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मछली टमाटर साथ साथ

८ जुलाई २०१३

टमाटर और मछली की खेती एक जगह हो रही है. मछली पालन के लिए इस्तेमाल होने वाले टैंक का गंदा पानी टमाटर के पौधों को मिनरल पोषक देने के लिए काम में लाया जा रहा है.

तस्वीर: FONA

मछलियां बहुत भूखी हैं. बर्लिन में फ्रेश वाटर इकॉलॉजी इंस्टीट्यूट के जीवविज्ञानी हेंडरिक मोंजिस एक्वैरियम में सूखा खाना छिड़कते हैं तो तिलापिया मछलियां तैर कर सतह तक पहुंचती हैं और कूद कर खाना लपक लेती हैं. खाने के लिए वे एक दूसरे से लड़ती हैं. छाती तक ऊंचे एक्वैरियम से पानी के छीटें बाहर निकलते हैं. मोंजिस को बचने के लिए कोशिश करनी पड़ती है. वे हंसते हुए कहते हैं, "जब तिलापिया भूखी होती हैं तो बहुत सारा पानी उछलता है."

इंस्टीट्यूट के करीब एक दर्जन टैंक में कुछ सौ तिलापिया मछलियां रखी जा रही हैं. इन टैंकों को कांचघर में रखा गया है जहां टमाटर के पौधे भी उगाए गए हैं. कांचघर का तापमान लगातार 27 डिग्री सेल्सियस रखा जा रहा है, जो तिलापिया और टमाटर दोनों ही के लिए माकूल है. इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है जीरो एमीशन पर सब्जियों और मछलियों की पैदावार.

मछली का पानी टमाटर के लिएतस्वीर: DW/Thomas Gith

तकनीकी माहौल में खेती

तकनीक के इस्तेमाल से पैदा किए गए कृत्रिम माहौल में टमाटर और मछलियों की पैदावार बेहद अच्छी होती है. कांचघर परियोजना शुरू करने वाले वैर्नर क्लोआस कहते हैं कि मछलियों को मानवीय तरीके से रखा जाता है. टैंकों में उससे ज्यादा तादाद में मछली नहीं रखी जाती जितनी प्राकृतिक वातावरण में पाई जाती है. मछली के टैंकों के पानी से टमाटर के पौधों को पटाया जाता है. पौधों को मिट्टी के बदले मिनरल वूल में लगाया जाता है. टमाटर बेहतर कृत्रिम माहौल में बढ़ते हैं.

पत्तों को हटाकर छोटे छोटे टमाटर दिखाते हुए मोंजिस कहते हैं, "बिना मिट्टी के पौधों को उगाने को हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं." रिसर्चरों ने बार बार दिखाया है कि तिलापिया और सब्जियों को साथ साथ उगाना काफी सफल रहा है. इस तरह की खेती कोई नई बात नहीं है. दुनिया भर में कांचघरों में सब्जियों की खेती हो रही है. इसी तरह टैंकों में मछली पालन भी कोई नया नहीं है. नया यह है कि मछली वाले पानी का इस्तेामल टमाटर उगाने के लिए किया जा रहा है. क्लोआस बताते हैं कि एक्वाकल्चर और हाइड्रोनिक्स अब तक दो अलग अलग चीजें रही हैं.

पानी साफ करने के तरीके

मछलियां अमोनिया छोड़ती हैं जो तिलापिया के लिए टॉक्सिक है, इसलिए पानी को साफ करना पड़ता है. अच्छी बात यह है कि टैंक का गंदा पानी फिल्टर किए जाने और अमोनिया की सफाई के बाद टमाटर के लिए बहुत ही कारगर खाद बन जाता है. कांचघर में यह अपने आप होता रहता है. फिश टैंक का गंदा पानी एक उजले प्लास्टिक के पाइप से बहता है. पहले चरण में मछली की गंदगी को फिल्टर कर लिया जाता है और उसके बाद उसे बायोफिल्टर में साफ किया जाता है.

मछलियां अमोनिया छोड़ती हैंतस्वीर: picture alliance/ WILDLIFE

यह एक बड़ा काला टैंक है जिसकी बांयी ओर एक छोटा सा छेद है. छेद से टैंक में भरे पानी के ऊपर तैरते प्लास्टिक के छोटे छोटे टुकड़ों को दिखाते हुए क्लोआस कहते हैं कि उसकी सतह पर बैक्टीरिया घर बनाते हैं. वे बताते हैं कि नाइट्रोसोमोनास और नाइट्रोबैक्टर बैक्टीरिया आम तौर पर हवा में पाए जाते हैं. "एक प्रकार का बैक्टीरिया अमोनियम नाइट्राइट से बनता है और दूसरा नाइट्रेट से." और नाइट्रेट पौधों के लिए जरूरी खाद का मूल्यवान हिस्सा होता है. बायोफिल्टर में ट्रीटमेंट के बाद पानी को उन बक्सों में भेजा जाता है जहां टमाटर के पौधे लगे होते हैं. वे पानी से नाइट्रेट सोख लेते हैं और बचा हुआ पानी भाप बनकर उड़ जाता है. छत में लगे कूलिंग सिस्टम के जरिए भाप को पानी में बदला जाता है और उसे फिर से मछली की टैंकों में वापस भेज दिया जाता है.

पानी की बचत

इस विधि का फायदा यह है कि परंपरागत मछली और टमाटर की परंपरागत पैदावार के विपरीत इसमें पौधों को साफ पानी नहीं दिया जाता. वैर्नर क्लोआस बताते हैं कि इस तरह के चक्र वाले सिस्टम की वजह से पूरी प्रक्रिया में दिन में सिर्फ दस प्रतिशत साफ पानी लगता है. "हम इतना ज्यादा पानी बचा सकते हैं और इस तरह से एक टिकाऊ सिस्टम चला सकते हैं." अफ्रीका में सूखे से प्रभावित इलाकों में यह सिस्टम फसल उपजाने का उपयुक्त और फायदेमंद तरीका होगा. इसमें भाप बनकर उड़ने वाले पानी को कूलिंग सिस्टम की मदद से फिर से पानी में बदल दिया जाता है और पानी के चक्र में फिर से इस्तेमाल में ले आया जाता है.

एक दिक्कत यह है कि इस सिस्टम को चलाने में ऊर्जा की काफी जरूरत होती है. इसलिए इंस्टीट्यूट में कार्बन उत्सर्जन को कम रखने के लिए एक फोटोवोल्टाइक प्लांट लगाया गया है. क्लोआस का मानना है कि यदि इस तरह का सिस्टम एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों में लगाया जाता है तो पूरे साल ऊर्जा की पूर्ति के लिए सामान्य सोलर सिस्टम पर्याप्त होगा. इस बीच बर्लिन में यह जानने के लिए और शोध किए जा रहे हैं कि इस सिस्टम की मदद से और कौन सी सब्जियां उगाई जा सकती हैं.

रिपोर्ट: थॉमस गिठ/एमजे

संपादन: आभा मोंढे

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