आपने भी क्या दो पैरों पर चलने वाले मगरमच्छ की कहानी सुनी है. अब तक यह कल्पना से परे था लेकिन वैज्ञानिकों की टीम के पुरातात्विक खोजों से इस बात की जानकारी सामने आ रही है. क्या सचमुच ऐसा कभी हुआ होगा?
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प्राचीन मगरमच्छों के बारे में लंबे समय से यही माना जाता है कि वो अपने आधुनिक वंशजों की तरह ही चार पांवों पर चलते थे. एक नई स्टडी में उनके दो पैरों पर चलने की संभावना जताई गई है. चीन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के रिसर्चर दक्षिण कोरिया के जींजू फॉर्मेशन में पैरों के कुछ निशान ढूंढने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं. यह रिसर्च रिपोर्ट नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट में छपी है. दक्षिण कोरिया का यह इलाका पुरातत्व के लिहाज से बेहद अमीर है. यहां पर छिपकिली, मकड़े और शिकारी पक्षी रैप्टर की कुछ प्रजातियों के 12 करोड़ साल पुराने अवशेष मिले हैं.
रिसर्चरों का मानना है कि जिन मगरमच्छों के कदमों के निशान मिले हैं वो कम से कम तीन मीटर लंबे थे और उनका वैज्ञानिक नाम बात्राचोपस ग्रांडिस है. यह मगरमच्छ तनी हुई रस्सी पर चलने वाले बाजीगरों की तरह दो पैरों पर चलता था. चिंजू नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन के क्युंग सू किम का कहना है, "वो ऐसे ही चल रहे थे जैसे कि डायनोसॉर, लेकिन पैरों के ये निशान डायनोसॉर के नहीं हैं."
पहले रिसर्चरों को लगा था कि ये निशान टेरोसॉर के हैं. यह डायनोसॉर की ही एक प्रजाति है लेकिन उसके पंख होते थे. यह डायनोसॉर 6.6 करोड़ साल पहले तक धरती पर मौजूद था. हालांकि अब इन्हें क्रोकोडाइलोमॉर्फ फैमिली का एक सदस्य माना जा रहा है जिसकी अब तक खोज नहीं हुई थी. करीब 10 ईंच लंबे पैरों के निशान से मगरमच्छ के इस रिश्तेदार के आकार का आकलन किया गया है.
क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी एंथनी रोमिलियो भी इस रिसर्च रिपोर्ट के लेखकों में शामिल हैं. रोमिलियो का कहना है कि पैरों के निशान किसी वयस्क इंसान के जितने ही लंबे हैं. हालांकि इनके शरीर की "लंबाई तीन मीटर से ज्यादा तक की रही होगी." इसका मतलब है कि वह अपने समकालीन रिश्तेदारों की तुलना में करीब दोगुना लंबा था. यह प्राचीन मगरमच्छ मुमकिन है कि दो पैरों पर चलता रहा होगा और इंसानों की तरह ही अपनी एड़ी घसीटता होगा. यही वजह है कि इसके पैरों के निशान काफी गहरे हैं.
खुदाई के बाद खुले रहस्यों की सैर
इंसानी सभ्यता की शुरुआत की कहानी दिलचस्प है. हजारों साल पहले भी पूजास्थल, शहर और बाजार हुआ करते थे. अगर आपकी इतिहास और पुरातत्व के गूढ़ रहस्यों को जानने में उत्सुकता रहती है तो इन पुरातात्विक स्थलों को देखने जरूर जाइए.
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टेराकोटा सेना, चीन
शियान शहर के नजदीक 1974 में स्थानीय किसानों को मिट्टी की इन मूर्तियों का पता चला. यह चीन के पहले राजा किन शी हुआंगदी का मकबरा है जिनकी मौत 210 ईसा पूर्व में हो गई. कहा जाता है कि मिट्टी से बने इन सैनिकों को मकबरे की रक्षा के लिए रखा गया था. करीब 100 वर्ग किलोमीटर में फैला यह शाही मकबरा खुदाई में मिले स्थलों में सबसे बड़़ा है.
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अंकोर वाट, कंबोडिया
राजधानी नोम पेन्ह से 240 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिमी जंगल में स्थित यह मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है. यह मूल रूप से खमेर साम्राज्य में भगवान विष्णु के मंदिर के रूप में बनाया गया था. करीब 150 साल पहले फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासकों की खोज में इसका पता चला. इलाके में कभी खमेर समुदाय के लोग रहा करते थे. मंदिर के पत्थर अपने वक्त की कहानी कहते हैं.
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माचू पिच्चू, पेरू
पुराने इंका कस्बे माचू पिच्चू तक सिर्फ एक संकड़े गलियारे से पैदल ही पहुंचा जा सकता था. यह एंडीज पहाड़ियों में 2360 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां जाने का रास्ता इतना कठिन है कि स्पेन के विजेता भी यहां पहुंच नहीं पाए थे. पहाड़ में बसे इस कस्बे के बारे में करीब 100 साल पहले ही पता चला. 15वीं सदी में बने इस कस्बे को देखकर इंका की अत्यंत विकसित संस्कृति का पता चलता है.
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उशमाल, मेक्सिको
करीब तीन हजार साल पहले माया सभ्यता मध्य अमेरिका में फैल गई. मेक्सिको के युकाटन प्रायद्वीप में स्थित उशमाल को माया सभ्यता के सबसे संरक्षित स्थलों में से एक माना जाता है. शहर के बीच में स्थित मैजीशियन पिरामिड 38 मीटर ऊंचा है. कहा जाता है कि इसे बनाने में 300 साल लग गए. यह देखने में खूबसूरत जरूर है, लेकिन इस पर चढ़ाई करने की इजाजत नहीं है.
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पोम्पेई, इटली
79 ईसवी में नेपल्स की खाड़ी में ज्वालामुखी ने सब कुछ तबाह कर दिया. ज्वालामुखी से निकली राख ने पोम्पेई शहर और लोगों को ढंक दिया. लोग मर गए, लेकिन कुछ के कंकाल बचे रह गए. संरक्षणवादियों ने इन पर प्लास्टर लगाया और आज हमें उस वक्त आई प्राकृतिक आपदा के मंजर और लोगों के डर का पता चलता है.
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ट्रॉय, तुर्की
जर्मन पुरातत्वविद हाइनरिष श्लीमन ट्रॉय से खासे प्रभावित थे. 19वीं सदी के अंत में उन्होंने तुर्की के प्रांत चनक्काले में खुदाई शुरू की. उन्होंने यूरोप के आदिकवि होमर द्वारा लिखित महाकाव्य इलियाड की सहायता से खोजबीन जारी रखी और एक दिन उन्हें वह बस्ती मिल ही गई. कांस्य युग का महत्वपूर्ण केंद्र, लेकिन यह अभी तक साफ नहीं है कि यही असल में ट्रॉय है या नहीं.
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डेल्फी, ग्रीस
इस शहर को 7 वीं सदी ईसा पूर्व में बनाया गया था और यह प्राचीनकाल के लोगों का प्रमुख केंद्र था. यह राजाओं का तीर्थस्थल और सलाह मांगने वालों का केंद्र था. अपोलो मंदिर में पूजा करने वाली पुजारिन पाइथिया लोगों को सलाह-मशविरा देती थीं. इसे 'ओराकेल ऑफ डेल्फी' यानि डेल्फी की भविष्यवाणी कहा जाता है.
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फोरम रोमानुम, इटली
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि रोमन साम्राज्य की सीमाओं में करीब दो हजार प्राचीन शहर बसे हैं. हर शहर व कस्बे में के केंद्र में मंदिर, दुकानें, चौराहे और प्रशासनिक इमारतें हुआ करती थीं, जिसे फोरम कहा जाता है. लेकिन फोरम रोमानुम इससे ज्यादा महत्वपूर्ण था. यह समूचे रोमन साम्राज्य का केंद्र था. यह आज भी रोम का सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है.
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गीजा का पिरामिड, मिस्र
काहिरा के नजदीक स्थित पिरामि़ड करीब 4500 साल पुराने हैं. इन सभी पिरामि़डों के अपने नाम भी हैं. इन पिरामिडों के अंदर आधुनिक युग जैसे कमरे, गलियारे आदि बने हुए हैं. यह आज भी शोधकर्ताओं को हैरान करता है कि हजारों साल पहले कैसे इनके बारे में सोचा गया होगा.
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पेट्रा, जॉर्डन
पत्थरों से बने इस मंदिर में जाने के लिए एक संकरे रास्ते से होकर जाना पड़ता है. पेट्रा को दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में एक कहा जाता है. मरुस्थल में स्थित यह मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है.
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लास्कू की गुफा, फ्रांस
हिरण, ऑरोक्स और घोड़े के इन चित्रों को यूरोप की सबसे संरक्षित पेंटिंग्स में गिना जाता है. 1940 में इस चित्रकारी का पता चला. माना जाता है कि 17 हजार साल पहले ये चित्र बनने शुरू हुए. इस गुफा को संरक्षित करने के लिए बंद कर दिया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Falco
स्टोनहेंज, इंग्लैंड
इंग्लैंड के विल्टशर में स्थित स्टोनहेंज मूल रूप से मिट्टी को खोदकर खड़े किए गए पत्थरों से निर्मित घेरा है. मौजूदा वक्त में सिर्फ अवशेष रह गए हैं, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं. माना जाता है कि ‘स्टोनहेंज' इसके आसपास रहने वाली जनजातियों के नेता का नाम था और यहां कब्रिस्तान हुआ करता था. इसे दो प्रकार के पत्थरों-सारसेन्स और ब्लूस्टोन से मिलाकर बनाया गया था.
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इन मगरमच्छों का जब प्रयोगशाला में मॉडल बनाने की कोशिश की गई तो पता चला कि इनका गुरुत्व केंद्र बहुत कम था. रोमिलियो ने बताया कि खुदाई वाली जगह पर ना तो हाथों के निशान मिले ना ही पूंछ के. इसके साथ ही इसके चलने का मार्ग भी पतला है. इन सब कारणों से इस संभावना को मजबूती मिलती है कि यह दो पैरों पर चलता रहा होगा.
इस खोज से क्रिटेशस काल के दूसरे जीवों के बार में भी नई जानकारियां सामने आएंगी. टेरोसॉर उसी दौर का जीव है. वैज्ञानिकों ने ध्यान दिलाया है कि इस नई खोज के बाद जीवाश्म मिलने की कुछ दूसरी जगहों पर भी मिले जीवाश्मों का भी नए सिरे से अध्ययन किया जाना चाहिए.