मजबूत मैडम और कमजोर ओलांद
१८ मई २०१३जब कभी फ्रांसीसी राष्ट्रपति जर्मन चांसलर मैर्केल के साथ अपने रिश्तों के बारे में कहते हैं तो वह "दोस्ताने तनाव" का इस्तेमाल करते हैं. जर्मनी और फ्रांस के रिश्ते शानदार नहीं हैं, ये कहने का एक अलग तरीका है. डांवाडोल और आवेगी निकोला सारकोजी के बाद फ्रांस्वा ओलांद की स्टाइल जर्मन चांसलर की तरह सादी और व्यावहारिक है. लेकिन फिर भी दोनों में सामंजस्य नहीं बन सका है. हालांकि वह साल की शुरुआत से ही खुद को पहले नाम से बुलाते हैं.
कई मुश्किलें
उनके मुश्किल रिश्तों की हालांकि वजहें कई हैं. इनकी शुरुआत फ्रांसीसी राष्ट्रपति चुनावों से हुई जहां मैर्केल ने खुले आम सारकोजी से चुने जाने की पैरवी की. लगता है कि यह बात ओलांद भूले नहीं हैं. समाजवादी नेता अब खुले आम आने वाले चुनावों में चांसलर पद के उम्मीदवार पेर श्टाइनब्रुक का समर्थन कर रहे हैं. एसपीडी पार्टी के श्टाइनब्रुक मैर्केल के मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं. ऐसा कर ओलांद साफ संकेत दे रहे हैं कि वह बर्लिन में नेतृत्व में बदलाव चाहते हैं.
लेकिन जरूरी है कि इन दोनों देशों की सत्ताधारी ताकतों में संतुलन बदलना चाहिए खासकर यूरोपीय संघ में. फ्रांस फिलहाल आर्थिक संकट से जूझ रहा है और इसलिए वह यूरोपीय संघ में भी राजनीतिक तौर पर थोड़ा कमजोर हो गया है जबकि ब्लॉक में जर्मन प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. एक दशक पहले फ्रांस की आर्थिक स्थिति जर्मनी जैसी ही थी लेकिन फिलहाल वह धीमी हो गई है. बेरोजगारी और अनोद्योगिकरण से फ्रांस जूझ रहा है.
फ्रांस के कई समाजवादी नेता जर्मनी की जबरदस्ती बचत की नीति पर आरोप लगाते हैं कि वही यूरो संकट का कारण है. जर्मन चांसलर ने लगातार फ्रांस के राजनीतिक कदमों को रोकती रही हैं चाहे वह यूरोपीय कर्ज की बात हो या फिर यूरोपीय केंद्रीय बैंक की नई भूमिका हो.
एक बात तो साफ है कि मैर्केल न तो कर्ज वाला संघ चाहती हैं न ही राजनीतिक यूरोपीय केंद्रीय बैंक और न ही अल्पावधि निवेश का कार्यक्रम. उन्हें पूरा विश्वास है कि जर्मनी के सबसे अहम साथी देश की स्थिति बेहतर होगी अगर वहां बड़े संरचनात्मक सुधार होंगें. मैर्केल सहित कई लोग इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि व्यावहारिक ओलांद इतना बड़ा कदम उठा पाएंगे. लेकिन वह कोई बड़ा भारी बदलाव नहीं कर रहे बल्कि छोटे छोटे कदमों से सुधार के रास्ते पर चल रहे हैं. ठीक जर्मन चांसलर की तरह.
फिर भी मैर्केल और उनके मंत्री सार्वजनिक तौर पर फ्रांसीसी नेतृत्व की आलोचना नहीं कर रहे. ओलांद के सत्ता में आने के बाद उनकी रेटिंग बहुत खराब हो गई है. फ्रांसीसी लोगों को लगता है कि वह अधिकार से काम नहीं करते. एक ऐसे नेता हैं जिसकी नीतियां विरोधाभासी और ढुलमुल हैं. मीडिया में उन्हें "मिनिस्टर वीक" कहा जाता है.
पुनर्जीवन की उम्मीद नहीं
ठंडे माहौल में फ्रांस जर्मनी के बीच मतभेदों पर किसी का ध्यान नहीं जाता लेकिन यूरो संकट में ये दिखाई दे रहा है. जर्मनी के फ्रांकफुर्टर अल्गमाइने अखबार ने हाल ही में कहा कि काम के मामले में भी चांसलर ऑफिस और एलीसी पैलेस के बीच कोई संवाद नहीं दिखाई देता. जबकि यूरोपीय संघ में कोई भी निर्णय लिए जाने के लिए दोनों को फैसला लेना जरूरी है. मैर्केल एक साथ चलने वाले यूरोप की नीति से दूर हो कर मान रही हैं कि हैं हर देश को अपनी स्थिति के हिसाब से फैसला लेना चाहिए. फ्रांस भी लंबे समय से इसी नीति पर विश्वास करता है. लेकिन जो साझा नीति वो पेश करने वाले हैं वह थोड़ी नरम कर दी जाएगी. कम से कम जर्मनी के चुनावों तक तो दोनों देशों के बीच रिश्ते ऐसे ही बने रहेंगे.
रिपोर्टः आंद्रेयास नोल/एएम
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन