मलेशिया में पांच हजार कछुओं और ड्रग्स के साथ पकड़े गए भारतीय
२६ जून २०१९
दो भारतीयों के पास से इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स बरामद हुआ है कि अगर उन पर 'ड्रग-कूरियर' होने का आरोप सिद्ध हो जाता है तो उन्हें मृत्युदंड भी मिल सकता है.
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क्वालालंपर हवाईहड्डे पर अपने सामान में 5,255 कछुए और 14 किलोग्राम से भी ज्यादा ड्रग्स ले जा रहे चार भारतीयों को मलेशियाई प्रशासन ने गिरफ्तार किया है. कस्टम विभाग के वरिष्ठ अधिकारी जुर्कुलनैन मोहम्मद यूसुफ ने बताया कि उनके एजेंटों ने पांच हजार से भी अधिक रेड-ईयर स्लाइडर प्रजाति के कछुओं के बच्चे बरामद किए. इन्हें उन दो भारतीय यात्रियों ने छोटी टोकरी में रखा था, जो कुछ दिन पहले एयरएशिया की फ्लाइट लेकर गुआंगजू, चीन से मलेशिया पहुंचे थे.
उन लोगों के पास कछुओं के बारे में कोई परमिट या कागजात नहीं थे और उन्होंने जांचकर्ताओं से बताया कि वे इन कछुओं को पालतू जानवर के रूप में बेचने के लिए भारत ले जा रहे थे. इन टेरापिन कछुओं की कीमत तकरीबन 12,700 डॉलर के आसपास लगाई जा रही है. 30 और 42 साल के इन दो व्यक्तियों पर आरोप तय किए जाएंगे और दोषी सिद्ध होने पर जुर्माने के अलावा इन्हें पांच साल तक की जेल हो सकती है.
रेड-ईयर स्लाइडर प्रजाति के कछुओं की दुनिया भर में खूब तस्करी होती है. इन्हें लोग पालतू पशु के रूप में रखते हैं तो कहीं कहीं इसका मांस भी खाया जाता है. इन्हें कहीं भी ले जाने के लिए परमिट की जरूरत होती है क्योंकि छोटे कछुओं में कभी कभी सालमोनेला नामक बैक्टीरिया मिलता है जो बीमारियां पैदा कर सकता है.
इसके अलावा दो और भारतीयों को भी पकड़ा गया जो कई किलो ड्रग्स की तस्करी कर रहे थे. कस्टम अधिकारी यूसुफ ने बताया कि इन दो लोगों के पास से 14.34 किलो मेथएम्फेटामीन नाम का ड्रग्स बरामद हुआ जिसकी कीमत 1.74 लाख डॉलर के आसपास होगी. उन्होंने हाथ में पकड़े बैगों की छिपी हुई जेबों में ये ड्रग्स रखा था. एक व्यक्ति कुछ दिन पहले हैदराबाद से विमान लेकर मलेशिया पहुंचा था जबकि दूसरा बेंगलूरू से आया था. दोनों पुरुषों की उम्र 30 साल बताई गई है और संदेह है कि ये 'ड्रग-म्यूल' या ड्रग-कूरियर हैं. ऐसे लोग जो अपने सामान या शरीर में ही ड्रग्स छुपाकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करते हैं. अगर इन भारतीयों पर यह आरोप सिद्ध हो गए तो इन्हें मृत्युदंड मिल सकता है.
आज मनोरंजन के लिए ली जाने वाली कई ड्रग्स बहुत पहले जर्मनी में जर्मन केमिस्ट्स ने बनायी थीं. इनके पहले ग्राहक थे सेना और दूसरी जर्मन कंपनियां. लेकिन आज तो अवैध होने के बावजूद दुनिया भर में प्रचलित हैं कई ऐसी ड्रग्स.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/NSW Police
लड़ाने के लिए
सन 1939 में जर्मनी के नाजियों ने अपने सैनिकों को ड्रग्स देकर पोलैंड में और फिर अगले साल फ्रांस में युद्ध करने के लिए भेजा था. फ्रांस पर हमले के दौरान मेथएम्फीटेमीन पर्विटीन की 3.5 करोड़ टैबलेट सैनिकों में बांटी गयी थीं. इसे "टैंक चॉकलेट" नाम मिला. विपक्षी सेना ने भी अपने सैनिकों को ड्रग्स दी थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa-Bildarchiv
चौकन्ने और निडर
एक जापानी केमिस्ट ने सबसे पहले वो तरल पदार्थ बनाया था, जिससे बाद में जर्मनी की टेमलर दवा कंपनी ने जादुई दवा बनायी और 1937 में उसे पेटेंट करा लिया. एक साल बाद ही उनकी दवा पर्विटीन आम दवा की दुकानों में बिकने लगी. इसे लेने से लोग ज्यादा सतर्क और निडर महसूस करते और उन्हें भूख प्यास भी नहीं लगती. यह आज भी क्रिस्टल मेथ के नाम से अवैध रूप से बेची जाती है.
सबसे बड़ा उपभोक्ता खुद?
इतिहासकारों में इस पर मतभेद है कि क्या हिटलर को खुद भी पर्विटीन की लत थी. उसके निजी डॉक्टर थियो मोरेल की फाइलों में रोज की दवाओं की सूची में किसी "x" का जिक्र है. लेकिन यह साफ नहीं कि वो चीज क्या थी. हालांकि इतना पता है कि हिटलर रोजाना कई शक्तिशाली दवाइयों का कॉकटेल सा लेता था.
नाजी काल से पहले भी जर्मन केमिस्ट्स ने कुछ ऐसी ड्रग्स बनायीं थीं. फिर 19वीं सदी के अंत में जर्मन दवा कंपनी बायर ने खांसी की ऐसी दवा बनायी, जिसमें मरीजों को हेरोइन दी जाती थी. मिर्गी, दमा, स्कित्जोफ्रेनिया और दिल की बीमारियों में भी हेरोइन मिलती थी. और कंपनी ने इसका केवल एक साइड इफेक्ट बताया था, वो था कब्ज.
क्रिएटिव केमिस्ट
फेलिक्स होफमन को विश्व एस्पिरिन की खोज के लिए जानता है. लेकिन इसके अलावा उन्होंने एसिटिक एसिड के साथ प्रयोग करने के दौरान उससे हेरोइन बना डाली थी. यह एसिड को मॉर्फीन के साथ मिलाने से बनी थी. जर्मनी में 1971 तक हेरोइन वैध रही लेकिन उसके बाद से इसे अवैध दवाइयों की सूची में डाल दिया गया.
आंख के डॉक्टरों के लिए कोकेन
सन 1862 में डार्मश्टाड की दवा कंपनी मर्क ने बड़े पैमाने पर कोकेन बनाना शुरू किया. नेत्र विेशेषज्ञ इसका इस्तेमाल मरीज को बेहोश करने में करते. जर्मन केमिस्ट अल्बर्ट नीमन ने इसके पहले ही दक्षिण अमेरिकी में उगाये जाने वाले कोका की पत्तियों से कोकेन नाम का एल्केलॉइड अलग कर लिया था. कोकेन की खोज के कुछ ही समय बाद वे फेफड़ों की बीमारी से चल बसे.
तस्वीर: Merck Corporate History
यूफोरिया और जीवन शक्ति
ऑस्ट्रिया के न्यूरोलॉजिस्ट और "साइकोएनालिसिस के पिता" माने जाने वाले जिग्मंड फ्रॉयड ने कोकेन पर वैज्ञानिक स्टडी के लिए खुद ही नियमित रूप से कोकेन का सेवन किया. उन्होंने इसका कोई नुकसान नहीं बताया बल्कि उन्होंने पाया कि इससे "यूफोरिया, जीवन शक्ति और काम करने की क्षमता और बढ़ गयी." उस समय डॉक्टर सिरदर्द और पेट की परेशानियों में यह दवा देते थे.
तस्वीर: Hans Casparius/Hulton Archive/Getty Images
एमडीएमए पेटेंट
अमेरिकी केमिस्ट एलेक्जेंडर शुल्गिन को पार्टी ड्रग एक्सटेसी का जनक माना जाता है. लेकिन सच ये है कि बहुत पहले सन 1912 में ही इस कंपाउंड को दवा कंपनी मर्क ने विकसित किया और पेटेंट के लिए अर्जी भी डाली थी. यह एक रंगहीन तैलीय पदार्थ 3,4-मिथाइलीनडाईऑक्सीमेथएम्फीटेमीन या एमडीएमए था.
तस्वीर: picture-alliance/epa/Barbara Walton
मौत का साया
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक केवल 2013 में ही दुनिया भर में 1,90,000 लोग अवैध दवाओं के सेवन के कारण मारे गये. हालांकि यह भी सही है कि एक वैध ड्रग होते हुए भी इससे कहीं ज्यादा लोगों की जान अल्कोहल के सेववन से जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2012 में दुनिया के 5.9 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण अल्कोहल रहा, यानि करीब 33 लाख लोग. (निकोलास मार्टिन/आरपी)