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समाज

मदरसों में गीता और रामायण पढ़ाए जाने का विवाद

समीरात्मज मिश्र
१० मार्च २०२१

राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान की ओर से पेश किए पाठ्यक्रमों को लेकर यह विवाद छिड़ गया है कि इसके जरिए गीता और रामायण को मदरसों में पढ़ाया जाना अनिवार्य किया जा रहा है, जबकि संस्थान इन आशंकाओं को खारिज करता है.

भारत में मदरसे
मदरसों का कहना है कि वे धार्मिक शिक्षा के अलावा बच्चों को आधुनिक शिक्षा भी दे रहे हैंतस्वीर: Reuters/A. Abidi

दरअसल, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत के प्राचीन ज्ञान और विरासत की जानकारी को बच्चों में दिए जाने की वकालत की गई है और इसी के तहत राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान यानी एनआईओएस ने इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया है. एनआईओएस ने अपनी योजना के तहत मदरसों में पढ़ रहे कक्षा तीन, पांच और आठ के बच्चों के लिए गीता और रामायण का बेसिक कोर्स तैयार किया है. एनआईओएस ने भारतीय जन परंपरा के तहत 15 कोर्सों को तैयार किया है जिनमें वेद, योग, विज्ञान, वोकेशनल स्किल, संस्कृत भाषा, रामायण, भगवदगीता और पाणिनि कृत माहेश्वर सूत्र प्रमुख हैं. इन सभी कोर्सों को तीन भाषाओं में उपलब्ध कराया गया है.

पिछले हफ्ते इसकी औपचारिक घोषणा करते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया कि इस पाठ्यक्रम का लाभा एनआईओएस से जुड़ने वाले हर शैक्षणिक संस्थान को मिलेगा जिनमें करीब सौ मदरसे भी शामिल हैं. यह बात नहीं कही गई कि इसे लागू करने के लिए किसी को बाध्य किया जाएगा या फिर इसे लागू करना किसी भी संस्थान के लिए जरूरी है.

एनआईओएस शिक्षा मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है और देश भर में इससे जुड़े हजारों संस्थान हैं. सरकार ने ऐसी खबरों को भ्रामक बताया है कि इन पाठ्यक्रमों को किसी भी संस्था के लिए अनिवार्य किया जा रहा है. संस्थान के बयान में कहा गया है, "एनआईओएस मदरसों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए विशेष प्रावधान के तहत मान्यता देता है. इस प्रावधान के अंतर्गत छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली से हटकर निश्चित विषय संयोजन की बंदिशों के बिना विभिन्‍न विषयों की पेशकश की जाती है. एनआईओएस द्वारा उपलब्ध कराए गए विषयों में से विषय संयोजन का चयन करना छात्र के विवेक पर निर्भर है."

भारत में हजारों छात्र मदरसों में पढ़ रहे हैंतस्वीर: DW/P. Samanta

अफवाह कहां से फैली

एनआईओएस से तमाम अन्य शैक्षणिक संस्थानों के अलावा करीब 100 मदरसों को भी मान्‍यता मिली हुई है, जिनमें 50,000 छात्र पढ़ते हैं. एनआईओएस निकट भविष्‍य में करीब 500 और मदरसों को मान्यता देने की योजना पर काम कर रहा है. एनआईओएस की अध्यक्ष सरोज शर्मा ने भी मीडिया से बातचीत में इन आशंकाओं का खंडन किया है कि मदरसों में गीता और रामायण को पढ़ाया जाना अनिवार्य किया जा रहा है.

सरोज शर्मा के मुताबिक, "करीब सौ मदरसों के साथ एनआईओएस का समझौता हुआ है जहां हमारे बनाए गए कोर्स पढाए जाएंगे. आने वाले कुछ सालों में ऐसे मदरसों की संख्या पांच सौ तक पहुँच जाएगी. मुक्त विद्यालय के बनाए पाठ्यक्रम में कई विषय ऐसे हैं जो बिलकुल अनिवार्य नहीं हैं और ये संस्था और छात्र पर निर्भर करेगा कि वो कौन सा विषय चुनते हैं."

लेकिन सवाल उठता है कि यह अफवाह फैली कहां से कि मदरसों में गीता और रामायण को अनिवार्य किया जा रहा है. दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं, "इसमें सबसे बड़ी गलती तो उन लोगों की है जो पूरी तरह से किसी चीज को जाने समझे बिना अपने ढंग से व्याख्या करने लगते हैं. यहां तक कि मीडिया भी ऐसा ही करता है. कई अखबारों की हेडलाइन ऐसी दिख जाएगी जैसे कि इन्हें मदरसों में अनिवार्य किया जा रहा है. पर सच्चाई इससे अलग है. लेकिन दूसरी ओर, सरकार की विश्वसनीयता भी ऐसे मामलों में दांव पर है. इस तरह के मामलों में क्यों उस पर संदेह पैदा होने लगता है कि वह जबरन कोई विषय या पुस्तक पढ़ाना चाहती है. ऐसा पहले भी हो चुका है, इसीलिए ऐसी किसी योजना पर आशंका अफवाह में बदलने लगती है.”

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मदरसों में गीता रामायण

देश भर में तमाम मदरसों का संचालन करने वाली संस्था जमीयत उलेमा ए हिन्द को ऐच्छिक रूप से किसी पाठ्यक्रम की पेशकश की एनआईओएस की पहल पर कोई आपत्ति नहीं है, जब तक कि इसे अनिवार्य बनाया न बनाया जाए.

जमीयत से जुड़े एक मदरसे के संचालक रफीक अहमद बताते हैं, "देश में दो तरह के मदरसे चल रहे हैं. एक वो हैं जिन्हें सरकारी मदद मिलती है और दूसरे वे हैं जो बिना सरकारी मदद के निजी स्तर पर चलाए जा रहे हैं. मदरसों में आधुनिक शिक्षा दी भी जा रही है और इसका दायरा बढ़ाने की कोशिश भी की जा रही है. धार्मिक शिक्षा के अलावा विज्ञान और गणित की पढ़ाई भी मदरसों में होती है. एनआईओएस की पेशकश में कोई बुराई नहीं है. रामायण और गीता कोई पढ़ना चाहे तो पढ़ सकता है. अभी भी कुछ मदरसों में कुरान के साथ-साथ गीता और रामायण भी पढ़ाए जाते हैं.”

सरकारी मदद से चलने वाले मदरसों में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हिसाब से बदलाव किए गए हैं. नई नीति के तहत भारत के प्राचीन ज्ञान के बारे में पढ़ाने का प्रावधान है. इन्हीं के तहत गीता और रामायण पढ़ने का भी प्रावधान है. लेकिन ये प्रावधान अनिवार्य नहीं हैं, इसे एनआईओएस ने स्पष्ट कर दिया है.

लखनऊ में मुस्लिम धर्मगुरु खालिद रशीद फिरंगीमहली कहते हैं कि जो मदरसे सरकारी मदद से चल रहे हैं, वहां एनआईओएस अपना पाठ्यक्रम थोप सकती है लेकिन जो स्वतंत्र रूप से संचालित हो रहे हैं, वहां उसके पाठ्यक्रम को थोपे जाने का कोई औचित्य ही नहीं है और उसका अधिकार भी नहीं है. फिरंगीमहली के मुताबिक, ऐसी स्थिति में इस पर विवाद खड़ा करने का कोई मतलब नहीं है.

मदरसा संचालक रफीक अहमद कहते हैं कि तमाम मदरसों में पहले से ही एनसीईआरटी की किताबें लागू हैं और यहां इतिहास, हिंदी और विज्ञान जैसे विषयों के अलावा संस्कृत और महापुरुषों की जीवनी भी पहले से ही पढ़ाई जा रही है. रफीक अहमद यह भी कहते हैं कि एनआईओएस से बहुत कम मदरसों की मान्यता है क्योंकि इसकी औपचारिकताएं बहुत जटिल हैं. उनके मुताबिक, यदि इन्हें आसान कर दिया जाए तो ज्यादा मदरसे इससे जुड़ जाएंगे.

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