पृथ्वी पर मौजूद एक जीव अपनी पूरी जिंदगी पेड़ या छत से उल्टा लटक कर बिता देता है यहां तक कि मरने के बाद भी यह उल्टा ही लटका रहता है. डरावनी कहानियों का किरदार चमगादड़ बहुत ही जबरदस्त जीव है.
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चमगादड़ आखिरकार नीचे की तरफ उल्टा लटक कर क्यों सोते हैं? अपने पूरे जीवन में ज्यादातर वक्त चमगादड़ सिर नीचे कर ही लटके रहते हैं. शीतनिंद्रा के वक्त भी महीनों तक वे ऐसे ही सोते हैं. कोई वैज्ञानिक ये नहीं जानता कि चमगादड़ क्रमिक विकास के दौरान ऐसे उल्टा लटकना कैसे सीखे. हालांकि इतना पता चल चुका है कि उल्टा लटकने के कई फायदे होते हैं.
नीचे की तरफ उल्टा लटकने के चलते उन्हें जगह के लिए बाकी जीवों से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती है. बिल्ली, बाज या उल्लू जैसे शिकारियों से बचने की संभावना भी ज्यादा रहती है. खतरा महसूस होते ही, वे बहुत ही जल्दी उड़ सकते हैं. इसके लिए उन्हें बस खुद को गिराना है और फिर पंख फड़फड़ाने हैं.
सिर अगर हमेशा नीचे लटका रहे तो क्या ये सेहत के लिए घातक नहीं है? बाकी जीवों के लिए ये एक समस्या है लेकिन चमगादड़ों के लिए नहीं. उनका रक्त बिना किसी परेशानी के सिर से हृदय और पूरे शरीर तक पंप होता रहता है. चमगादड़ों के पैरों में खास तरह के पंजे होते हैं. लटकते शरीर का वजन इन पंजों को ऑटोमैटिक तरीके से जकड़ देता है.
इसीलिए लटके रहने के दौरान चमगादड़ों को ऊर्जा की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ती. यहां तक की मौत के बाद भी वे इसी तरह लटके रहते हैं. लेकिन उनके पंजेदार पैर चलने और दौड़ने के बिल्कुल उपयुक्त नहीं हैं.
स्लॉथ नाम का जीव भी नीचे की तरफ लटक कर ही सोता है, लेकिन इस दौरान उसका सिर ऊपर की तरफ सीने से चिपका रहता है. इंसानों की बात करें तो, हम सिर नीचे कर सो ही नहीं सकते हैं, भले ही किसी भी चीज की मदद ही क्यों न ली जाए.
साफ है कि अब तक चमगादड़ ही ऐसे एक मात्र जीव हैं जो सिर नीचे लटका कर सोते हैं और उनकी यही खूबी विज्ञान को आकर्षित करती है.
दिन में झुलसा देने वाली गर्मी और रात में हड्डियां जमा देने वाली ठंड. पानी का दूर दूर तक नामो निशान नहीं. नामीबिया के रेगिस्तान में ऐसे ही हालात होते हैं, कुछ ही जीव वहां जिंदा रह पाते हैं.
शुतुरमुर्ग भी ऐसी कड़ी परिस्थितियों में जी लेता है. शुतुरमुर्ग अपनी शरीर का तापमान बढ़ने से रोक लेता है. उसे पसीना भी नहीं आता. एक दिन में कई किलोमीटर यात्रा करते हुए वे हर तरह की हरी पत्तियां और घास खा जाते हैं. शुतुरमुर्ग छोटे पत्थर भी निगलते हैं. पेट में यह पत्थर भोजन को पचाने में मदद करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Arco Images/C. Hütter
गर्मी में कूल रहने वाले
नामीबिया के रेगिस्तान में रहने वाला जेम्सबॉक हिरण, नीलगाय और घोड़े की मिश्रित प्रजाति सा दिखता है. गर्मियों में यह अपने शरीर के तापमान को 45 डिग्री सेंटीग्रेड पर रोक लेता है. नाक में मौजूद रक्त वाहिकाएं गर्म हवा को ठंडा कर सिर तक पहुंचाती हैं, इससे मस्तिष्क ठंडा रहता है. t.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
रेत जैसा रंग
नामाकुआ गिरगिट की त्वचा ज्यादा से ज्यादा सूर्य की रोशनी को परावर्तित कर देती है. ठंड में इसकी त्वचा काले रंग की हो जाती है. तापमान 45 डिग्री से ऊपर जाने पर नामाकुआ गिरगिट झाड़ियों और चट्टानों में छुप जाते हैं.
तस्वीर: R. Dückerhoff
लंबे पैरों का कमाल
रेगिस्तान में पायी जाने वाली ड्यून चींटी के पैर पांच मिलीमीटर लंबे होते हैं. इनकी मदद से चींटीं रेत पर चिपकर नहीं चलती. उसका पेट और सिर रेत से कुछ मिलीमीटर ऊपर होता है और वहां सतह के मुकाबले तापमान 10 सेंटीग्रेड कम होता है.
तस्वीर: DW/B. Osterath
गजब का छलावा
नामीबिया के रेगिस्तान में रहने वाली यह छिपकली सिर्फ रात में बाहर आती है. अपनी बड़ी आंखों की मदद से यह आसानी से शिकार खोज लेती है. इसके कुछ अंग चमकते हैं, इन अंगों को देखकर चींटी और छोटे कीड़े आकर्षित होते हैं और शिकार बन जाते हैं.
तस्वीर: R. Dückerhoff
प्रकृति का करतब
डांसिंग व्हाइट स्पाइडर भी दिन के वक्त रेत में छुपी रहती है. यह मकड़ी सिर्फ सुबह, शाम और रात को बाहर निकलती है. इसका शरीर प्रकाश ना के बराबर सोखता है, जिसके चलते अथाह गर्मी में भी यह मकड़ी बहुत कम ऊर्जा खर्च कर जी लेती है. मिलन के समय नर रेत पर डांस करता है, इसी वजह से इसे डांसिंग व्हाइट स्पाइडर कहा जाता है.
तस्वीर: R. Dückerhoff
कंकड़ की आड़ में मौत
यह बिच्छू कई महीने तक बिना खाए जी सकता है. इसकी काली पीठ को देखकर छोटे कीटों को लगता है कि कोई कंकड़ या पत्थर है. पत्थर की आड़ लेने के चक्कर में वे कीट इस बिच्छू तक पहुंचते हैं और फिर कहानी खत्म हो जाती है.
तस्वीर: R. Dückerhoff
रेतीली मौत
अगर जीभ बाहर नहीं निकली होती तो शायद आपको पता भी नहीं चलता कि कोई सांप घात लगाए बैठा है. बेहद जहरीला यह सांप बिल्कुल रेत जैसा दिखता है. यह कभी आगे की तरफ नहीं रेंगता है, बल्कि दाएं या बाएं रेंगता है, ऐसा करने से शरीर कम गर्म होता है.
फॉग बास्किंग बीटल कहे जाने वाले ये कीट नमी वाली जगह पर जाते हैं और सिर झुका लेते हैं. कुछ ही देर पर वहां मौजूद नमी के चलते इनके बदन पर पानी की कुछ बूंदें उभर आती है. इन्हीं बूंदों से पूरे झुंड की प्यास बुझती है.
तस्वीर: picture-alliance/Wildlife/M. Harvey
उम्दा अदाकार
जैसे ही कोई शिकारी सामने आता है, वैसे ही वीविल कीट मरने का नाटक कर लेता है. यह कीट ऐसा जताता है मानों वह कई दिन से मरा पड़ा हो और उसका शव सूख चुका हो. इस अभिनय से अक्सर यह शिकारियों को गच्चा दे जाता है क्योंकि रेगिस्तान में कोई भी सूखी चीज नहीं खाना चाहता. सबको नमी भरा आहार चाहिए. (रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टेराथ/ओएसजे)