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मलयेशिया में नया रियाल्टी शोः यंग इमाम

१३ जुलाई २०१०

मलेशिया के इस रियाल्टी शो को भी खूब दर्शक मिल रहे हैं. चाहने वाले इसके किसी एपीसोड को नहीं छोड़ना चाहते और हर कंटेस्टेंट के अपने अपने फैन हैं. लेकिन इस बार कोई गाना बजाना नहीं, इस्लाम धर्म से जुड़ा रियाल्टी शो चल रहा है.

इमाम मुडा शोतस्वीर: AP

मलयेशिया के लोकप्रिय टेलीविजन चैनल पर इस शो का आयोजन किया जा रहा है और इसके दर्शकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. उन्हें टेलीविजन के सामने आकर इस्लाम के बारे में अपनी जानकारी दिखानी होती है. कुरान की आयतों की तिलावत करनी होती है और बताना होता है कि वे इस्लामी रीति रिवाजों से किसी काम को कैसे अंजाम दे सकते हैं. वे युवा मलयेशियाई लोगों को अनैतिक सेक्स और ड्रग्स के खतरों के बारे में बताते हैं.

शो का एक प्रतियोगीतस्वीर: AP

यहां के प्रतियोगियों को भले ही दुनिया भर में नाम न मिले लेकिन विजेता को सऊदी अरब जाकर हज करने का मौका मिलेगा. इसके अलावा उन्हें सऊदी अरब के अल मदीना यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप मिलेगी और एक मस्जिद में इमाम की नौकरी.

ऐसा नहीं कि महिलाओं को इस शो में दिलचस्पी नहीं. उन्हें भी अच्छी खासी दिलचस्पी है, खास कर इनमें से किसी को अपना दामाद बनाने में. ऐस्ट्रो ओएसिस चैनल इस रियालिटी शो को प्रसारित कर रहा है. इससे जुड़े इजलान बशर कहते हैं, "मुसलमानों के लिए युवा इमाम आदर्श दामाद हो सकते हैं क्योंकि उन्हें इस्लाम के बारे में अच्छी तरह पता है."

अमेरिकन आइडल और एक्स फैक्टर की तरह ही इस कार्यक्रम यंग इमाम का भी फॉर्मूला रखा गया है और 10 में से दो प्रतियोगी आउट हो चुके हैं. यहां भी किसी के रुखसत होते वक्त वैसा ही समां बंध जाता है, जैसा इस तरह के दूसरे रियालिटी शो में होता है. लोग भावनाओं में आकर एक दूसरे को गले लगाते हैं और उनकी आंखें नम हो जाती हैं.

दस हफ्ते लंबे इस कार्यक्रम को लेकर मलयेशिया में खूब चर्चा हो रही है और फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी इसकी चर्चा चल रही है. ऐसे ही एक पोस्ट में लिखा गया है, "वॉव. यंग इमामों को इस प्रतियोगिता में शामिल होते देखना अच्छा लग रहा है. फैन उनकी तस्वीरें ले रहे हैं. मांएं अपनी बेटियों के रिश्ते उन तक ला रही हैं."

मुस्लिम समुदाय में इमाम का खासा रोल होता है. किसी मस्जिद में इमामत के अलावा वे इस्लामी विवादों पर फैसले भी देते हैं. इस प्रतियोगिता में एक धार्मिक सदस्य, एक किसान, एक कारोबारी, एक छात्र और एक बैंकर हिस्सा ले रहे हैं.

जज हसन महमूद अल-हफीजतस्वीर: AP

मीडिया कमेंटेटर अजमान उजांग का कहना है कि यह शो एक मील का पत्थर है, जो इस्लाम के बारे में अलग तरीके से बता रहा है. उन्होंने कहा, "इमाम आम तौर पर बुजुर्ग होते हैं. लेकिन यहां युवा पीढ़ी के लोग हैं. ऐसे समय में जब इस्लाम कई त्रुटियों से जूझ रहा है, इस कार्यक्रम से बहुत फायदा हो सकता है."

इस शो की शुरुआत ऐसे वक्त में हुई है, जब मलयेशिया पर आरोप लग रहे थे कि वहां दूसरे धर्मों के प्रति पूरी सहिष्णुता नहीं है. इस शो के लिए कुछ 1134 उम्मीदवारों ने अप्लाई किया था, जिनमें से सिर्फ 10 को चुना गया. हर हफ्ते उन्हें लिखित और प्रैक्टिकल टेस्ट देना पड़ता है. बड़ी मस्जिद में इमाम रह चुके एक धार्मिक गुरु इस शो के जूरी हैं.

पूरे शो के दौरान 18 और 27 साल के बीच के इन प्रतियोगियों को एक मस्जिद में सबसे अलग रहना है. इन पर टेलीफोन, इंटरनेट और टेलीविजन देखने की पाबंदी लगी है ताकि ये अपनी प्रतियोगिता पर ध्यान दे सकें.

रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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