जर्मन मस्जिदों को विदेशी मदद भेजने वालों पर होगी नजर
२८ दिसम्बर २०१८
जर्मन सरकार ने देश की मस्जिदों को आर्थिक मदद देने वाले देशों से आग्रह किया है कि वे ऐसी किसी भी रकम के बारे में जर्मन अधिकारियों को बताएं. इस कदम से जर्मन मस्जिदों में कट्टरपंथ को रोकने में मदद मिलने की उम्मीद है.
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जर्मन विदेश मंत्रालय चाहता है कि सऊदी अरब, कतर, कुवैत और दूसरे खाड़ी देशों से अगर जर्मनी में मौजूद मस्जिदों को कोई मदद भेजी जाती है, तो इसका ब्यौरा दर्ज किया जाए.
जर्मन अखबार ज्यूडडॉयचे त्साइटुंग और जर्मनी के सरकारी प्रसारकों डब्ल्यूडीआर और एनडीआर की रिपोर्टों में कहा गया है कि सरकार ने घरेलू और विदेशी खुफिया सेवाओं से इस बात पर नजर रखने को कहा है कि कौन मदद भेज रहा है और वह किसको मिल रही है.
रिपोर्टों के मुताबिक इस निर्देश पर पहले ही अमल होना शुरू हो गया है. नवंबर में बर्लिन में हुई जर्मनी की इस्लाम कांफ्रेंस में जर्मन गृह मंत्री होर्स्ट जेहोफर ने कहा था कि वह जर्मनी की मस्जिदों में "विदेशी प्रभाव" को कम करेंगे.
बताया जा रहा है कि कुवैत के साथ सहयोग के अच्छे नतीजे मिलने शुरू भी हो गए हैं जबकि अन्य देश इस बारे में सहयोग करने से हिचक रहे हैं.
इस बीच, जर्मनी में मुसलमानों पर मस्जिद टैक्स लगाने की बातें भी चल रही हैं ताकि उससे मस्जिदों की फंडिग हो सके. जर्मनी समेत कई यूरोपीय देशों में ईसाईयों से चर्च टैक्स लिया जाता है, जिसके चर्चों की आर्थिक जरूरतें पूरी होती हैं. जानकारों का कहना है कि मुसलमानों पर इस तरह का मस्जिद टैक्स लगाने पर मस्जिदों पर विदेशी प्रभाव को घटाने में मदद मिलेगी.
जर्मनी के संयुक्त आतंकवाद विरोधी सेंटर (जीटीएजेड) की रिपोर्टों के आधार पर सरकार 2015 से जर्मनी में "अरब खाड़ी देशों से आए सलाफी मिशनरियों की गतिविधियों" की निगरानी कर रही है. 2015 में लाखों शरणार्थी जर्मनी आए थे.
जीटीएजेड का कहना है कि कट्टरपंथी इस्लामी समूहों को प्रभावित करना सऊदी अरब जैसे देशों की "दीर्घकालिक रणनीति" रही है. हालांकि सऊदी अरब इससे इनकार करता है. जर्मन खुफिया एजेंसियों का कहना है कि खाड़ी देशों से आने वाले "मिशनरी समूह" जर्मनी और यूरोप में सलाफियों से जुड़ रहे हैं.
जर्मन प्रसारकों की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे कोई विश्वसनीय आंकड़े मौजूद नहीं है, जिनसे पता चले कि खाड़ी देशों से जर्मनी में सक्रिय कट्टरपंथी समूहों को कितना धन भेजा गया है.
निकोल गोएबेल/एके
जर्मनी की सबसे बड़ी और सबसे विवादित मस्जिद
जर्मनी की सबसे बड़ी मस्जिद कोलोन शहर में है. कंट्रीट और कांच से तैयार इस मस्जिद को मेल मिलाप के प्रतीक के तौर पर बनाया गया था, लेकिन यह बड़े विवाद की जड़ बन गई है.
तस्वीर: DW/M. Odabasi
फूल की कली
मस्जिद के निर्माण में कांच का इस्तेमाल खुलेपन का संदेश देने के लिए किया गया है, ताकि सभी धर्मों के लोग यहां आ सकें. कांच और कंट्रीट से तैयार मस्जिद का गुंबद किसी फूल की कली जैसा लगता है. मस्जिद परिसर में 55 मीटर ऊंची दो मीनारें भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/R. Hackenberg
अलग अलग संस्कृतियां
मस्जिद कोलोन शहर के एरेनफेल्ड इलाके में है. यह इलाका कभी कामगार तबके के लोगों का गढ़ था. लेकिन अब इस इलाके में नामी गिरामी कलाकार रहते हैं. यहां कई मशहूर गैलरियां और थिएटर हैं. यहां रहने वाले 35 प्रतिशत लोग विदेशी मूल के हैं.
तस्वीर: DW/M. Hussein
प्रभावशाली प्लान
मस्जिद के निर्माण में बहुत सारे मुस्लिम संगठनों ने मदद दी. इसके अलावा जर्मनी में तुर्क सरकार के धार्मिक मामलों के संगठन डिटिब से भी मदद मिली. कोलोन की नगरपालिका ने 2008 में इसे मंजूरी दी, हालांकि चांसलर मैर्केल की सीडीयू इसके खिलाफ थी.
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हट गए आर्किटेक्ट
के निर्माण का कॉन्ट्रैक्ट 2005 में जर्मन आर्किटेक्ट पॉल बोएम को मिला, जिन्हें चर्चों के निर्माण में महारथ है. उन्होंने इस इमारत को सहिष्णुता का प्रतीक समझा. लेकिन बाद में डिटिब के साथ उनके मतभेद हो गए और 2011 में वह इस प्रोजेक्ट से हट गए.
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2017 में खुले दरवाजे
मस्जिद के दरवाजे नमाजियों के लिए पहली बार 2017 में रमजान के महीने में खोले गए. लेकिन इसका आधिकारिक उद्घाटन तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने सितंबर 2018 में किया. हालांकि इस मौके पर शहर में एर्दोवान के विरोध और समर्थन में बड़ी रैलियां हुईं.
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1,200 नमाजियों के लिए जगह
मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए ग्राउंड के अलावा एक अपर फ्लोर भी है. यहां पर एक समय में 1,200 लोग नमाज पढ़ सकते हैं. यहां पर एक इस्लामी लाइब्रेरी भी है. यहां कई दुकानें और स्पोर्ट्स सेंटर भी हैं ताकि विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच आपसी संवाद को बढ़ाया जा सके.
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नई स्काईलाइन
शुरू में कई लोगों ने मस्जिद के निर्माण का विरोध किया था. उन्हें डर था ऊंची ऊंची मीनारों से "ईसाई शहर" कोलोन की स्काईलाइन बदल जाएगी. उस वक्त कोलोन के आर्कबिशप कार्डिनल योआखिम माइसनर ने भी इस प्रोजेक्ट को लेकर अपनी "असहजता" जाहिर की थी.
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मस्जिद का विरोध
धुर दक्षिणपंथियों ने इस मुद्दे को लपका और जर्मनी में मुसलमानों के घुलने मिलने को लेकर एक नई बहस छेड़ दी. लेखक राल्फ जोरडानो ने कहा कि यह मस्जिद "जर्मनी में तेजी से फैलते इस्लामीकरण की एक अभिव्यक्ति" होगी. मस्जिद के खिलाफ कई बड़े प्रदर्शन हुए.
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इमाम या जासूस?
2017 में जर्मन अधिकारियों ने डिटिब के इमामों की गतिविधियों को लेकर जांच शुरू की. तुर्की में शिक्षित इमाम तुर्की की सरकार के कर्मचारी होते हैं. मस्जिद के कर्मचारियों पर संदेह था कि वे तुर्की की सरकार को जर्मनी में रहने वाले तुर्कों के बारे में जानकारी देते हैं.