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मलेरिया से लड़ने के लिए तांजानिया आगे

३० जून २०१०

सभी प्रयासों के बावजूद मलेरिया एक ऐसी बिमारी हैं जिस पर आज तक काबू नहीं पाया जा सका है. हर साल दुनियाभर में 30 से 50 करोड लोगों को मलेरिया के आक्रमण से जूझना पड़ता है. हर साल औसतन 30 लाख लोग इसका शिकार बनते हैं.

अनोफलेस मादा मच्छर फैलाता है मलेरियातस्वीर: DW-TV

भारत में भी सैंकड़ों लोगों की हर साल इस बिमारी की वजह से जान जाती है. आक्रमण गरम जलवायु वाले देशों के अनोफलेस मादा मच्छर की तरफ से होता है. यदि मलेरिया होने का जल्द ही पता चल जाये, तब बीमारी का इलाज हो सकता है. लेकिन खासकर अफ्रीकी देशों में दवाईयों की सप्लाई एक बड़ी समस्या है. पूर्वी अफ्रीकी देश तांज़ानिया इस समस्या का हल एक बहुत ही अविष्कारी योजना के साथ ढूंढ निकालना चाहता है.

'एसएमएस फॉर लाईफ'

तांज़ानिया में मलेरिया की वजह से सबसे ज़्यादा लोग मरते हैं. तांज़ानिया उन अफ्रीकी देशों में से एक है जहां पांच बच्चों में से एक मलेरिया का शिकार बनता है. सबसे बडी समस्या यह है कि सही दवाईयां हमेशा उपलब्ध नहीं रहतीं और कई बार बहुत ही देर से उनकी सप्लाई हो पातीं हैं. इससे बचने के लिए 'एसएमएस फॉर लाईफ' नाम का प्रॉजेक्ट बना है. तांज़ानिया के स्वास्थय और समाज कल्याण मंत्री डेविड म्याकूज़ा का कहना है कि दवाईयां सप्लाई करने की पूरी प्रणाली बहुत ही जटिल है. इसलिए गावों में किसी तथाकथित हैल्थ सैंटर में तो बहुत सी दवाईयां उपलब्ध रहतीं हैं और कुछ ही किलोमीटर दूर, दूसरे ज़िले के किसी हैल्थ संटर में कोई दवा नहीं. 'हमारे देश में एक संस्था है जिसका नाम है मैडिकल स्टोर डिपार्टमैंट. इस संस्था का काम है यह देखना कि दवाईयों को देश में कैसे लाया जाए. उन्हे कैसे स्टोर किया जाए और कैसे ज़िलों तक पहुंचाया जाए. लेकिन ज़िलों तक दवाईयां पहुंचाने के बाद, तथाकथित ज़िला सलाहकार उन्हें आगे गावों के हैल्थ सैंटरों तक पहुंचाता है. यानी इन सब के बीच यदि ठीक समन्वय नहीं है, तो कफी समस्याएं पैदा होती हैं.'

तस्वीर: DW

खास डेटाबेस करेगा मदद

अब नए प्रॉजेक्ट के तहत दवाईयों की सप्लाई और कितनी दवाईयां किसी हैल्थ सैंटर में उपलब्ध हैं, यह जानने की समस्या पर सिर्फ एक एसएमएस के साथ काबू पाया जा सकता है. कर्मचारी अपने सैंटर मे दवाईयों के स्टॉक के बारे में एक एसएमएस भेज सकते हैं. यह काम वह एक ऐसे मोबाईल फ़ोन के साथ कर सकते हैं जो इंटरनेट से जुडा हुआ है या सीधे ईमेल के ज़रिए. सूचना एक डेटाबेस तक पहुंचती है और तब ज़िले के अधिकारी और राष्टीय मलेरिया कॉट्रोल प्रोग्रैम के अधिकारी इस पर काम कर सकते हैं. मोबाईल फोन कंपनी वोडाफोन, कंप्यूटर निर्माता कंपनी आईबीएम और अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनी नोवार्तिस विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ प्रॉजेक्ट को चला रही हैं. जिम बैरिंगटन प्रॉजेक्ट के निदेशक है और कहते हैं कि उन्हें

एसएमएस प्रॉजेक्ट की शुरुआत करने का खयाल तब आया जब वे दवा कंपनी नोवार्तिस के लिए काम करता थे. 'हमने एक सम्मेलन में मलेरिया को लेकर एक विशेषज्ञ को बुलाया था. उस आदमी का कहना था कि हम हर साल करीब 7 करोड़ दवाईयां प्रभावित देशों को भेजतें हैं. लेकिन कई आंकड़ों के अनुसार आज भी करीब 3000 लोगों को मलेरिया की वजह से अपनी जान गवानी पड़ती हैं. यह मेरी समझ में नहीं आया कि यदि हमारे पास इलाज है तब क्यों इतने सारे लोगों की मौत होती है.'

तांज़ानिया में प्रॉजेक्ट से फायदा

तांज़ानिया में इस प्रॉजेक्ट को लागू करने के लिए तीन ज़िलों को चुना गया. जिले में आधे से भी ज़्यादा हैल्थ सैंटरों में एक साल के भीतर इसका बहुत अच्छा परिनाण रहा है. वैसे, मलेरिया के दो तरह के इलाज हैं. एक दवा सुई से दी जाती है. दूसरे इलाज में मरीज़ों से गोलीयां खाने के लिए कहा जाता है. प्रॉजेक्ट की शुरुआत करने से पहले एक-चौथाई हैल्थ सैंटरों में कभी कभार दोनों तरह का इलाज कुछ दिनों के लिए उपलब्ध नहीं कराया जा सका था. अब प्रॉजेक्ट में शामिल 95 हैल्थ सैंटरों में कम से कम एक तरह का इलाज हमेशा उपलब्ध रहता है.

तस्वीर: picture-alliance / dpa

आसान से आसान तकनीक के साथ बहुत फायदा हो सकता है. यह मानना है विश्व स्वास्थ्य संगठन में इस प्रॉजेक्ट के आयुक्त आवा मारी कोल-सेक का भी. वे कहतीं हैं कि यह कुछ ऐसी तकनीक है जिससे पर्याप्त डेटा भी विकसीत हो सकते हैं. परिणामों को देखते हुए ज़ांबिया, घाना और दूसरे अफ्रीकी देशों ने भी इसे शुरू करने के लिए हमसे मदद मांगी गई है.

रिपोर्ट- प्रिया ऐसेलबॉर्न

संपादन- राम यादव

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