मंगल पर भरपूर सी ओ टू, फिर भी कम
८ मई २०११
इसी सिलसिले में हाल में एक नई खोज की रिपोर्ट जारी की गई है. अरबों वर्ष पहले मंगल का अधिकांश वातावरण लुप्त हो गया था. बचे हुए तत्वों में अधिकतर कार्बन डायॉक्साइड है. वह भी इतनी नहीं कि ग्रह को गर्म रख सके.. सतह का तापमान हिमांक से शायद ही कभी अधिक होता हो और मंगल के दोनों ध्रुव बर्फ़ से ढंके रहते हैं.
सी ओ टू के विशाल भंडार
लेकिन हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि मंगल के दक्षिणी ध्रुव के निकट जमी हुई कार्बन डायॉक्साइड यानी सी ओ टू के विशाल भूमिगत भंडार हैं - अब तक की जानकारी की तुलना में तीसगुना अधिक. अध्ययन में कहा गया है कि हर एक लाख वर्ष के बाद ग्रह की धुरी की दिशा में तब्दीली होने के साथ सी ओ टू के स्थल में परिवर्तन होता रहता है. धुरी के तिरछा होने पर, सूर्य का प्रकाश ध्रुवों पर इतनी पर्याप्त मात्रा में पड़ता है कि वहां मौजूद जमा कार्बन डायॉक्साइड भाप का रूप ले लेती है और वातावरण में जा पहुंचती है.
अमरीका के कोलोराडो राज्य में बोल्डर स्थित साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के रॉजर फ़िलिप्स और उनके सहकर्मियों ने अपनी यह खोज अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मार्स रिकॉनेसांस ऑर्बिटर यान के रडार अध्ययनों पर आधारित की है. अपने अध्ययन के बारे में रॉजर फ़िलिप्स का कहना है, "हमने प्रदर्शित किया है कि मंगल का मौजूदा वातावरण, जो अधिकांशतः सी ओ टू से बना है, उसका स्थल हर एक लाख वर्ष के अंतर पर ध्रुवों के नीचे मौजूद बर्फ़ और वातावरण के बीच बदलता रहता है. इस समय अनुपात आधे-आधे का है. और जो आधा भाग दक्षिणी ध्रुव के नीचे पाया गया है, वह उसकी बनिस्बत तीसगुना अधिक है, जो हमने ध्रुवों के नीचे इससे पहले देखा है."
नहीं बदलेगा मंगल का मौसम
हालांकि नए पाए गए भंडारों के परिणाम में मंगल के वातावरण में कार्बन डायॉक्साइड की मात्रा लगभग दुगुनी हो जाएगी, वैज्ञानिकों का कहना है कि उसके परिणाम में मौसम में होने वाली तब्दीली मामूली होगी यानी उससे ग्रह का तापमान अधिक गर्म नहीं होगा, न ही वातावरण में अधिक नमी पैदा होगी.
रॉजर फ़िलिप्स इस बात पर सहमत है. उनका कहना है कि ग्रह की धुरी के अधिक तिरछा होने पर कार्बन डायॉक्साइड का और अधिक पाला ग्रह की सतह पर बैठ जाएगा. वातावरण में अतिरिक्त गैस के परिणाम से कोई ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा नहीं होगा. यानी मंगल पर इस समय मौजूद कड़ी ठंड बनी रहेगी. फ़िलिप्स का सोचना है कि जब यह सामग्री वातावरण में छूटेगी, तब उसके परिणाम में ग्रह पर और अधिक तेज़ और अधिक बहुतायत से धूल के तूफ़ान आएंगे - और सतह पर और अधिक ऐसे स्थल होंगे, जहां पानी भाप बनकर नहीं उड़ेगा. फ़िलिप्स कहते हैं, "मंगल ग्रह के वातावरण में अधिक गर्मी और नमी लाने के लिए जितनी सी ओ टू की ज़रूरत है, उसे देखते हुए कार्बन डायॉक्साइड की यह मात्रा बहुत अधिक नहीं है. इससे मौजूदा मौसम का स्वरूप साफ़ होता है. यह कि वह कैसा है. "
सूखी नहरें - मंगल पर जल ?
एक सवाल यह भी है कि क्या हर एक लाख वर्षों पर होने वाले इस परिवर्तन के असर से मंगल पर कभी तरल पानी वजूद में आया होगा, जिसका प्रमाण आज सूखी नहरों के आकार में दिखाई देता है?
रॉजर फ़िलिप्स कहते हैं, "चार अरब वर्ष पहले मंगल पर सघन वातावरण मौजूद था, ऐसा तापमान जो शायद ग्रह के कई स्थलों पर हिमांक से ऊपर जा पहुंचा हो, और उससे नदियों की एक पेचीदा प्रणाली पैदा हुई हो. आज के मंगल में हम जो देख रहे हैं, वह उसका अवशेष मात्र है. तो पहले जो कुछ वहां मौजूद था, वह या तो अंतरिक्ष में खो गया हो, या फिर वह शायद मंगल की पपड़ी की गहराइयों में कार्बन के रूप में चट्टानों में फंसा हुआ हो."
दरअसल, चट्टानों में कार्बन के फंसे होने की खोज का काम जारी है. ज़ाहिर है कि अगर इन चट्टानों में भारी मात्रा में कार्बन फंसी हुई है, तो उसके मुक्त किए जाने पर ग्रह के वातावरण में कार्बन डायॉक्साइड अधिक सघन वातावरण का कारण बन सकती है. बेशक़, यह इस बात पर निर्भर होगा कि इन चट्टानों में फंसे हुए कार्बनेट कितनी बहुतायत में हैं. इसके लिए भारी मात्रा में कार्बन तत्व की ज़रूरत होगी.
यहां पृथ्वी पर, सघन और नमीपूर्ण वातावरण के कारण सशक्त ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा होता है. फ़िलहाल, मंगल का वातावरण इतना महीन और ख़ुश्क है कि वहां पृथ्वी की तरह का ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा नहीं हो सकता - तब भी, अगर उसके कार्बन डायॉक्साइड की मात्रा दुगनी हो जाए.
रिपोर्ट: गुलशन मधुर, वाशिंगटन
संपादन: उभ