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मतभेदों का शिखर सम्मेलन

१५ मार्च २०१३

यूरोपीय संघ की शिखर भेंट में सदस्य देशों के नेताओं के मतभेद सामने आ गए हैं. चाहे आर्थिक नीति हो या सीरिया पर उनका रवैया, हर मुद्दे पर मतभेद दिखते हैं. इस बार जर्मनी और फ्रांस का सामंजस्य भी नहीं दिखा.

तस्वीर: Reuters

बेरोजगारी, सामाजिक मुश्किलें और मंदी वे विषय हैं जिसने यूरोपीय संघ को परेशान कर रखा है और वह भी सालों से. ऐसा लगता है कि कोई सरकार प्रमुख बचत नीति का नाम मुंह में लेने को तैयार नहीं. ब्रसेल्स में जब सरकार प्रमुख चर्चा कर रहे थे तो हजारों लोग सरकारी खर्च में कटौतियों का विरोध कर रहे थे. अब तक बचत करने वाली चांसलर कही जाने वाली अंगेला मैर्केल भी चुप थीं. संघ में मतभेदों को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, "हम उन लक्ष्यों को जो हमने खुद तय किये थे, विकास और बहुत से लोगों के लिए रोजगार तथा ठोस राजकीय बजट, को तभी पूरा कर सकते हैं जब हम आर्थिक नीति के लिए साझा रुख अपनाएंगे." लेकिन इसी साझा समझ का अभाव है.

फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद बजट घाटे के लक्ष्यों पर लचीलापन चाहते हैं, अपने हित में. फ्रांस का बजट घाटा 2013 में भी स्थिरता संधि में तय सीमा से ज्यादा रहेगा. बजट घाटे की सीमा की निगरानी करने वाला यूरोपीय आयोग फ्रांस को एक साल की छूट दे सकता है.

अंगेला मैर्केलतस्वीर: picture-alliance/dpa

बचत जरूरी नहीं

अपनी राय खुलकर रखने वालों और दो टूक बोलने वाले लोगों में से एक हैं स्वीडन के प्रधानमंत्री फ्रेडरिक राइनफेल्ट. वे इस बात को याद करते हैं कि कितनी मुश्किल से यूरोपीय संघ के देशों ने बचत के नियम तय किए थे. उन्हें भविष्य में भी प्रभावी रहना चाहिए. भारी घाटे वाले देशों को अपने बजट को संतुलित करना होगा, नहीं तो उन्हें वित्तीय बाजार की सजा भुगतनी होगी. मतलब यह होगा कि इन देशों को सरकारी बांड के लिए ब्याज पर अतिरिक्त शुल्क चुकाना होगा.

राइनफेल्ट को यह बात भी परेशान करती है कि बजट घाटे को खत्म करने को हमेशा बचत के साथ जोर दिया जाता है. "और दूसरी चीजें भी की जा सकती हैं, जिनका बचत से कोई लेना देना नहीं है. अमेरिका और जापान के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया जा सकता है, श्रम बाजार में सुधार किया जा सकता है, भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष किया जा सकता है." लेकिन इस तरह के सुझाव शिखर सम्मेलन में दब जाते हैं.

मैर्केल और ओलांदतस्वीर: Reuters

संसद भी साथ नहीं

यूरोपीय राज्य व सरकार प्रमुखों को बचत नीति पर सिर्फ अपने नागरिकों के विरोध का ही सामना नहीं करना पड़ रहा, यूरोपीय संसद भी उनका साथ नहीं दे रही है. यूरोपीय संघ का सात वर्षीय बजट (2012-2020) भी धन का ही मामला है. सरकारों ने फरवरी में मुश्किल सौदेबाजी के बाद बजट तय किया था. उसमें आयोग के प्रस्तावों के विपरीत भारी कटौती की गई थी. इतना ही नहीं खर्च करने की तैयारी और तय किए गए फैसलों में भी खाई थी. यूरोपीय संसद इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं कि कुछ करने की बात की जाए, लेकिन उसके लिए धन नहीं दिया जाए. उसने बजट के मसौदे को ठुकरा दिया.

यूरोपीय संसद के अध्यक्ष मार्टिन शुल्स चेतावनी देते हैं, "जिम्मेदारी उठाना और उसके लिए धन न होना और अंत में उसे कर्ज लेकर पूरा करना, वही रास्ता है जिसकी वजह से कई सदस्य देश संकट में फंसे हैं. हम इस रास्ते पर साथ नहीं देंगे." अब संसद के साथ बजट पर नई बातचीत होगी.

सीरिया में हथियार

फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद ने शिखर सम्मेलन में अपनी आर्थिक नीतियों से लोगों को चकित किया है, अधिकांश लोगों को आश्चर्य इस बात पर हुआ कि उन्होंने सीरिया पर लगे हथियार प्रतिबंध को उठाने की मांग की. अब तक यूरोपीय संघ की इस पर एक राय थी. सीरिया में हथियार देने पर प्रतिबंध लगे रहेंगे.

विक्टर ओरबानतस्वीर: picture-alliance/dpa

लेकिन फ्रांस और ब्रिटेन इस फैसले से अलग हो सकते हैं. उनकी दलील रूस और ईरान के हथियारों से लैस सीरियाई सेना के सामने बिना हथियारों वाले विद्रोहियों के पास कोई मौका नहीं है. ओलांद ने कहा, "हमने कहा है कि ब्रिटेन और फ्रांस प्रतिबंधों को उठाए जाने के पक्ष में हैं क्योंकि हमें लगता है कि एक जनता खतरे में है." यदि दोनों देश इस मामले पर गंभीर हैं तो इसका मतलब यूरोप की साझा विदेश नीति का अंत होगा.

हंगरी का विवाद

राजनीतिक समस्याएं यूरोपीय संघ की अपनी कतारों में भी हैं. हंगरी में वहां की अनुदारवादी सरकार ने संसद में अपने भारी बहुमत से संविधान में व्यापक संशोधन किए हैं और संवैधानिक न्यायालय के अधिकारों में काट छांट की है. कई सरकार प्रमुखों के अलावा बहुत से यूरोपीय सांसदों ने प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान पर यूरोपीय मूल्यों के हनन का आरोप लगाया है.

ओरबान ने ब्रसेल्स में इन आरोपों से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि संशोधन अलोकतांत्रिक हैं. उन्होंने कहा कि वे बातचीत के लिए तैयार हैं. "यदि किसी को इससे कोई समस्या है तो प्रक्रियाएं और संस्थान हैं जिनके साथ हम इस मुद्दे पर चर्चा कर सकते हैं." यूरोपीय आयोग इस बात की जांच करेगा कि क्या हंगरी ने यूरोपीय कानूनों को तोड़ा है. आयोग के प्रमुख जोसे मानुएल बारोसो ने संशोधनों पर भारी चिंता जताई है.

रिपोर्ट: क्रिस्टॉफ हासेलबाख/एमजे

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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