1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मशीनों से बात करेंगी मशीनें

२८ फ़रवरी २०१३

कार ऐसी हो, जो बीमा कंपनी को बता सके कि आप कैसे ड्राइवर हैं, वजन नापने की मशीन वजन को कंप्यूटर में पहुंचा सके और मीटर ऐसा कि बिजली बिल बढ़ने पर एयर कंडीशन को सलाह दे सके. वायरलेस क्रांति के नए दौर में आपका स्वागत है.

तस्वीर: MEDICA, COMPAMED

वायरलेस का पहला दौर वह था, जब मोबाइल फोन आए. लोग बिना तारों वाले फोन से एक दूसरे से संपर्क कर पाए. लेकिन दूसरा दौर मशीन से मशीन के संवाद का आने वाला है. इसमें इंसान बीच में पड़ेगा ही नहीं. इस साल बार्सिलोना में चल रहे मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस में इन्ही सवालों पर चर्चा चल रही है.

वोडाफोन ग्रुप पीएलसी के सीईओ विट्टोरियो कोलाओ का कहना है, "मैं देख रहा हूं कि पूरा उद्योग बदल रहा है. कार से लेकर हेल्थ और लॉजिस्टिक्स, हर कुछ रीडिजाइन हो रहा है."

कंपनियों का मानना है कि एम2एम यानी मशीन टू मशीन तकनीक सभी तरह की सेवाएं दे सकें. आलम यहां ऐसा दिख रहा है कि कॉफी बनाने वाली मशीन को एक टैबलेट कंप्यूटर से आदेश दिया जा सकता है कि वह खास तरह की कॉफी बनाना शुरू कर दे. इंटरनेट से जुड़ी अलार्म घड़ी तो फीकी बात हो गई है. कोस्टा रीका के पूर्व राष्ट्रपति भी स्पेनी शहर बार्सिलोना के इस मेले में मौजूद थे. उनका कहना है कि एम2एम की मदद से पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है और खतरनाक गैसों के उत्सर्जन पर काबू पाया जा सकता है.

तस्वीर: Tania Grace Knuckey

क्या है एम2एम

एम2एम उस महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है, जिसके तहत मशीनों का एक वैश्विक नेटवर्क "इंटरनेट ऑफ थिंग्स" तैयार किया जाए, जिसमें न सिर्फ कंप्यूटर, टैबलेट और फोन जुड़े हों, बल्कि जिससे मोटर साइकिल, कार, वॉशिंग मशीन, सब कुछ जुड़ा हो. ब्रिटिश कंपनी मशीना रिसर्च का अनुमान है कि 2020 तक दुनिया भर में 12.5 अरब "स्मार्ट कनेक्शन" होंगे, जिनमें कंप्यूटर या टैबलेट शामिल नहीं है. अभी ऐसे कनेक्शन की संख्या करीब सवा अरब है.

लेकिन यह होगा कैसे और किसको इससे फायदा पहुंचेगा. सबसे पहले उपकरण ऐसे बनाने होंगे, जिन्हें कनेक्ट किया जा सके. इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि लोग अपनी वॉशिंग मशीन या महंगे टेलीविजन को हर साल अपडेट नहीं कर सकते हैं. सेलफोन और टैबलेट तो लोग बदल लेते हैं.

दूर से नियंत्रण

लॉस एंजिलिस की टेथरसेल नाम की कंपनी ने बैटरी से चलने वाले उपकरणों के लिए एक योजना बनाई है. इसने एक "नकली" डबल ए बैटरी बनाई है, जिसमें ट्रिपल ए साइज की बैटरी समा सकती है. यानी जिन उपकरणों में डबल ए बैटरी लगती है, उन्हें इस जैकेट वाली बैटरी से भी चलाया जा सकता है. इन्हें 80 फीट की दूरी से कंट्रोल किया जा सकता है और एक बटन दबा कर उन उपकरणों को ऑन या ऑफ किया जा सकता है, जिनमें ये बैटरियां लगी हैं. यानी अगर किसी का नटखट बच्चा बहुत आवाज वाले खिलौने से खेलता है, तो मां बाप चुपचाप दूसरे कमरे से उसके खिलौनों को खामोश कर सकते हैं.

इसी तरह आग बुझाने वाली मशीन अलार्म बजा सकती है कि उसकी बैटरी कमजोर हो रही है. मुश्किल यह है कि शुरुआत में यह काफी महंगी है, करीब 35 डॉलर. लेकिन कंपनी के सह संस्थापक केलन ओकोनर का कहना है कि दाम 10 डॉलर तक पहुंच सकते हैं. हालांकि यह भी सस्ता तो नहीं है.

आगे पढ़ें...

कारों पर नजर

हालांकि ज्यादा महंगी चीजें भी हैं, मिसाल के तौर पर कार. जनरल मोटर ने 1990 के दशक से ही कारों को वायरलेस से लैस करना शुरू कर दिया था. इस मेले में कंपनी ने एलान किया कि वह तेज डाटा ट्रांसफर के लिए अपने सिस्टम अपडेट कर रही है.

वोडाफोन के सीईओ कोलाओ ने एक उदाहरण दिया कि किस तरह स्मार्ट कारों को और स्मार्ट बनाया जा सकता है. वह ऐसा गैजेट बनाने की कोशिश कर रही है, जिससे बीमा कंपनियों को पता चल सके कि कार का कितना इस्तेमाल हो रहा है और इसके आधार पर प्रीमियम तय किए जाएं.

सस्ती और रोजमर्रा की छोटी चीजों को भी वायरलेस कनेक्शन से जोड़े जाने की कोशिश हो रही है. स्पेन में ईकूलट्रा नाम की कंपनी किराए पर इलेक्ट्रिक स्कूटर देती है. अब ग्राहक अपने फोन पर ही देख सकते हैं कि स्कूटर का रेंट क्या होगा और उसमें कितनी बैटरी बची हुई है. इसकी मदद से सवारी गाड़ियों को किराए पर देने वाली आम कंपनी एकदम से स्मार्ट कंपनी बन सकती है.

कैसे होगा तालमेल

एक बार उपकरण जुड़ गए तो अगला लक्ष्य होगा उनके आपसी तालमेल पर और इस बात पर ध्यान देने का कि वे क्या बात कर रहे हैं. एबीआई के शे का कहना है कि एम2एम में यह बिजनेस का बड़ा महान मौका है कि सिर्फ वायरलेस कनेक्शन न दिया जाए, बल्कि उपकरणों को आपस में जोड़ा जाए. एटीएंडटी जैसी कंपनियां इस पर जोर दे रही हैं.

टैबलेट कंप्यूटर से नियंत्रित होने वाली कॉफी मशीन जैसे घरेलू इस्तेमाल के उपकरणों को अभी बाजार में जगह बनानी है. फिलहाल उपकरणों को एक दूसरे से जोड़ने वाले माध्यमों की कमी है. सबसे ज्यादा इस्तेमाल ब्लूटूथ का होता है, जबकि डीएलएनए से भी यह संभव है.

क्वैलकॉम इन्नोवेशन सेंटर के रॉब चंढोक का कहना है, "आपको ऐसा स्पीकर बनाना ही होगा, जो आवाज देकर आपको चेतावनी दे सके और कह सके कि अरे सुनो, आपने अपने फ्रिज का दरवाजा बंद नहीं किया है." उनका कहना है कि आपको आसान उपकरणों को आपस में जोड़ने का विचार करना चाहिए.

क्या ऐसा तो नहीं कि एम2एम को लेकर ज्यादा ही ख्वाब देखे जा रहे हैं? एबीआई के शे का कहना है कि वायरलेस उद्योग काम करेगा लेकिन उतना चमकीला नहीं, जितना बताया जा रहा है. उनके मुताबिक जब मशीन से मशीन जुड़ेगी तो "सिर्फ इसलिए ताकि पैसे बचाए जा सकें."

एजेए/आईबी (एपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें