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मंथन में माउंट आबू का सोलर पार्क

१९ जुलाई २०१३

विज्ञान, तकनीक और पर्यावरण के खास शो मंथन में इस बार जानेंगे किस तरह से रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल हो सकती है सौर ऊर्जा. समझेंगे एचआईवी संक्रमण और एड्स को.

तस्वीर: ROBYN BECK/AFP/Getty Images

मंथन में आपको इस बार ले चलेंगे राजस्थान के माउंट आबू में जहां थर्मल सोलर प्लांट लगाए जा रहे हैं. साथ ही जानेंगे कि गर्मी में या फिर कसरत करने पर हमें पसीना क्यों आता है. और दिखाएंगे आपको मस्ती और खेल कूद का एक नया तरीका.

पर्यावरण

1. भारत में औसतन साल में करीब 300 दिन धूप निकलती है, लेकिन बिजली की भारी कमी है. सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से पूरे देश को फायदा मिल सकता है. भारत सरकार इसमें अरबों का निवेश कर रही है, साथ ही निजी पहल भी हो रही है. मंथन में इस बार ले चलेंगे आपको राजस्थान के ब्रह्माकुमारी आश्रम में जहां खाना भी सोलर पावर से बनता है. इस सोलर पार्क को भारत और जर्मन दोनों सरकारों से आर्थिक सहयोग मिल रहा है. क्योंकि यह भारत की राष्ट्रीय सौर नीति के तहत एक मॉडल प्रोजेक्ट है. भारत सरकार बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा का हिस्सा बढ़ाना चाहती है अभी यह सिर्फ एक ही फीसदी है.

सिर्फ भारत ही नहीं, सौर ऊर्जा का फायदा पूरी दुनिया को मिल सकता है. कॉफी और कोको का देश निकारागुआ भी इनमें से एक है. यहां की पहाड़ियों में पैदा होने वाली फलियां दुनिया की सबसे अच्छी फलियों में गिनी जाती हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से यहां सूखा बढ़ा है और बारिश में भी आंधी तूफान आने लगा है. छोटे किसानों पर इसका खासा बुरा असर पड़ा है. रिपोर्ट में दिखाया गया है कि किस तरह से गैर सरकारी संगठन उद्योग और शिक्षा संस्थानों के साथ मिल कर किसानों की मदद कर रहे हैं, ताकि वे मौसमी बदलाव का सामना कर सकें.

मंथन हर शनिवार सुबह साढ़े दस बजे डीडी1 परतस्वीर: DW

स्वास्थ्य

1. एड्स.. 30 साल पहले वैज्ञानिकों को पता चला कि एड्स बीमारी के पीछे ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस यानि एचआईवी का हाथ है. अब तक यह वायरस दुनिया भर में करीब 2.5 करोड़ लोगों की जान ले चुका है और 3.5 करोड़ अब भी इस से संक्रमित हैं. इस जानलेवा बीमारी का कोई इलाज तो नहीं, लेकिन दवाओं के जरिये वायरस को काबू में जरूर किया जा सकता है. बर्लिन में डॉक्टर केकावुस आरस्ते एड्स के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं. वह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि लोग वायरस के साथ और दवाओं के बिना कैसे अच्छी तरह से जी सकते हैं. इसके जवाब जानवरों में भी खोजे जा रहे हैं. मिसाल के तौर पर बंदरों के शरीर में एचआईवी वायरस होने के बाद भी उनका इम्यून सिस्टम आराम से रहता है और वह वायरस के साथ जिंदा रह लेते हैं.

80 के दशक से एड्स के खिलाफ मुहिम चल रही, टीवी पर विज्ञापनों के जरिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है, लेकिन एड्स के मामले फिर भी बढ़ रहे हैं.

जीवनशैली

1. गर्मी में अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं. जहां भारत में लोग गर्मी और पसीने से परेशान रहते हैं, वहीं ठंडे देशों में लोग खास तौर से सॉना में जाते हैं ताकि कुछ देर के लिए पसीना बहा सकें. हम हमेशा सुनते हैं कि पसीना आना जरूरी है, लेकिन आखिर पसीना आता क्यों है? रिपोर्ट में समझाया जा रहा है कि अगर शरीर को किसी काम में एक कैलोरी ऊर्जा लगानी हो तो इसमें शरीर की कुल चार कैलोरी खर्च होती हैं और तीन कैलोरी गर्मी बनकर शरीर से निकल जाती हैं. अगर शरीर ने इस गर्मी को किसी तरह बाहर नहीं निकाला तो वह अंदर से पकने लगेगा. इसलिए पसीने की ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं.

साथ ही जानेंगे मजेदार करतबी खेल स्पोर्ट हॉकिंग के बारे में भी.

2. वैसे पसीना तो कसरत कर के भी आता है, लेकिन अगर कसरत मजे मजे में की जाए तो पसीना बहाने में कोई हर्ज नहीं लगता. बर्लिन में इन दिनों एक नए तरह का खेल शुरू हुआ है, सपोर्ट हॉकिंग. बर्लिन के मिषाएल और श्टेफान लांडशुत्स ने स्पोर्टहॉकिंग की शुरुआत की. और यह खास स्टूल भी इन्हीं के दिमाग की उपज है. 2007 से दोनों प्रोडक्ट डिजाइनर ऐसे मोढ़े बना रहे हैं जो इतने मजबूत हैं कि तमाम कलाबाजियों के बावजूद टूटते नहीं. स्टूल को मॉडर्न लुक दिया गया है और बाजार में इनका दाम 5000 से लेकर करीब 10,000 रुपये है.

तो देखना नहीं भूलिएगा मंथन शनिवार सुबह साढ़े दस बजे DD1 पर

रिपोर्टः ईशा भाटिया

संपादनः  आभा मोंढे

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