यूरोपीय आयोग के प्रमुख जाँ क्लोद युंकर ने ईयू के सदस्य देशों के सामने बड़ी चुनौती पेश की है. यूरोपीय आयोग एक नया शरणार्थी तंत्र चाहता है. डीडब्ल्यू के बैर्न्ड रीगर्ट मानते हैं कि इसे पास करवाना बहुत मुश्किल होगा.
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युंकर ने अपने यूरोपीय जोश और भावनाओं का इस्तेमाल कर यूरोपीय संघ के सभी 28 सदस्यों से अपील की है कि वे रिफ्यूजी और शरणार्थी नीतियों पर अपनी दिशा बदलें. आज के यूरोप का बड़ा ही दुखद चित्रण करते हुए युंकर ने कहा कि सब कुछ यथा स्थिति में नहीं रहने दिया जा सकता.
इसमें कोई शक नहीं कि उन्होंने जो कहा वह सही है. लेकिन मौजूदा नियमों को पूरी तरह बदल देने के उनके प्रस्ताव को क्या वाकई अमल में लाया जा सकता है, इस पर सवालिया निशान लगा है. युंकर ने सभी राज्यों के बीच रिफ्यूजी और शरणार्थियों के एक स्थायी, अनिवार्य बंटवारा किए जाने का आह्वान किया है. यह बात अपने आप में किसी क्रांति से कम नहीं है क्योंकि आज की तारीख में केवल पांच ही देश यूरोप आने वाले 90 फीसदी लोगों को जगह दे रहे हैं.
जुर्माने पर विवाद
ऐसा कितनी ही बार हुआ है कि युंकर ने किसी मुद्दे पर गतिरोध हटाने के लिए पैसों की बात रखी हो. इस बार प्रस्ताव दिया कि जो सदस्य देश अपने कोटे के रिफ्यूजी और शरण चाहने वालों को नहीं रखेंगे, उन्हें प्रति व्यक्ति 6,000 यूरो का जुर्माना भरना पड़ेगा. जो राष्ट्र अपने तय हिस्से से अधिक लोगों को जगह देंगे, उन्हें हर अतिरिक्त व्यक्ति के लिए 6,000 यूरो प्रदान किए जाएंगे. देखना होगा कि खासतौर पर पूर्व यूरोपीय देशों में दिखने वाली अनिच्छा इस नए सिस्टम से दूर होती है या नहीं.
युंकर चाहते हैं कि इटली, ग्रीस और हंगरी जैसे "फ्रंट लाइन स्टेट" का बोझ सभी 28 सदस्यों के बीच बांटा जाए. अब तक दूसरे सदस्य देशों ने इस तरह की एकता दिखाने पर ऐतराज जताया है. इस बदलाव का अर्थ होगा – बेकार साबित हुए डबलिन सिस्टम का खात्मा. ग्रीस और इटली जैसे देश इस सिस्टम की कई सालों से अवहेलना करते आए हैं. हंगरी या ऑस्ट्रिया से आने वाले रिफ्यूजियों को जर्मनी में स्वीकार करने का निर्णय लेकर जर्मनी खुद भी इससे दूर हो चुका है.
बेहतर योजनाओं की जरूरत
इस प्रस्ताव की कुछ अन्य बातें हैं शरणार्थियों के लिए स्वागत केंद्र स्थापित करना, आर्थिक प्रवासियों और शरण के लिए स्वीकार ना किए जाने वालों का फास्ट ट्रैक निर्वासन, साथ ही ईयू की बाहरी सीमा पर सुरक्षा कड़ी करना. इसके अतिरिक्त ऐसे देशों की भी सूची बनाई जानी है जो अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं. इस विस्तृत सूची की मदद से भी यूरोप आने वालों की संख्या को सीमित किया जा सकेगा.
युंकर जानते हैं कि उनके प्रस्तावों से ऐसा नहीं होगा कि यूरोपीय संघ और बड़ी संख्या में शरणार्थियों को स्वीकारने लगेगा. लेकिन इसके जरिए वे शरणार्थियों के लिए बेहतर प्रबंधन और उनके साथ मानवीय बर्ताव को सुनिश्चित करना चाहते हैं. युंकर मानते हैं कि यूरोप के लोगों में रिफ्यूजियों को ले कर डर है. इसलिए जरूरी है कि नागरिकों को बेरोजगारी और आर्थिक परेशानियों से बचा कर रखा जाए.
जान हथेली पर लिए सीरिया से जर्मनी
सीरिया में युद्ध की भयावहता से बचने के लिए कई सारियाई तमाम खतरों का सामना करते हुए किसी तरह यूरोप पहुंचना चाहते हैं. एक नजर इस खतरनाक यात्रा के मुख्य बिंदुओं पर.
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Stache
घर छोड़ने की मजबूरी
2011 से जारी सीरियाई संघर्ष में अब तक 2,40,000 से भी अधिक लोगों की जान जा चुकी है. किसी तरह सीरिया से जान बचा कर भागने कि लिए लोग कोई भी ट्रेन, पैदल या फिर मानव तस्करों तक की मदद ले रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/A.A./M. Rashed
पहला स्टॉप: तुर्की
सीरिया से तुर्की के इज्मीर प्रांत पहुंचने वाले कई लोग वहां हॉस्टलों में रहते हैं. जो इसका खर्च नहीं उठा सकते, वे पार्कों और फुटपाथों पर ही सोने को मजबूर होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/E. Atalay
ग्रीस की ओर
तुर्की छोड़ने के बाद कई रिफ्यूजी ग्रीस की ओर से यूरोप में प्रवेश की कोशिश करते हैं. तस्वीर में दिख रहा एक सीरियाई समूह तुर्की के तटीय इलाके से एक फुलाने वाली छोटी सी नाव में बैठकर ग्रीस के कॉस द्वीप की ओर बढ़ते हुए.
तस्वीर: Reuters/A. Konstantinidis
यूरोप की मुख्यभूमि तक
तस्वीर में एक छोटी सी सीरियाई लड़की कॉस से ग्रीस मुख्यभूमि पर पिरेउस तक जाने वाली फेरी में. दस घंटे की यात्रा के बाद कई रिफ्यूजी उत्तर की ओर बढ़ते हुए ग्रीस और मैसेडोनिया की सीमा और फिर मैसेडोनिया से होते हुए सर्बिया की ओर इस "बाल्कन रूट" पर आगे बढ़ते हैं.
तस्वीर: Getty Images//W. McNamee
सीलबंद सीमाएं
अगस्त में मैसेडोनिया ने शरणार्थियों की बढ़ती तादाद को देखते हुए आपातकाल घोषित कर दिया. सेना को देश की सीमाओं को बंद करने के आदेश दिए गए. तस्वीर में मैसेडोनिया से सर्बिया जाने वाली ट्रेनों में भरे हुए शरणार्थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Licovski
बेलग्रेड में सुस्ताते
सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में कई रिफ्यूजी सार्वजनिक स्थलों पर कुछ समय तक रुक कर सुस्ताते हैं. अंतरराष्ट्रीय आप्रवासन संगठन के आंकड़े दिखाते हैं कि 2015 की शुरुआत से जून के मध्य तक ही करीब 1,60,000 प्रवासियों ने दक्षिण यूरोपीय देशों में कदम रखे हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/T. Brey
सर्बिया के बाद हंगरी बेहाल
हंगरी में गैरकानूनी रूप से सीमा पार करने की कोशिश करने वालों के लिए सजा कड़ी कर दी गई है. ईयू नियमों के अनुसार पकड़े जाने पर ऐसे लोगों का हंगरी में ही रजिस्ट्रेशन करवाया जाना चाहिए, लेकिन रिफ्यूजी आगे जर्मनी तक जाने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/B. Szabo
अप्रत्याशित रोड़ा
हंगरी के बाद अगला पड़ाव ऑस्ट्रिया है, जहां इनको शरण के लिए पंजीकृत किए जाने पर लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरु कर दिया. ऑस्ट्रिया के बिचके स्टेशन पर ऐसे ही एक प्रदर्शन में जर्मनी जाने देने की मांग करती एक रिफ्यूजी बच्ची.
तस्वीर: Reuters/L. Foeger
गर्मजोशी से स्वागत
कई दिनों तक हंगरी में अटके रहने के बाद हजारों रिफ्यूजी ऑस्ट्रिया और जर्मनी तक पहुंच रहे हैं. जर्मन शहर म्यूनिख में तो कई जर्मन एक बेहद मुश्किल यात्रा के बाद जर्मनी पहुंचने पर रिफ्यूजी दल के स्वागत के लिए पहुंच रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Armer
अब आगे क्या?
जर्मन राजनीतिज्ञ बड़ी संख्या में जर्मनी पहुंचने वाले रिफ्यूजी को शरण देने संबंधी व्यवस्था और खर्च का हिसाब लगाने में व्यस्त हैं. केवल सीरिया से भागने वालों के लिए ही नहीं बल्कि उन्हें शरण देने वालों के सामने भी एक बड़ी चुनौती है.
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कुल मिला कर ऐसा नहीं है कि यूरोप पर जरूरत से ज्यादा बोझ है. वह अभी जितने लोगों को ले रहा है, वह सीरिया के पड़ोसी देशों के मुकाबले "मामूली" है. युंकर ने इस ओर भी ध्यान दिलाया. अब 14 सितंबर को होने वाली बैठक में यूरोप के 28 देशों के गृह मंत्रियों फैसला लेना होगा कि भविष्य के लिए युंकर के इन प्रस्तावों को मान्यता दी जाए या नहीं.