यूरोपीय संघ ने तितलियों और मधुमक्खियों के लिए हानिकारक कीटनाशकों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया. इन कीटों के मारे जाने से खाद्य संकट जैसी स्थिति की आशंका पैदा होने लगी थी.
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यूरोपीय संघ के 28 देशों के प्रतिनिधियों ने बहुमत से भंवरों और मधुमक्खियों के लिए हानिकारक कीटनाशकों पर बैन लगाने का फैसला किया. इस वोटिंग के बाद 2018 के अंत में यूरोपीय संघ में ऐसे कीटनाशकों का इस्तेमाल प्रतिबंधित हो जाएगा. यूरोपीय संघ में 2013 में ऐसे कीटनाशकों पर आंशिक प्रतिबंध लगाया गया था.
इस मुद्दे को लेकर अवाज नाम के ग्रुप ने जोरदार अभियान छेड़ा गया था. अवाज की एंटोनिया स्टाट्स ने प्रतिबंध के फैसले को बड़ी कामयाबी बताते हुए कहा, "आखिरकार हमारी सरकारें सुन रही हैं."
बीते सालों में दुनिया भर में भंवरों और मधुमक्खियों की संख्या चिंताजनक रूप से कम हुई है. इसका सीधा असर फसलों और फलों के उत्पादन पर पड़ा है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो परागण के अभाव में खाद्य संकट खड़ा हो सकता है. तितलियां, मधुमक्खियां, भंवरे और कई दूसरे कीट पतंगे प्राकृतिक रूप से परागण का काम करते हैं.
यूरोपीय संघ के मुताबिक वैज्ञानिक समीक्षा के बाद ऐसे कीटनाशकों का पता चला जो इन कीटों की घटती आबादी के लिए जिम्मेदार हैं. यूरोपीय संघ के फैसले से स्विट्जरलैंड की एग्रीबिजनेस कंपनी सिनजेंटा परेशान हो गई है. प्रतिबंध पर निराशा जताते हुए सिनजेंटा ने कहा, "सबूत साफ तौर पर दिखाते हैं कि भोजन की कमी, बीमारी और ठंडे मौसम की तुलना में नियोनिकोटिनॉयड्स मक्खियों की सेहत को बहुत कम नुकसान पहुंचाते हैं."
लेकिन बाकी पक्ष सिनजेंटा के तर्क को खारिज कर रहे हैं. ससेक्स यूनिवर्सिटी में बायोलॉजी के प्रोफेसर डैव गॉलसन कहते हैं, "लैब और खेतों में हुए शोधों से ऐसे ढेरों सबूत मिले हैं जो साबित करते हैं कि नियोनिकोटिनॉयड्स तितलियों, एक्वेटिक कीटों और कीट खाने वाले पक्षियों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं. यूरोपीय संघ का फैसला तार्किक है."
वोटिंग के बाद अब यूरोपीय कमीशन आगामी हफ्तों में फैसले को अमल में लाएगा. 2018 के अंत में बैन लागू हो जाएगा. बैन किए जाने वाले कीटनाशकों का इस्तेमाल सिर्फ ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस कहे जाने वाले फॉर्मों के भीतर किया जा सकेगा. वहां मक्खियां नहीं होतीं.
जलवायु परिवर्तन और कीड़े मकोड़े
ग्लोबल वॉर्मिंग की सोचिए तो उसकी वजह से दुनिया की बहुत सारी प्रजातियों खत्म होने के कगार पर हैं. मसलन बर्फ पिघलने से पोलर भालू को खतरा है. बहुत से छोटे कीड़े मकोड़ों की जान को भी खतरा बना हुआ है.
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परागण वाली मक्खियां
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से वह जगह सिकुड़ रही है जहां उत्तर अमेरिका और यूरोप में भौंरे रह सकते हैं. फूलों का परागण करने वाले भौंरे अपने आकार और शरीर के कारण जल्द ही गर्म हो जाते हैं. जिंदा रहने के लिए उन्हें खास पौधों की जरूरत होती है, इसलिए वे कहीं ढंडे इलाके में जा भी नहीं सकते.
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मेहनती मक्खियां
भौंरों के विपरीत मधुमक्खियों के गरम माहौल में जिंदा रहने की ज्यादा संभावना होती है. लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर उन पर भी पड़ रहा है. मौसम के गर्म होने के कारण फूल मक्खियों के चखने से पहले ही खिल जा रहे हैं. इसलिए फूलों का रस कम हो जाता है और उन्हें संसाधनों में कमी का सामना करना पड़ता है.
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तितलियां
केसरिया सफेद धब्बों वाली तितलियां उत्तरी अमेरिका के प्रशांत तट पर पाई जाती हैं. इनका मुख्य खाना ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से जल्द ही पक जाता है और तितलियों के लिए पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होता. वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के पैटर्न का पता करने के लिए अब तितलियों का सहारा ले रहे हैं.
जैव विविधता केंद्र के अनुसार पहाड़ी मक्खियां साफ पानी के स्रोतों का संकेत देती हैं. यह कीड़ा भी जलवायु परिवर्तन का शिकार हो रहा है. यह पानी की गुणवत्ता के लिए अत्यंत संवेदनशील है और अमेरिकी प्रांत मोंटाना में ग्लेशियर नेशनल पार्क में ग्लेशियरों से गलकर आने वाले पानी पर निर्भर करता है.
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टिड्डे
बेदगलारी की झाड़ियों का टिड्डा खत्म होने के खतरे में है, जब से माउंट तहताली पर इसकी आबादी खत्म हो गई है. एकमात्र जीवित प्रजाति 1800 मीटर की ऊंचाई पर रहती है. चूंकि ये टिड्डे उड़ नहीं सकते, वे किसी दूसरी जगह पर रहने के लिए नहीं जा सकते. इन्हें बचाने के लिए कहीं और जाने में इनकी मदद करनी होगी.
तस्वीर: Battal Ciplak
खून के प्यासे
जलवायु परिवर्तन का फायदा उठाने वाली प्रजातियां भी हैं. मौसम के गर्म होने की वजह से जानलेवा बीमारियों को ले जाने वाले कीड़ों की आबादी बढ़ रही है. सर्दियों का कम ढंडा होना और कम दिनों तक रहना भी इनकी आबादी को बढ़ने में मदद दे रहा है. अमेरिका में लाइम बीमारी बढ़ रही है.
आक्रामक चींटियां
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से चींटियों की तादाद भी बढ़ रही है. गर्मी को पसंद करने वाली लाल चींटी बहुत ही आक्रामक होती है. वह ऐसे इलाकों में भी फैलती जा रही है, जहां आम तौर पर उन्हें नहीं होना चाहिए क्योंकि मौसम का गर्म होना और इलाकों को उनके रहने लायक बना रहा है.
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भूखा सिपाही
हरा खटमल पहले उत्तरी अमेरिका, पश्चिम एशिया और अफ्रीका के गर्म इलाकों में होता था. कुछ साल पहले वह ब्रिटेन में भी दिखने लगा, जहां आम तौर पर मौसम ढंडा होता है. चूंकि वह हर प्रकार की फसल को चट कर जाता है, वह ब्रिटिश किसानों के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है.
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खतरनाक मच्छर
एशिया का टाइगर मच्छर पानी के करीब अंडे देता है और चिकनगुनिया और डेंगू जैसे वायरस फैलाता है. पहले वह धरती के दक्षिणी हिस्सों में हुआ करता था लेकिन पिछले कुछ सालों से उत्तरी हिस्सों पर उसका हमला जारी है जहां जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम गर्म होता जा रहा है.