1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मलाला का संघर्ष, बच्चियों की शिक्षा

११ अक्टूबर २०१२

औरतों की शिक्षा के लिए जहां 14 साल की पाकिस्तानी छात्रा मलाला यूसुफजई संघर्ष कर रही है, वहीं दूसरी ओर अंततराष्ट्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में करोड़ों लड़कियां स्कूल नहीं पहुंच पा रही हैं.

पाकिस्तान की खूबसूरत स्वात घाटी में 14 साल की मलाला महिला शिक्षा के लिए मिसाल है. वह खुद स्कूल जाती है, दूसरों से स्कूल जाने की अपील करती है. लेकिन तालिबान को यह बात पसंद नहीं क्योंकि वह महिलाओं की शिक्षा का विरोध करता है. इसी टकराव में सोमवार को मलाला पर कातिलाना हमला किया गया और अब वह जिन्दगी और मौत से जूझ रही है.

फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली मलाला ने कभी कहा था, "मैं तालिबान को कुरान का हवाला देकर बताना चाहती हूं कि औरतों को भी पड़ने लिखने का हक है." लेकिन मलाला अपनी इस बात को अब तक पूरा नहीं कर पाई है. तालिबान का कहना है कि उन्हें ज्यादा परेशानी इस बात से है कि मलाला विदेशी गैरसरकारी संगठनों का साथ दे रही है. उसका कहना है कि उसे चेतावनी दी गई थी लेकिन जब वह नहीं मानी तो उस पर हमला किया गया. मलाला के सिर और गले में गोली लगी है.

पाकिस्तान के न्यूरो सर्जन ने उनके सिर से गोली निकाल दी है लेकिन अभी उसकी स्थिति ठीक नहीं हो पाई है. डॉक्टरों का कहना है कि अगले 10 दिनों तक उसकी स्थिति पर बारीकी से नजर रखनी होगी. पाकिस्तान सरकार और पूरी दुनिया ने इस हमले की निंदा की है.

बढ़ती हुई दरार

इस बीच संयुक्त राष्ट्र संघ के पहले अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि करोड़ों बच्चियां स्कूल तक नहीं पहुंच पा रही हैं, जिसकी वजह से महिलाओं और पुरुषों के बीच दरार बढ़ती जा रही है. रिपोर्ट का नाम है, बिकॉज आई एम द गर्लः द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड गर्ल्स 2012. इसमें कहा गया है, "करीब साढ़े सात करोड़ बच्चियां दुनिया भर में स्कूलों से गायब हैं. यह अधिकारों का जबरदस्त हनन है और युवा ताकत को जाया करना है."

तालिबान हमले में घायल मलालातस्वीर: picture-alliance/dpa

रिपोर्ट में कहा गया है कि औसत तौर पर एक तिहाई लड़कियों को शिक्षा नहीं मिल पा रही है लेकिन उनकी नजर मुख्य तौर पर उन चार करोड़ लड़कियों पर है, जो 11 से 15 साल की उम्र की हैं. इसमें कहा गया है कि ये लड़कियां जल्दी ही जिम्मेदारी संभालने वाली हैं और ऐसे में उनकी अशिक्षा उनके लिए रोड़ा अटका सकती है.

प्लान के अंतरराष्ट्रीय सीईओ नाइगल चैपमैन ने कहा, "अगर लड़की पढ़ी लिखी होगी, तो उसके खिलाफ हिंसा की संभावना कम होगी. इस बात का कम अंदेशा होगा कि उसकी छोटी उम्र में शादी और बच्चे हों. और इस बात की ज्यादा उम्मीद होगी कि खुद पढ़ी लिखी होने की वजह से वह अपने बच्चों