जर्मन वैज्ञानिकों ने मलेरिया की दवा में इस्तेमाल होने वाले एक प्रमुख घटक को बनाने का तेज, ज्यादा असरदार और पर्यावरण के अनुकूल तरीका खोज निकाला है.
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जर्मनी में कोलॉयड के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के निदेशक पीटर सीबेर्गर का कहना है, "इसमें लाखों लोगों का जीवन बचाने की क्षमता है." मलेरिया की दवा में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख घटक आर्टेमिसिनिन को बनाने का नया तरीका 27 साल की मेकिडल छात्रा सूजेन ट्रीमर ने खोजी है. उन्होंने मीठे वर्मवुड के पौधे से आर्टेमिसिनिन बनाने की प्राकृतिक प्रक्रिया की नकल और उसे तेजी से करने का तरीका खोज निकाला है.
इंस्टीट्यूट के मुताबिक नए तरीके में महज 15 मिनट का वक्त लगता है. हालांकि दूसरे विशेषज्ञ अभी इससे बहुत उत्साहित नहीं हैं. हैम्बर्ग के बर्नहार्ट नॉख इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के युएर्गेन मे ने कहा कि अगर उनके सहयोगियों ने वास्तव में कोई बड़ी कामयाबी हासिल की होती तो वह ज्यादा रोमांचित होते. उन्होंने यह भी कहा, "पिछली बातों को याद करें तो प्राथमिक रूप से क्रांतियां कुछ साल पहले हो चुकी हैं."
मे का कहना है असल क्रांति तो तब होगी जब मलेरिया के खिलाफ एक कृत्रिम पदार्थ की खोज होगी. उनका कहना है, "इस बात का जोखिम है कि आर्टेमिसिनिन से भविष्य में सबका इलाज नहीं होगा." मे ने यह भी कहा कि दक्षिण पूर्वी एशिया में पहले ही चेतावनियां दी जा रही हैं जहां मलेरिया के परजीवी में इसके लिए प्रतिरोधी क्षमता विकसित होनी शुरू हो गई है.
मलेरिया: मौत के लिए एक ही डंक काफी
एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
तस्वीर: AP
मच्छर से मलेरिया
अफ्रीका का सबसे खतरनाक जीव सिर्फ 6 मिलीमीटर लंबा है. इसे मादा एनोफेलीज मच्छर के नाम से जाना जाता है. यह संक्रामक रोग मलेरिया के लिए जिम्मेदार है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
मलेरिया पीड़ित को अगर मच्छर काट ले तो वह मलेरिया के विषाणु को औरों तक फैला देता है. शोधकर्ताओं ने इस मच्छर में विषाणु को प्रोटीन से चिह्नित किया है जो हरे रंग में चमकता है. लार ग्रंथि में जाने से पहले मच्छर की आंत में पैरासाइट प्रजनन करता है.
मलेरिया पैरासाइट का जैविक नाम प्लाज्मोडियम है. बीमारी की शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एनोफेलीज मच्छरों को संक्रमित किया और उसके बाद पैरासाइट को लार ग्रंथि से अलग किया. इसमें पैरासाइट का संक्रामक रूप जमा है. इस तस्वीर में दाहिनी तरफ मच्छर है और बीच में है हटाई गई लार ग्रंथि.
तस्वीर: Cenix BioScience GmbH
विषाणु चक्र
मलेरिया पैरासाइट घुमावदार होते हैं, वो एक दायरे में घुमते हैं. यहां शोधकर्ताओं ने उन्हें तरल पदार्थ के साथ शीशे के टुकड़े पर रखा. पैरासाइट को यहां पीले रंग से चिह्नित किया गया है. और जिस पथ पर घूमते हैं उसे नीले रंग से पहचाना जा सकता है. वो तेजी से चलते हैं. एक पूरा चक्कर लगाने के लिए सिर्फ 30 सेकेंड लेते हैं. बाधा पहुंचने पर वे अपने घुमावदार पथ से हट जाते हैं. सीधी रेखा पर भी चल सकते हैं.
इंसान के शरीर में दाखिल होने के बाद विषाणु मनुष्य के लीवर में कुछ दिनों के लिए ठहर जाता है. इस दौरान मरीज को पता नहीं चलता. प्लाज्मोडियम मरीज की लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से प्रभावित करता है, और लीवर में इस परजीवी की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाती है. लीवर में यह मेरोजोइटस का रूप लेता है, जिसके बाद रक्त कोशिकाओं पर हमला शुरू हो जाता है और इंसान बीमार महसूस करने लगता है.
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शरीर में बढ़ता पैरासाइट
रक्त कोशिका में दाखिल होने के बाद पैरासाइट एक से तीन दिन के भीतर बढ़ने लगता है. इसके बाद वे लाल रक्त कणिका या लीवर कोशिका में प्रवेश कर जाता है. यहां परजीवी का विखंडन होता है. परजीवियों की संख्या बढ़ने पर कोशिका फट जाती है. नतीजतन इंसान को ठंड के साथ बुखार आने लगता है. माइक्रोस्कोप में इसे आसानी के साथ देखा जा सकता है. बैंगनी रंग का यह रोगाणु अलग नजर आ रहा है.
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मच्छरदानी में मौत
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मच्छरदानी बनाई है जिसमें जाल में कीटनाशक लगे हुए हैं. मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते हैं.
तस्वीर: Edlena Barros
दवा का छिड़काव
जब मलेरिया का प्रकोप हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो उसके लिए दूसरे उपाए किए जाते हैं. मुंबई की इस तस्वीर में मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. डीडीटी कीटनाशक का इस्तेमाल प्रभावशाली होता है. हालांकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.
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रैपिड टेस्ट
खून की एक बूंद से किया गया रैपिड टेस्ट मिनटों में बता सकता है कि मरीज को मलेरिया है या नहीं. यहां डॉक्टर विदआउट बॉर्डर की एक कार्यकर्ता, अफ्रीकी देश माली में लड़के पर रैपिड टेस्ट कर रही हैं. इस लड़के में मलेरिया की पुष्टि हुई. उपचार के दो दिन बाद वह स्वस्थ हो गया. हालांकि रैपिड टेस्ट हमेशा भरोसेमंद नहीं होते.
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दवा बेअसर
दवाइयों की मदद से रक्त में मौजूद विषाणु को खत्म या फिर बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि दवाओं का असर पैरासाइट पर कम होता जा रहा है. लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन अब कुछ इलाकों में प्रभावशाली नहीं है. नई दवाओं की खोज मलेरिया की प्रतिरोधक क्षमता की समस्या से निपटने का एक रास्ता है.
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कब आएगा टीका
मलेरिया के लिए अब तक कोई टीका नहीं है. शोधकर्ता टीका बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक इस मामले में सफलता जल्द मिल सकती है.
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डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भी मे के विचारों से सहमति जताई है. जर्मनी में डॉक्टर विदाउट बॉर्डर्स के मेडिकेशन कैम्पेन कॉर्डिनेटर मार्को एल्वेस ने कहा, "मलेरिया से लड़ने के नए तरीके जरूर विकसित किए जाने चाहिए." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए भविष्य में ज्यादा ध्यान नई दवाओं पर होना चाहिए ना कि पुरानी दवाओं पर.