यूरोपीय शरणार्थी नीति का अहम मकसद लोगों को उनके अपने देश में रहने के अवसर देना है. लेकिन डॉयचे वेले के क्रिस्टोफ हासेलबाख के मुताबिक बालकान देशों का उदाहरण दिखाता है कि ऐसा करना व्यवहार में कितना मुश्किल है.
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ना सिर्फ यह तर्क काबिले तारीफ है, बल्कि यह एक तरह का फार्मूला है जिसपर जर्मनी की सभी राजनीतिक पार्टियां और अन्य ईयू देश भी एकमत होते हैं जब बात शरण नीतियों की होती है. उनका मकसद है शरण मांग रहे लोगों के देश की हालत में सुधार करना ताकि उनके पास अपने देश को छोड़ कर कहीं और जाने के कारण ना हों. यूरोप के राजनीतिज्ञ इस दूरगामी योजना पर जोर देते आए हैं. खासकर अफ्रीका को ध्यान में रखते हुए.
ईयू में शामिल होने की होड़
इससे कौन सहमत नहीं होगा? असल में, जैसे ही आप पश्चिमी बालकान देशों पर नजर डालते हैं इस मकसद में कामयाबी की संभावना पर शक होता है. अलबेनिया, बोसनिया-हैर्त्सेगोवीना, कोसोवो, मैसेडोनिया और सर्बिया, सभी ईयू में शामिल होना चाहते हैं. ब्रसेल्स ने उन्हें इसकी संभावना भी दिखाई है, बशर्ते वे राजनीतिक और आर्थिक कसौटी पर पूरे उतरें. मॉन्टेनीग्रो और सर्बिया इस दौड़ में मुख्य दावेदार हैं. वे ईयू में शामिल होने के लिए एक कदम आगे हैं.
बोसनिया-हैर्त्सेगोवीना का मामला अलग है. यहां के पारंपरिक समूहों की युगोस्लाव युद्ध के समय से दुश्मनी है. और ये संयुक्त राष्ट्र और ईयू के संरक्षण में हैं. साथ ही, यहां स्थायित्व, सामंजस्य स्थापित करने, सरकारी ढांचे बनाने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के मामलों में खासा पश्चिमी प्रभाव है. ईयू के यूलेक्स मिशन के मुताबिक यह अहम है कि कोसोवो में प्रशासन, पुलिस और न्याय व्यवस्था का ढांचा तैयार किया जाए. अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक यहां अब तक काफी अव्यवस्था है.
20 साल का पुनर्निर्माणकाल
दूसरे शब्दों में, करीब 20 साल तक यानि युगोस्लाव युद्ध के अंत से ही अलबेनिया को छोड़ कर ईयू अन्य सभी देशों में पैसे, स्टाफ और अन्य तरीकों से सुधार की कोशिश कर रहा है, ताकि लोगों को अपने ही देश में रहने के मजबूत कारण मिल सकें.
आज हम यह कह सकते हैं कि 20 साल की स्थायीकरण की नीति, ईयू मानकों के हिसाब से, फेल हो गई. अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो इन इलाकों से हर महीने हजारों लोग भविष्य बनाने के लिए जर्मनी नहीं आ रहे होते. लेकिन अगर पश्चिमी बालकान में यह नीति फेल हो गई जहां हालात इतने विरोधी नहीं हैं, तो फिर हम पश्चिमी या उत्तरी अफ्रीका के मामले में किस तरह की उम्मीद कर सकते हैं?!
ब्रसेल्स के हाथ में कुछ नहीं
हालांकि इस बात से नाउम्मीद हो जाना या लक्ष्य को छोड़ देना भी गलत होगा. नाकामयाबी का एक कारण यह भी है कि ईयू अपने लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में लगनशील नहीं रहा.
उदाहरण के तौर पर सर्बिया की अल्पसंख्यक नीति. जर्मनी में शरण चाहने वाले अधिकांश सर्बिया वाले रोमा हैं. यहां तक जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल भी मानती हैं कि सर्बिया में रोमा समुदाय के साथ जबरदस्त भेदभाव होता है. दूसरी ओर जर्मन सरकार सर्बिया को एक सुरक्षित देश बताती है जहां ऊपरी तौर पर किसी तरह का अत्याचार नहीं है.
ईयू में जगह पाने की बड़ी शर्त है अल्पसंख्यकों की रक्षा. इसका मतलब है कि सर्बिया के मामले में ईयू के पास मोलतोल करने के सारे पैंतरे हैं. जुलाई में सर्बिया के प्रधानमंत्री अलेक्जांडर वूचिच ने मैर्केल को बताया कि शरणार्थी "साझा समस्या" हैं, जो ईयू से मदद की भीख मांग रहे हैं. रोमा के साथ भेदभाव को देखते हुए यह एक पाखण्डपूर्ण टिप्पणी है.
बेल्ग्रेड को साफ संदेश जाना चाहिए. जब तक आप अपने अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करते रहेंगे आप ईयू में शामिल होने के रास्ते में आगे नहीं बढ़ पाएंगे. ईयू को खुद आगे आकर यह संदेश पहुंचाना होगा.
जर्मनी के रिफ्यूजी कैंप
जर्मन आप्रवासन दफ्तर ने 2015 में तीन लाख शरणार्थियों के आने की उम्मीद की थी. लेकिन लोगों का भागना जारी है और इस बीच 4,50,000 शरणार्थियों के जर्मनी आने की संभावना है. पूरे जर्मनी में उनके रहने का इंतजाम किया जा रहा है
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कैंप में तीन महीने
राइनलैंड पलैटिनेट प्रांत के ट्रियर शहर में शरणार्थियों के रजिस्ट्रेशन का दफ्तर है. यहां स्थित कैंप में 850 लोगों के रहने की जगह है. जर्मनी आने वाले शरणार्थियों को सबसे पहले ऐसे रजिस्ट्रेशन कैंपों में भेजा जाता है. पहले उन्हें वहीं रहना पड़ता है. तीन महीने बाद उन्हें किसी शहर या जिले में रहने भेजा जाता है. वहां रहने की व्यवस्था जगह के हिसाब से अलग अलग तरह की है.
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रहना सिटीहॉल में
इस समय शरणार्थियों की बड़ी संख्या के कारण ज्यादातर रजिस्ट्रेशन कैंप भरे हुए हैं. इसलिए आपात कैंपों के रूप में दूसरी इमारतों का इस्तेमाल किया जा रहा है. नॉर्थराइन वेस्टफेलिया प्रांत के हाम शहर में सिटीहॉल में 500 शरणार्थियों के रहने की जगह बनाई गई है. 2700 वर्गमीटर बड़े हॉल को पार्टीशन डाल कर छोटे कमरों में बदल दिया गया है. हर ब्लॉक में 14 बिस्तर लगे हैं.
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सोना स्कूल क्लास में
शरणार्थियों को रहने के लिए शहरों में भेजा जाता है, लेकिन उनकी संख्या शहरों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है. आखेन शहर को जून में अचानक 300 शरणार्थियों को लेना पड़ा. उन्हें एक साथ ठहराने का एकमात्र विकल्प इंदा हायर सेकंडरी स्कूल था. योहानिटर राहत संगठन के वोलंटीयर्स स्कूल के कमरों में बिस्तर लगाकर शरणार्थियों के लिए तैयारी कर रहे हैं.
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तंबुओं का कामचलाऊ कैंप
हाल के दिनों में जर्मनी में शरणार्थियों को ठहराने के लिए तंबुओं का मोहल्ला बसाना पड़ रहा है. सेक्सनी अनहाल्ट प्रांत के हाल्बरश्टाट के केंद्रीय रजिस्ट्रेशन सेंटर ने तंबुओं का शहर बसाकर शरणार्थियों के रजिस्ट्रेशन की क्षमता बढ़ा ली है. लेकिन जर्मनी में कड़ाके की सर्दी के कारण सर्दियों तक उनके लिए रहने की वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी.
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"तीसरी दुनिया" की तरह
शरणार्थियों के लिए जर्मनी के सबसे बड़े कैंपों में से एक सेक्सनी के शहर ड्रेसडेन में है. यहां 15 देशों के 1000 से ज्यादा लोग रहते हैं. कैंप के निवासियों को बहुत धैर्य की जरूरत होती है. टॉयलेट के लिए लंबी कतार और खाने के लिए भी. आने वाले दिनों में यहां और शरणार्थियों को रखा जाएगा. कैंप में 1110 लोगों के रहने की जगह है.
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कंटेनर में जिंदगी
और शरणार्थियों को ठहरा पाने की क्षमता बढ़ाने के लिए जर्मनी में कई जगहों पर शरण की अर्जी देने वाले लोगों के रहने के लिए कंटेनर भी लगाए जा रहे हैं. ट्रियर के रिफ्यूजी कैंप में इस तरह के कंटेनर 2014 से ही हैं. इस समय इन कंटेनरों में कुल मिलाकर 1000 से ज्यादा शरणार्थी रह रहे हैं.
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रिफ्यूजी कैंपों पर हमले
दमकलकर्मी बाडेन वुर्टेमबर्ग प्रांत के रेमषिंगेन में शरणार्थियों के रहने के लिए तय एक मकान में लगी आग बुझा रहे हैं. निवासियों के कुछ हिस्से में शरणार्थियों का विरोध विदेशी विरोधी हिंसा में तब्दील होता जा रहा है. इस बीच तकरीबन हर रोज रिफ्यूजी कैंपों पर हमले हो रहे हैं, खासकर देश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में.
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राजनीतिक समर्थन
केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्री और एसपीडी पार्टी के प्रमुख जिगमार गाब्रिएल मैक्लेनबुर्ग वेस्टपोमेरेनिया के एक रिफ्यूजी कैंप में बच्चों से बात कर रहे हैं. यहां 300 शरणार्थी रहते हैं. उन्होंने शहरों और ग्रामपंचायतों को शरणार्थियों के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाने की मांग की है. उनका कहना है कि शरणार्थियों का मामला शिष्टाचार का भी है.
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रहने के लिए नई इमारतें
शरणार्थियों को उचित ढंग से रहने की सुविधा देने के लिए कई जगहों पर नई इमारतें बनाई जा रही हैं. जैसे यहां बवेरिया प्रांत के न्यूरेम्बर्ग शहर के निकट एकेनताल में. कतारों में बने ये मकान 60 लोगों के रहने के लिए होंगे. पहले शरणार्थी यहां जनवरी 2016 से रहना शुरू करेंगे.
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कामचलाऊ व्यवस्था
लेकिन नई इमारतों के बनने तक शरणार्थियों को ठहराने के लिए और बहुत सारे कामचलाऊ प्रंबध करने होंगे. जैसे कि यहां म्यूनिख शहर के यूरो इंडस्ट्री पार्क में. यहां राहत संगठनों और फायर ब्रिगेड के 170 कर्मचारियों ने रातों रात शरणार्थियों के रहने के लिए दर्जन भर तंबू लगाए हैं और उनमें 300 बिस्तर लगाए हैं.