इस कदम के साथ ही कनाडा की राजधानी ओटावा का क्यूबेक के साथ कानूनी झगड़े का मंच तैयार होता नजर आ रहा है क्योंकि देश का संघीय आपराधिक कानून इच्छामृत्यु चाहने वाले मरीजों की सहमति के बावजूद इसकी इजाजत नहीं देता है. विरोधियों का कहना है कि इससे डॉक्टरों की देखरेख में विश्वास कमजोर होगा. लेकिन एक ओर ऐसी मांग भी बढ़ रही है कि जो लोग पीड़ित हैं उन्हें इच्छामृत्यु पर ज्यादा नियंत्रण होना चाहिए.
इस कानून को बनाए रखने के लिए अपेक्षित है कि क्यूबेक यह दलील देगा कि यह स्वास्थ्य का मुद्दा है जो उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और ना की यह आपराधिक मामला है. क्यूबेक सरकार के प्रमुख फिलिप कुलार्ड ने इस विधेयक का बचाव किया है. उनका कहना है कि यह विधेयक जीवन की देखभाल की समाप्ति को संबोधित करता है और यह "इच्छामृत्यु नहीं" है.
फ्रेंच बोलने वाले इस प्रांत के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इस कानून के बारे में पिछले साल जानकारी सार्वजनिक की गई थी कि क्यूबेक अपने लोगों को अपने अंतिम दिनों का सामना अधिक शांत तरीके और अपनी इच्छा के अनुसार करने की इजाजत देगा. लेकिन आलोचकों ने, जिनमें डॉक्टर, दार्शनिक, नैतिकतावादी, वकील और पादरी शामिल हैं, चेतावनी दी है कि इस वजह से कानून का गलत इस्तेमाल होगा और गैरजरूरी मौतें होंगी.
यह विकल्प केवल क्यूबेक के वयस्क नागरिकों को उपलब्ध है और जो लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं. अमेरिका के राज्यों मोंटाना, ओरेगन, वेरमॉन्ट और वॉशिंगटन में भी ऐसा ही कानून है. कनाडा के अन्य भागों में मरने का अधिकार बहस का बड़ा मुद्दा है.
एए/एमजे (एएफपी)
भारतीय हिंदू और जैन समुदाय के लोग गंगा किनारे वाराणसी पहुंचते हैं, अपने पाप धोने और खुद को जन्म मृत्यु के चक्र से आजाद करने के लिए.
तस्वीर: DW/B. Dasमणिकर्ण घाट वाराणसी का सबसे मशहूर घाट है जहां दाह संस्कार किया जाता है. माना जाता है कि अगर किसी के शव का यहां दाह संस्कार हो तो उसके सारे पाप खत्म हो जाते हैं और वह मुक्त हो जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां चौबीस घंटे एक न एक चिता जलती रहती है.
तस्वीर: DW/B. Dasउत्तर प्रदेश की काशी या वाराणसी, यहां हिंदू अपने जीवन के आखिरी दिन बिताना चाहते हैं, या चाहते हैं कि उनका शरीर यहीं पंचतत्व में विलीन हो जाए. इसलिए यहां कई लोग अपनी मौत का इंतजार करने आते हैं.
तस्वीर: DW/B. Dasभारत के कई हिस्सों से लोग वाराणसी पहुंचते हैं. मुक्ति भवन जैसे घरों में करीब 100 लोग करीब 48,000 रुपये दे कर कमरा किराए पर लेते हैं. कुछ लोग यहां 10-15 साल भी रहे हैं.
तस्वीर: DW/B. Dasमुक्ति भवन इसी तरह का एक ठिकाना है, जहां लोग मौत का इंतजार करते हैं. वे आरती, धार्मिक गीत सुनते हैं. यहां मरीज और उनके परिवार वाले 12 रुपये प्रतिदिन के किराए पर रह सकते हैं.
तस्वीर: DW/B. Dasमोक्ष भवन में रहने वाले इस दंपति को अपना घर, बेटे बहू के बुरे व्यवहार के कारण छोड़ना पड़ा. वे कहीं और नहीं जा सकते थे इसलिए यहां आ गए. उन्होंने यहां किराए पर कमरा ले रखा है और थोड़ी बचत से जैसे तैसे खर्च चला रहे हैं.
तस्वीर: DW/B. Dasवाराणसी में मरने वाले को मुक्ति मिलेगी, ऐसा कहा जाता है. इसका मतलब है कि उस व्यक्ति की आत्मा फिर धरती पर नहीं आएगी. ये महिला इसी आस में आंध्र प्रदेश से वाराणसी पहुंची हैं.
तस्वीर: DW/B. Dasये महिलाएं अपना बाकी जीवन प्रार्थना, बातचीत, बागीचे में घूम कर काट रही हैं. वे कहती हैं कि इस पवित्र जगह रह कर वे बार बार जन्म से मुक्ति चाहती हैं.
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