ममता बनर्जी की घोषणा से पश्चिम बंगाल की राजनीति में हलचल
प्रभाकर मणि तिवारी
१८ जनवरी २०२१
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है.
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नंदीग्राम ने कोई 14 साल पहले जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की वजह से देश ही नहीं, पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं. ममता और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में पहुंचने की राह भी इसी आंदोलन से खुली थी. बाद में सिंगुर के ऐसे ही आंदोलन ने इस राह को और मजबूती दी और आखिरकार वर्ष 2011 में ममता ने लेफ्टफ्रंट के 34 साल के राज का अंत कर सत्ता संभाली थी. लेकिन मौजूदा दौर में नंदीग्राम की अहमियत की वजह दूसरी है.
कभी ममता का दाहिना हाथ रहे शुभेंदु अधिकारी अब टीएमसी से नाता तोड़ कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. बीजेपी उनके सहारे ही बंगाल की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही है. लेकिन ममता ने अब उन्हीं शुभेंदु के गढ़ में सीधी चुनौती देते हुए नंदीग्राम सीट से लड़ने का ऐलान किया है.
ममता ने यह ऐलान सोमवार को नंदीग्राम की रैली में किया. शुभेंदु के बीते दिसंबर में टीएमसी छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने के बाद यह इस इलाके में ममता की पहली रैली थी. वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में शुभेंदु ने टीएमसी के टिकट पर यह सीट जीती थी.
ममता बनर्जी की रैली
नंदीग्राम में अपनी हाल की पहली रैली में ममता ने कहा कि वे इसी सीट से चुनाव लड़ना चाहती हैं. उनका कहना था, "मैं अपना नाम भूल सकती हूं. लेकिन कभी नंदीग्राम को नहीं भूल सकतीं. नंदीग्राम जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ विरोध का प्रतीक है. यह जगह पार्टी के लिए भाग्यशाली रही है. मैंने वर्ष 2016 में यहीं से टीएमसी के पहले उम्मीदवार के नाम का ऐलान किया था.”
ममता ने 14 मार्च 2007 की पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों के परिजनों को मासिक पेंशन देने का भी ऐलान किया. ममता बनर्जी हालांकि पारंपरिक तौर पर दक्षिण कोलकाता की भवानीपुर विधानसभा सीट से लड़ती रही हैं. उन्होंने कहा कि वे भवानीपुर के लोगों की भावनाओं की भी उपेक्षा नहीं कर सकतीं. इससे कयास लग रहे हैं कि ममता दोनों सीटों से मैदान में उतरेंगी.
शुभेंदु अधिकारी का नाम लिए बिना टीएमसी प्रमुख ने कहा कि उनको पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेताओं की कोई चिंता नहीं है. जब टीएमसी का गठन हुआ था तो यह तमाम नेता पार्टी में नहीं थे. ममता ने कहा, "मैं हमेशा नंदीग्राम से ही अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करती रही हूं. यह जगह मेरे लिए भाग्यशाली साबित हुई है. कुछ लोग बंगाल को बीजेपी के हाथों बेचने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. टीएमसी छोड़ने वाले देश के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति बन सकते हैं. लेकिन मैं अपने जीते-जी बंगाल को बीजेपी के हाथों बेचने नहीं दूंगी.” उनका कहना था कि बीते कुछ वर्षों के दौरान अपना लूटा हुआ धन बचाने के लिए कुछ नेता बीजेपी का दामन थाम रहे हैं.
भारत में कितने लोग कौन सी भाषा बोलते हैं
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में संस्कृत सहित कुल 22 भाषाएं दर्ज हैं. देश की 96.7 प्रतिशत आबादी इन्हीं 22 भाषाओं को बोलती है. वहीं अन्य 3.3 प्रतिशत लोग अन्य भाषा बोलते हैं. एक नजर भारत में बोली जाने वाली भाषाओं पर.
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हिंदी
हिंदी संवैधानिक रूप से देश की राजभाषा होने के साथ-साथ देश में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के 43.63 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं.
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बंगाली
बंगाली भारत में दूसरी सबसे अधिक बोलने वाली भाषा है. करीब 8.03 प्रतिशत अर्थात नौ करोड़ 72 लाख भारतीय बंगाली बोलते हैं. यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में बोली जाती है.
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मराठी
भारत में कुल 6.86 प्रतिशल अर्थात आठ करोड़ 30 लाख लोग मराठी भाषा बोलते हैं. यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में बोली जाती है.
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तेलुगु
तेलुगु भाषा आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के अलावा तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों के कुछ हिस्सों में भी बोली जाती है. करीब 6.7 प्रतिशत लोग यह भाषा बोलते हैं.
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तमिल
तमिल भाषा मुख्य रूप से भारत में तमिलनाडु तथा पुदुचेरी में बोली जाती है. करीब 5.7 प्रतिशत भारतीय इस भाषा बोलते हैं.
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गुजराती
भारत में 4.58 प्रतिशत लोग गुजराती बोलते हैं. यह मुख्य रूप से गुजरात में बोली जाती है.
तस्वीर: UNI
उर्दू
भारत की कुल जनसंख्या का 4.19 प्रतिशत लोग उर्दू बोलते हैं. कश्मीर से लेकर बिहार तक कई राज्यों में लोग मुस्लिम समुदाय के बीच इसका व्यापक इस्तेमाल होता है.
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कन्नड़
भारत में 3.61 प्रतिशत लोग कन्नड़ भाषा बोलते हैं. यह मुख्य रूप से कर्नाटक में बोली जाती है.
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उड़िया
उड़िया भारत के ओड़िशा राज्य में बोली जाने वाली मुख्य भाषा है. भारत में 3.1 प्रतिशत लोग उड़िया भाषा बोलते हैं.
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मलयालम
भारत में 2.88 प्रतिशल लोग मलयालम भाषा बोलते हैं. यह केरल राज्य की प्रमुख भाषा है लेकिन तमिलनाडु, कर्नाटक सहित देश के कई अन्य इलाकों में बसे मलयालियों द्वारा यह बोली जाती है.
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पंजाबी
भारत में 2.74 प्रतिशत लोग पंजाबी भाषा बोलते हैं. यह मुख्य रूप से पंजाब में बोली जाती है. इसे गुरमुखी लिपि में लिखा जाता है.
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असमिया
असमिया भारत के असम राज्य की मुख्य भाषा है. भारत के 1.26 प्रतिशत लोग यह भाषा बोलते हैं.
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मैथिली
भारत में 1.12 प्रतिशत लोग मैथिली भाषा बोलते हैं. यह मुख्य रूप से बिहार के मिथिलांचल इलाके में बोली जाती है. इसके अलावा मैथिली झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्र में भी बोली जाती है.
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संथाली
भारत में 0.61 प्रतिशत लोग संथाली बोलते हैं. संथाली भाषा का प्रयोग झारखंड, असम, बिहार, उड़ीसा, त्रिपुरा, और पश्चिम बंगाल में रहने वाले संथाल समुदाय के लोगों के द्वारा बोली जाती है.
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कश्मीरी
कश्मीरी भाषा मुख्यतः कश्मीर घाटी तथा चेनाब घाटी में बोली जाती है. भारत के 0.56 प्रतिशत लोग कश्मीरी बोलते हैं.
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नेपाली
भारत के 0.24 प्रतिशत लोग नेपाली भाषा बोलते हैं. यह भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्वी राज्यों आसाम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश राज्यों के कुछ इलाकों में बोली जाती है.
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सिंधी
भारत में 0.23 प्रतिशत लोग सिंधी भाषा बोलते हैं. यह पश्चिमी हिस्से और मुख्य रूप से सिंध प्रान्त में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है.
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डोगरी
डोगरी भारत के जम्मू और कश्मीर में बोली जाने वाली एक भाषा है. इस भाषा को बोलने वाले डोगरे कहलाते हैं. भारत में कुल 0.21 प्रतिशत लोग डोगरी भाषा बोलते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कोंकणी
भारत में कुल 0.19 प्रतिशत लोग कोंकणी भाषा बोलते हैं. यह गोवा, केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ इलाकों में बोली जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मणिपुरी
भारत में कुल 0.15 प्रतिशत लोग मणिपुरी भाषा बोलते हैं. यह भाषा असम के निचले हिस्सों एवं मणिपुर प्रांत के लोगों द्वारा बोली जाती है.
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बोडो
भारत में कुल 0.12 प्रतिशल लोग बोडो भाषा का प्रयोग करते हैं. यह देवनागरी लिपी में लिखी जाती है. असम के कुछ इलाकों में बोली जाती है.
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संस्कृत
संस्कृत भाषा को भी भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह दी गई है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में करीब 24,821 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा के रूप में बताया था.
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शुभेंदु की अहमियत
बंगाल की राजनीति में शुभेंदु इतने अहम क्यों हैं? तृणमूल कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व क्यों आखिर तक उनको मनाने के लिए हाथ-पैर मारता रहा और बीजेपी की निगाहें क्यों कद्दावर नेता पर टिकी थीं? इन तमाम सवालों का जवाब तलाशने के लिए कम से कम पंद्रह साल पीछे जाना होगा.
शुभेंदु ने 2006 के विधानसभा में पहली बार कांथी दक्षिण सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था. उसके बाद 2009 में उन्होंने तमलुक सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते. 2014 के चुनावों में भी उन्होंने अपनी सीट पर कब्जा बनाए रखा. उसके बाद 2016 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने नंदीग्राम सीट से चुनाव जीता और ममता मंत्रिमंडल में परिवहन मंत्री बनाए गए. धीरे-धीरे उनको सरकार में नंबर दो माना जाने लगा था.
मेदिनीपुर इलाके में अधिकारी परिवार का काफी राजनीतिक रसूख है. शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी 1982 में कांथी दक्षिण विधानसभा सीट से कांग्रेस से विधायक बने थे. वे बाद में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वे फिलहाल कांथी लोकसभा सीट से सांसद हैं.
शिशिर अधिकारी यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रहे थे. शुभेंदु के भाई दिब्येंदु भी जिले की तमलुक लोकसभा सीट से सांसद हैं. शुभेंदु के एक अन्य भाई सौम्येंदु कांथी नगरपालिका के अध्यक्ष थे. बाद में पार्टी ने उनको हटा दिया था.
पूर्व मेदिनीपुर जिले की 16 सीटों के अलावा पश्चिम मेदिनीपुर (18), बांकुड़ा (12), पुरुलिया (9), मुर्शिदाबाद (22) और मालदा (12) जिलों की ज्यादातर सीटों पर भी अधिकारी परिवार का असर है. मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में पार्टी के पर्यवेक्षक के तौर पर शुभेंदु ने वहां कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को तृणमूल में शामिल कर कई नगर पालिकाओं पर कब्जा करने में अहम भूमिका निभाई थी. इसी वजह से बीजेपी उनको हर हालत में अपने पाले में करना चाहती थी.
तृणमूल कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने में जिस नंदीग्राम आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी उसके मुख्य वास्तुकार शुभेंदु ही थे. वर्ष 2007 में कांथी दक्षिण सीट से विधायक होने के नाते तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी के बैनर तले स्थानीय लोगों को एकजुट करने में उनकी सबसे अहम भूमिका थी.
जहां बीते गुरुदेव के दिन
सात मई, 1861 को कलकत्ता में जन्मे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में बिताया. कुश्तिया और कुमारखाली में उनके निवास और कामकाज की जगह पर अब स्मारक है.
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पद्मा नदी के किनारे यह कोठी अपनी जमींदारी की देखभाल करने के लिए टैगोर ने बनवायी थी. कुश्तिया जिले में स्थित यह कोठी आज बहुत महत्वपूर्ण स्मारक है.
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टैगोर सन 1889 में यहां पहली बार पहुंचे. अपने किशोरावस्था और जवानी में वे कई बार यहां आते जाते रहे. फिर 1891 से 1901 तक वे यहां थोड़े थोड़े समय के लिए रहे.
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अपने इसी कमरे में महाकवि ने कई कालजयी रचनाएं रचीं. चित्रा, चैताली, कई संक्षिप्त कहानियां और कविताएं उन्होंने यहीं लिखीं. तस्वीर में उनके बिस्तर समेत कमरे का नजारा.
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कुठीबाड़ी कहे जाने वाले इस घर के एक मुख्य हॉलनुमा कमरे में सजायी गयी हैं उनकी कई दुर्लभ तस्वीरें.
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अब स्मारक बन चुके उनके इस निवास में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की इस्तेमाल की गयी पालकी भी रखी गयी है. इससे वे अपनी जमींदारी के इलाकों में जाया करते.
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यह है टैगोर की इस्तेमाल की गयी स्पीड बोट, जिसका नाम था चपला. इससे वे अक्सर पास बहने वाली पद्मा नदी में जाते.
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यह है प्रसिद्ध बोकुलतला घाट. यहां बैठ कर उन्होंने कई स्मरणीय गीत लिखे.
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करीब 11 एकड़ में फैले इस कोठी के इलाके की चाहरदीवारी लहरों के आकार की बनी है. जैसे पद्मा नदी की लहरें हों.
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कुमारखाली में टैगोर का एक प्रसिद्ध ठिकाना और भी है. रेलने स्टेशन के करीब बना उनके कामकाज का केंद्र टैगोर लॉ भी अब स्मारक है.
(मुस्ताफिज मामुन/आरपी)
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उस समय नंदीग्राम में प्रस्तावित केमिकल हब के लिए जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू ही हुई थी. उस दौर में इलाके में सीपीएम नेता लक्ष्मण सेठ की तूती बोलती थी. लेकिन यह शुभेंदु ही थे जिनकी वजह से इलाके के सबसे ताकतवर नेता रहे सेठ को पराजय का मुंह देखना पड़ा था. उसके बाद जंगलमहल के नाम से कुख्यात रहे पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और बांकुड़ा जिलों में तृणमूल कांग्रेस का मजबूत आधार बनाने में भी शुभेंदु का ही हाथ था.
शुभेंदु का बीजेपी में शामिल होना ममता बनर्जी व टीएमसी के लिए करारा झटका माना जा रहा था. लेकिन ममता ने अब नंदीग्राम से मैदान में उतरने का एलान कर बीजेपी के इस हथियार की धार काफी हद तक कुंद कर दी है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिसंबर में अपने दौरे के समय एक रैली में शुभेंदु समेत दस विधायकों व सांसदों को बीजेपी में शामिल किया था.उसके बाद उन्होंने दोगुने जोश के साथ राज्य की 294 में से 200 सीटें जीतने का दावा किया था. लेकिन अब ममता बनर्जी ने नहले पर दहला जड़ कर बीजेपी के तमाम समीकरण गड़बड़ा दिए हैं.
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विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया
बंगाल के विपक्षी दलों ने ममता के फैसले पर मिलीजुली प्रतिक्रिया जताई है. प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य कहते हैं, यह मुख्यमंत्री की हताशा का सबूत है. इससे साफ है कि उनको अपनी पार्टी के नेताओं पर भरोसा नहीं रह गया है. सीपीएस के वरिष्ठ नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, ऐसी घोषणाओं से साफ है कि मुख्यमंत्री का पार्टी पर नियंत्रण नहीं रहा. उनकी आगे की राह काफी फिसलन भरी है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता के इस ऐलान से राजनीतिक समीकरण दिलचस्प हो गए हैं. पर्यवेक्षक निर्माल्य बनर्जी कहते हैं, ममता की उम्मीदवारी से शुभेंदु की उम्मीदवारी खतरे में पड़ सकती है. भले इलाके पर उनकी पकड़ काफी मजबूत रही हो. लेकिन खुद ममता के साथ मुकाबले में उनके लिए अपनी सीट ललचाना ही मुश्किल होगा, इलाके की बाकी सीटों की बात तो दूर है. यह ममता का मास्टरस्ट्रोक है. उनका कहना है कि बदली हुई परिस्थिति में अब शुभेंदु और बीजेपी के केंद्रीय नेताओं को अपनी चुनावी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा. लेकिन फिलहाल यह जंग दिलचस्प तो बन ही गई है.
सिंगूर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसानों को जमीन वापस होगी. ममता बनर्जी की राजनीतिक जीत में यह मुद्दा एक अहम पड़ाव रहा है. कब क्या हुआ सिंगूर में.
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नैनो का ऐलान
2008 में भारत की कार निर्माता कंपनी टाटा ने लखटकिया कार नैनो बाजार में उतारने का ऐलान किया. ये खबर दुनिया भर में सुर्खी बनी. नैनो को बनाने के लिए कंपनी ने पश्चिम बंगाल के सिगूंर में फैक्ट्री लगाने की योजना बनाई.
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1000 एकड़
इसके लिए पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने खेती की एक हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया और उसे टाटा को सौंप दिया गया.
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जोर जबर्दस्ती
लेकिन जल्द ही आरोप लगने लगे कि सरकार ने जबरदस्ती किसानों की जमीन ली है जबकि सरकार का कहना था कि राज्य की बदहाल अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए निवेश और उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है.
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नैनो की ना
ये मामला उपजाऊ जमीन लेकर उसे प्राइवेट कंपनी को दिए जाने का था. इसलिए जल्द ही इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है और ये एक बड़ा मुद्दा बन गया. आखिरकार टाटा को अपनी फैक्ट्री गुजरात के साणंद ले जानी पड़ी.
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ममता की एंट्री
सिंगूर लोगों को उनकी जमीन वापस दिलाने के वादे ने ममता बनर्जी को नई राजनीतिक ताकत दी. 2011 के राज्य विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने वो कर दिखाया जो अब तक कोई नहीं कर पाया. उन्होंने पश्चिम बंगाल में 1977 से राज कर रहे वाममोर्चा को सत्ता से बाहर कर दिया.
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जीत पर जीत
इसी साल हुए राज्य विधानसभा चुनाव में फिर शानदार जीत दर्ज की. अब ममता बनर्जी कह रही है लेकिन लोगों को जमीन लौटाने का काम शुरू कर उन्होंने अपना वादा निभाया है. लेकिन साथ ही उन्होंने टाटा और बीएमडब्ल्यू जैसी कंपनी को भी राज्य में आने का न्यौता दिया है.