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मर्दों की गुहार, पत्नी के जुल्म से बचाओ

२ फ़रवरी २०११

सदियों से औरतें पुरुषप्रधान समाज में अपनी जगह बनाने के लिए लडती आईं हैं. लेकिन भारत में एक तबका ऐसा भी है जहां आदमी औरतों के खिलाफ अपने हक के लिए लड़ रहे हैं. पत्नी और सास के हाथों होने वाले शोषण से बचने की लड़ाई.

तस्वीर: Fotolia/Landei

'नहीं अब हम शोषण नहीं सहेंगे, पत्नी की गुलामी नहीं करेंगे, हमें भी पतियों के अधिकार मिलने चाहिए.'

पुरूषों की आवाज़ में ऐसे नारे आम तौर पर सुनने को नहीं मिलते. लेकिन पश्चिम बंगाल और असम की सीमा पर रहने वाले राभा जनजाति के मर्द अब 'पत्नी और सास के हाथों होने वाले शोषण' के ख़िलाफ़ आवाज उठा रहे हैं.

उनका यह 'शोषण' सदियों से चल रहा है क्योंकि यह जनजाति मातृसत्तात्मक है यानी मां परिवार की मुखिया होती है न कि बाप, पुत्रियां ही मां की संपत्ति की मालकिन होती हैं और शादी के बाद पति उनके घर रहने आते हैं. शादी के बाद घरजमाई बनने की यह परंपरा अब राभा मर्दों को नहीं सुहा रही है. कुछ लोग तो अब सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक शादी करने से ही इनकार कर रहे हैं.

तस्वीर: DW

हाथ में रहेगी पति की नकेल

लेकिन महिलाएं अपने इस अनूठे अधिकार को छोड़ने को भला क्यों तैयार होने लगीं? परंपरा में बदलाव की पतियों की मांग का मुकाबला करने के लिए राभा महिलाओं ने अपनी एक अलग समिति भी बना ली है.

राभा युवकों में आने वाले इस बदलाव से नाराज कमला राभा कहती है, ‘होश संभालते ही अपने दादा और पिता के साथ जैसा व्यवहार देखा है, वैसा ही व्यवहार अपने पति के साथ कर रही हूं. इसमें नया क्या है?' बिमला कहती है, ‘पति की नकेल तो मेरे ही हाथ में रहेगी, हमारे समाज में यही परंपरा है.'

अधिकारों की इस रस्साकशी ने समुदाय के मुखिया को सांसत में डाल दिया है, उनकी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर किसका साथ दिया जाए. उत्तर बंगाल में जलपाईगुड़ी जिले की राभा बस्ती छिपारा के शनीचर राभा कहते हैं, ‘बीते कुछ वर्षों से पति परिवार का मुखिया बनने की कोशिश कर रहे हैं. बस्ती के बाहर रहने वालों के लिए तो इसमें ज्यादा समस्या नहीं है. लेकिन यहां भी नई पीढ़ी के युवक ऐसी कोशिशें कर रहे हैं."

तस्वीर: DW

राभा समुदाय में बदलते वक्त के साथ कुछ बदलाव भी आया है. उनमें प्रेम विवाह को स्वीकृति मिल गई है. लेकिन यह परंपरा नहीं बदली है कि शादी के बाद पति को पत्नी के घर में रहना होता है. हर बस्ती में कई ऐसे युवक हैं जिन्होंने घरजमाई बनने से इंकार कर दिया है. इनमें से ज्यादातर युवक बस्ती छोड़कर शहरों में चले गए हैं. इसके बाद विरोध की आवाज काफी तेज होने लगी है और इस समुदाय के बड़े-बूढ़े इसे राभा जनजाति की प्राचीन परंपरा के लिए खतरा मानने लगे हैं.

जो घर संभाले वही घर का मालिक

दूसरी ओर, महिलाओं ने भी पुरुषों के खिलाफ जमकर मोर्चा खोल दिया है. उनका कहना है कि पुरूष अगर ऐसी मांग करेंगे तो उनको वे सभी काम करने होंगे जो अब तक महिलाएं करती आई हैं . इनमें बच्चों का पालन-पोषण भी शामिल है. महिलाओं का कहना है कि वे घर संभालती हैं इसलिए घर की मालकिन हैं. अगर पति घर के मालिक बनेंगे तो उनको घर में रहना होगा और महिलाएं बाहर जाएंगी.

महिलाएं इस मामले में एकजुट हैं और उनके दबदबे का असर भी होता है. यह बात विमल राभा से बेहतर कौन बता सकता है. बिमल शादी के बाद पहले अपनी पत्नी को घर ले आया था. लेकिन महिला समिति के दबाव के बाद उसे खुद ससुराल लौटना पड़ा.

तस्वीर: DW

महिलाओं की समिति की संयोजक बेलसरी राभा कहती है, "युवकों की मांग उचित नहीं है. किसी भी समाज के वर्षों पुराने नियम अचानक नहीं बदलते." उनकी दलील है कि इससे महिलाओं पर अत्याचार बढ़ेगा.

औरतों-मर्दों की इस रस्साकशी के बीच मर्दों की 'गुलामी की बेड़ियां' टूटेंगी या नहीं, यह तो कहना मुश्किल है. लेकिन मुद्दे पर बहस धीरे-धीरे काफी दिलचस्प होती जा रही है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः ईशा भाटिया

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