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मंगल पर जिंदगी ढूंढने निकला जिज्ञासु क्यूरियोसिटी

२७ नवम्बर २०११

मानव इतिहास की सबसे जबरदस्त मशीनों में एक मार्स रोवर मंगल ग्रह की लंबी यात्रा पर निकल गया है. छह पहियों और एक टन वजन वाला मार्स रोवर अत्याधुनिक तकनीक से लैस है. यह पता लगाएगा कि कौन सी जगह जीवन के लिए उपयुक्त है.

मार्स रोवर क्यूरयोसिटीतस्वीर: ESA

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मार्स रोवर को क्यूरियोसिटी (जिज्ञासा) उपनाम दिया है. मार्स रोवर नौ महीने की यात्रा करने के बाद मंगल ग्रह में पहुंचेगा. छह पहियों वाली यह रोबोटिक मशीन मंगल की सतह पर 57 करोड़ किलोमीटर की यात्रा करेगी. लेजर तकनीक की मदद दूरी मापी जा सकेगी और सटीक सूचनाएं भी मिलेंगी. मार्स रोवर इन संभावनाओं को टटोलेगा कि मंगल में कौन कौन सी जगहें जीवन के लिए उपयुक्त हैं.

नासा की मार्स साइंस लेबोटरी के डिप्टी प्रोजेक्ट साइंटिस्ट अश्विन वसावडा कहते हैं, "यह मंगल पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के सपने की मशीन है. हमने आज तक जितने वैज्ञानिक खोजी यंत्र भेजे हैं, उनमें यह सबसे क्षमतावान है. हम बहुत ही ज्यादा उत्साहित हैं."

तस्वीर: ESA/Weber

2.5 अरब डॉलर खर्च कर बनाया गया यह रोबोट मंगल ग्रह की सतह, चट्टानों, मौसम और तापमान की जानकारी देगा. एक जीप के बराबर आकार वाले क्यूरेसिटी में दस किस्म की मशीनें लगी हैं. लेजर और ड्रिल के अलावा इसमें रोबोटिक बांह, दो रंगीन वीडियो कैमरे और नमूनों का परीक्षण करने के लिए टूल किट लगा है. मंगल की सतह का नमूना धरती पर लाए बिना क्यूरयोसिटी वैज्ञानिकों को बताएगा कि लाल ग्रह की सतह किन तत्वों से मिलकर बनी है.

अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो पांच अगस्त 2012 को क्यूरियोसिटी मंगल की सतह पर उतरेगा. वैसे इसे एटलस-5 रॉकेट की मदद से इस हफ्ते की शुरुआत में छोड़ा जाना था. लेकिन रोबोट की न्यूक्लियर बैटरी में कुछ खामी की आशंका के चलते प्रक्षेपण टालना पड़ा. इंजीनियरों के मुताबिक बैटरी बदलने के बाद रोबोट में कोई तकनीकी कमी नहीं है. रोबोट में प्लूटोनियम वाली न्यूक्लियर बैटरी लगाई गई है. इसकी मदद से मार्स रोवर एक दशक से ज्यादा समय तक लगातार मंगल में घूम सकता है. नासा को उम्मीद है कि बैटरी पूरी तरह खत्म होने से पहले ही उसे रोबोट के जरिए जरूरी जानकारियां मिल जाएंगी.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने 1976 में मंगल अभियान की शुरुआत की. 35 साल पहले नासा ने मंगल ग्रह में पहला अंतरिक्ष यान उतारा. इसके बाद कई अभियान हुए लेकिन सुर्खियां में रहे जुड़वा रोवर. 2004 में स्पिरिट और ऑपर्च्यूनिटी रोबोट मंगल की सतह पर उतरे. बीते साल स्पिरिट की उम्र पूरी हो गई. ऑपर्च्यूनिटी अब भी अपना काम कर रहा है.

नासा क्यूरियोसिटी को मिशन 2030 का आधा रास्ता मानता है. अमेरिका चाहता है कि 2030 में वह इंसान को मंगल की सतह पर उतार दे. सूर्य से सिर्फ चार ग्रह दूर स्थित मंगल बेहद गर्म है. क्यूरियोसिटी पता लगाएगा कि वहां सूर्य के विकिरण का प्रभाव किस कदर है और इंसान को वहां किन तैयारियों के साथ जाना होगा.

क्यूरेसिटी की सफलता नासा के लिए बेहद अहम है. विश्वव्यापी मंदी के बीच बजट में कटौती या देरी और कभी तकनीकी खामियां, इन वजहों से अंतरिक्ष एजेंसी को हाल के सालों में आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा है.

रिपोर्ट: एएफपी/ओ सिंह

संपादन: एन रंजन

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