मद्रास हाईकोर्ट ने दलितों के लिए अलग श्मशान पर उठाया सवाल
२७ अगस्त २०१९
मद्रास हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि दलित भी हिंदू हैं, उनके लिए अलग श्मशान घाट क्यों? कोर्ट ने कहा कि किसी से धर्म और जाति पूछे बिना अस्पताल या सरकारी जगहों पर जाने दिया जाता है, ऐसे में अंतिम संस्कार के समय भेदभाव क्यों?
विज्ञापन
न्यायाधीश एस मणिकुमार और सुब्रमण्यम प्रसाद ने वेल्लोर के जिलाधिकारी और वानियामपडी के तहसीलदार को निर्देश दिया है कि वे इस बात का जवाब दें कि दलित समुदाय को अंतिम संस्कार के दौरान शव हवा में लटकाकर क्यों ले जाना पड़ा. हिंदू होने के बावजूद उनके अंतिम संस्कार के लिए अलग स्थान बनाने के पीछे का औचित्य क्या है.
आदेश के पीछे की वजह
दरअसल मीडिया में एक रिपोर्ट आयी थी कि तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के नारायणपुरम गांव में कुप्पन नाम के एक दलित व्यक्ति की मौत हो गई थी. कथित तौर पर ऊंची जाति के लोगों ने निजी जमीन से शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने का विरोध किया था. इसके बाद शव को पुल से लटकाकर ले जाया गया था. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था.
दलितों के साथ भेदभाव के नए मामले
केरल में 24 वर्षीय केल्विन जोसेफ की ऑनर किलिंग के लिए जिन 10 लोगों को दोषी करार दिया गया था, उन्हें अदालत ने दोहरे आजीवन कारावास की सजा सुनाई. पिछले साल 28 मई को केरल पुलिस को केल्विन जोसेफ की लाश मिली थी. केल्विन ने नीनू चाको (20) से शादी की थी, जो एक ऊंची जाति से ताल्लुक रखती थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि केल्विन को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया गया था.
जिन लोगों को दोषी पाया गया है, उनमें नीनू का भाई शानू भी शामिल है, जो मामले का मुख्य आरोपी था. नीनू के पिता इस मामले में पांचवें आरोपी थे, जिन्हें पिछले हफ्ते तीन अन्य लोगों के साथ बरी कर दिया गया था. शानू के अलावा नौ अन्य दोषियों को सजा सुनाई गई है. इस मामले के अभियोजक ने कहा कि सभी 10 दोषियों को दोहरे आजीवन कारावास की जो सजा सुनाई गई है, वह मामले की गंभीरता को दर्शाता है. अदालत के निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया में जोसेफ के पिता ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि कुछ आरोपियों को मौत की सजा सुनाई जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने कहा, "खैर, हम खुश हैं कि उन्हें वही मिला, जिसके वे हकदार हैं. लेकिन हम नीनू के पिता सहित जिन तीनों को छोड़ दिया गया है, उनके लिए हाईकोर्ट से सजा की मांग करेंगे."
भारत के किस राज्य में कितनी है बेरोजगारी
भारत में बेरोजगारी एक बडी समस्या है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के अनुसार, 2011-12 में जहां 9 राज्यों में ही राष्ट्रीय औसत दर से ज्यादा बेरोजगारी थी, वहीं 2017-18 में यह 11 राज्यों तक पहुंच गया.
तस्वीर: DW/P. M. Tiwari
केरल
वर्ष 2011-12 में केरल में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 11.4 प्रतिशत हो गई. बता दें कि 2011-12 में राष्ट्रीय बेरोजगारी औसत दर 2.2 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई है.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
हरियाणा
हरियाणा में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.8 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
असम
असम में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 4.7 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 8.1 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
पंजाब
पंजाब में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.2 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
झारखंड
झारखंड में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.5 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
तमिलनाडु
तमिलनाडु में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.2 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7.6 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
उत्तराखंड
उत्तराखंड में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 3.2 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7.6 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
बिहार
बिहार में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 3.5 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7.2 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: imago/photothek
ओडिशा
ओडिशा में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.4 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 7.1 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: AFP/Getty Images/M. Sharma
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी दर 1.5 प्रतिशत थी. वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 6.4 प्रतिशत हो गई.
तस्वीर: DW/P. Samanta
10 तस्वीरें1 | 10
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के भोजपुर में दलितों ने प्रशासन से शिकायत की थी कि मुसलमानों के सलमानी समुदाय, जिन्हें पहले 'हज्जाम' के तौर पर जाना जाता था, ने दलितों के बाल काटने और उनकी दाढ़ी बनाने से मना कर दिया है. पीपलसाना गांव के दलितों ने एसएसपी मुरादाबाद को सौंपे एक पत्र में कहा है कि सलमानी समुदाय उन्हें अछूत मानता है.
गांव के दलित राकेश कुमार ने कहा, "छूआछूत को बढ़ावा देने वाली ऐसी बातें दशकों से होती आ रही हैं, लेकिन अब हमने इसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला कर लिया है." राकेश ने कहा कि उसके पिता और पूर्वजों को बाल कटवाने के लिए भोजपुर या शहर जाना पड़ता था, "क्योंकि सलमानी समुदाय हमें छूने से परहेज करता है." राकेश ने आगे कहा, "समय बदल चुका है और हम इसके खिलाफ अपनी आवाज उठाएंगे."
इस बीच, एसएसपी से की गई शिकायत के विरोध में सलमानी समुदाय ने शुक्रवार को अपनी दुकानें बंद रखीं मुरादाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अमित पाठक ने कहा कि उन्हें शिकायत मिली है और उन्होंने मामले की जांच के आदेश दिए थे. उन्होंने कहा था, "अगर आरोप सत्य पाए गए तो हम कठोर कदम उठाएंगे."
कई जगहों पर बैन है महिलाओं की एंट्री
दुनिया में कई जगहों पर महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है. कहीं श्रद्धालुओं का ध्यान भटक जाने का तर्क दिया जाता है तो कहीं धार्मिक मान्यताओं का. एक नजर इन जगहों पर.
तस्वीर: Imago/ZumaPress
माउंट एथोस, ग्रीस
प्राचीन चोटी पर सिर्फ महिलाओं की एंट्री ही बैन नहीं है, बल्कि वहां मादा पालतू पशुओं को ले जाना भी प्रतिबंधित है. ग्रीस में माउंट एथोस को पवित्र पहाड़ भी कहा जाता है. पुरुष वहां स्पेशल परमिट लेकर सिर्फ फेरी से ही जा सकते हैं. मान्यताओं के मुताबिक महिलाओं के वहां जाने से ईसाई मठ के संतों के आध्यात्मिक मार्ग बाधित हो सकता है.
तस्वीर: DW/D.Tosidis
हाजी अली दरगाह, भारत
यह मुंबई की अहम पहचान भी है, जो 15वीं शताब्दी के सूफी संत पीर हाजी अली बुखारी की स्मृति है. वहां हर दिन 15 हजार से 20 हजार लोग जाते हैं. दरगाह प्रशासन के मुताबिक शरिया कानून के तहत महिलाओं के कब्रिस्तान जाने पर गैर इस्लामी है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
अयप्पा का मंदिर, भारत
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को 2018 में मंजूरी दी. लेकिन मंदिर प्रशासन अब भी महिलाओं के प्रवेश को लेकर रोड़े अटका रहा है. महिलाओं के मंदिर जाने तक पहुंचने पर शुद्धिकरण जैसी कर्मकांड कर प्रशासन विवादों में भी आया.
तस्वीर: Getty Images/AFP
माउंट ओमीन, जापान
2004 में इस पहाड़ को यूनेस्को विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया. बीते 1,300 बरसों से यहां घूमने की इजाजत सिर्फ पुरुषों को है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, महिलाओं की वजह से श्रद्धालुओं का ध्यान भटकता है. 1872 में माउंट ओमीन के प्रशासकों ने जापान सरकार के आदेश को भी खारिज कर दिया.
तस्वीर: DW/K. Dambach
गैलेक्सी पार्क, जर्मनी
म्यूनिख के पास यूरोप के सबसे बड़े वॉटरपार्कों में शुमार गैलेक्सी वॉटर पार्क ने एक हाई स्पीड स्लाइड में महिलाओं की एंट्री बैन कर दी. पार्क अधिकारियों के मुताबिक बेहद तेज रफ्तार से फिसलने के कारण महिलाओं को "अंतरंग चोटें" लग सकती हैं. पार्क अधिकारियों के मुताबिक छह महिलाओं जननांगों में ऐसी चोटें आ चुकी हैं. अब महिलाओं के लिए खास बॉडीसूट बनाने पर काम चल रहा है.
तस्वीर: Reuters
फुटबॉल स्टेडियम, ईरान
ईरान में महिलाएं फुटबॉल स्टेडियम में नहीं जा सकती है. फुटबॉल की शौकीन कुछ महिलाएं कई बार स्टेडियम में घुसने की कोशिश के दौरान गिरफ्तार भी हो चुकी हैं. कई अन्य स्पोर्ट्स स्टेडियमों में भी महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है.
तस्वीर: Reuters/D. Martinez
मोटरबाइक राइड, इंडोनेशिया
इंडोनेशिया के आचे प्रांत में अविवाहित महिला पुरुष के साथ मोटरसाइकिल पर नहीं बैठ सकती. आचे इंडोनेशिया का अकेला ऐसा प्रांत है जहां शरिया कानून चलता है. वहां के स्कूलों में लड़के और लड़कियों को अलग अलग पढ़ाने का भी कानून है.
तस्वीर: imago/ZUMA Press
7 तस्वीरें1 | 7
दलित शब्द बाहरी लोगों ने दिया
इन सब के बीच राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संयुक्त महासचिव कृष्णा गोपाल ने 'दलित' शब्द के इस्तेमाल को लेकर चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि यह शब्द 'बाहरी लोगों' द्वारा दिया गया है और इसका मतलब समाज के एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग को शोषण है. दलित शब्द की जगह अनुसूचित जाति का इस्तेमाल करना चाहिए.
उन्होंने कहा, उत्पीड़न हुआ है और इसके बारे में दो राय नहीं है. लेकिन इसके पीछे कई कारण है. अनुसूचित जाति के लोगों का गुस्सा जायज है क्योंकि उन्होंने वर्षों तक उत्पीड़न झेला. ज्योतिबा फुले से लेकर बी आर अंबेदकर और महात्मा गांधी ने उन्हें न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया.
लंबे समय तक हाशिए पर रहा दलित समाज अब राजनीतिक रूप से जागरुक नजर आने लगा है. पिछले कुछ समय में ऐसे कई मौके आए जब दलितों ने अपनी आवाज बुलंद की और विरोध प्रदर्शन भी किए. एक नजर दलित आंदोलनों पर
तस्वीर: AP
दलित-मराठा टकराव (जनवरी 2018)
महाराष्ट्र में साल 2018 की शुरुआत दलित-मराठा टकराव के साथ हुई. भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं सालगिरह के मौके पर पुणे के कोरेगांव में दलित और मराठा समुदायों के बीच टकराव हुआ जिसमें एक युवक की मौत हो गई. मामले ने तूल पकड़ा और पूरे महाराष्ट्र में इसकी लपटें नजर आने लगीं. दलितों संगठनों ने 3 जनवरी को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया. इस बीच प्रदेश के अधिकतर इलाकों से हिंसा, आगजनी की खबरें आती रहीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool
सहारनपुर में ठाकुर-दलित हिंसा (मई 2017)
साल 2017 में उत्तर प्रदेश का सहारनपुर दलित विरोध का केंद्र बना रहा. क्षेत्र में दलित-ठाकुरों के बीच महाराणा प्रताप जयंती कार्यक्रम के बीच टकराव हुआ. इसके चलते दोनों पक्षों के बीच पथराव, गोलीबारी और आगजनी भी हुई. विरोध इतना बढ़ा कि मामला दिल्ली पहुंच गया. जातीय हिंसा के विरोध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर दलितों की भीम आर्मी ने बड़ा प्रदर्शन किया.
तस्वीर: Reuters/A. Dave
गौ रक्षकों के खिलाफ गुस्सा (जुलाई 2016)
जुलाई 2016 में गुजरात के वेरावल जिले के ऊना में कथित गौ रक्षकों ने गाय की खाल उतार रहे चार दलितों की बेरहमी से पिटाई की थी. इनमें से एक युवक की मौत हो गई थी. घटना का वीडियो वायरल हुआ. गुजरात में दलित समुदायों ने इसका जमकर विरोध किया. विरोध प्रदर्शन के दौरान करीब 16 दलितों ने आत्महत्या की कोशिश भी की. इस मामले की गूंज संसद तक पहुंची.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
कोपर्डी गैंगरेप केस (जुलाई 2016)
यह एक ऐसा मामला था जिसमें मराठा समुदाय की ओर से एससी/एसटी कानून को खत्म किए जाने की मांग की गई. 13 जुलाई 2016 को मराठा समुदाय की एक 15 साल वर्षीय लड़की को अगवा कर उसका गैंगरेप किया गया. जिसके बाद उसकी हत्या कर दी गई. महाराष्ट्र में इस घटना के खिलाफ काफी प्रदर्शन हुआ था जिसने बाद में मराठा आंदोलन का रूप अख्तियार कर लिया. मामले में तीन दलितों को दोषी करार दिया गया जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई.
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
रोहित वेमुला की आत्महत्या (जनवरी 2016)
हैदराबाद यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने देश में दलितों और छात्रों के बीच एक नया आंदोलन छेड़ दिया. यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों ने प्रशासन पर भेदभाव का आरोप लगाया. रोहित ने अपने सुसाइड नोट में विश्वविद्यालय को जातिवाद, चरमपंथ और राष्ट्रविरोधी तत्वों का गढ़ बताया था. इसके बाद देश भर में दलित आंदोलन हुए और मामला देश की संसद तक पहुंचा.
तस्वीर: DW/M. Krishnan
खैरलांजी हत्याकांड (सितंबर 2006)
जमीनी विवाद के चलते महाराष्ट्र के भंडारा जिले के खैरलांजी गांव में 29 सितंबर को एक दलित परिवार के 4 लोगों की हत्या कर दी गई थी. परिवार की दो महिला सदस्यों को हत्या के पहले नंगा कर शहर भर में घुमाया गया था. इस घटना के विरोध में पूरे महाराष्ट्र में दलित प्रदर्शन हुए थे. सीबीआई ने अपनी जांच में गैंगरेप की बात को नकार दिया था. दोषियों को मौत की सजा मिली थी, जिसे बंबई हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया.