स्थिति जब नियंत्रण से बाहर होने लगती है तो दिमाग गड़बड़ाने लगता है.
तस्वीर: picture-alliance/Klaus Rose
आखिरकार मौत
सांस बंद होने के कुछ देर बाद दिल काम करना बंद कर देता है. धड़कन बंद होने के करीब चार से छह मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए छटपटाने लगता है. ऑक्सीजन के अभाव में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं. मेडिकल साइंस में इसे प्राकृतिक मृत्यु या प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न कहते हैं.
तस्वीर: Imago/epd
मृत्यु के बाद
मृत्यु के बाद हर घंटे शरीर का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस गिरने लगता है. शरीर में मौजूद खून कुछ जगहों पर जमने लगता है और बदन अकड़ जाता है.
तस्वीर: Fotolia/lassedesignen
विघटन शुरू
त्वचा की कोशिकाएं मौत के 24 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं. आंतों में मौजूद बैक्टीरिया भी जिंदा रहता है. ये शरीर को प्राकृतिक तत्वों में तोड़ने लगते हैं.
तस्वीर: racamani - Fotolia.com
बच नहीं, सिर्फ टाल सकते हैं
मौत को टालना संभव नहीं है. ये आनी ही है. लेकिन शरीर को स्वस्थ रखकर इसके खतरे को लंबे समय तक टाला जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्याप्त पानी पीना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, अच्छा खान पान और अच्छी नींद ये बेहद लाभदायक तरीके हैं.