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मस्तिष्क से चलेंगे हथियार

९ फ़रवरी २०१२

ऊर्जा हथियार जो तरंगों से दर्द पैदा करे या फिर इलेक्ट्रिक स्टिम्यूलेशन जिनसे सैनिकों के लड़ने की क्षमता बढ़ जाए. यह बात फिलहाल तो कपोल कल्पना लगती हो लेकिन न्यूरो साइंस के जरिए जल्द ही यह संभव हो सकता है.

तस्वीर: Fotolia/Andrea Danti

मस्तिष्क की गतिविधि नापने में हो रही तेज प्रगति और दवाइयों के असर को आंकने की बढ़ती क्षमता के कारण आने वाले दिनों में सेना का चेहरा बदल सकता है. शोधकर्ता सैन्य विवादों में तंत्रिका विज्ञान की भागीदारी के बारे में काम कर रहे हैं लेकिन जानकारों का कहना है कि मेडिकल साइंस को यह ध्यान रखने की जरूरत है कि उनके इन शोधों का गलत इस्तेमाल भी हो सकता है.

लंदन की क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी में बायोकेमिकल फार्मेकोलॉजी प्रोफेसर रॉड फ्लावर कहते हैं, "हम जानते हैं कि न्यूरो साइंस शोध से सामाज को बहुत फायदा हो सकता है. शोधकर्ता हर दिन पार्किंसन्स, विषाद, स्क्रित्सोफ्रेनिया, लकवा और लत जैसी बीमारियों के इलाज के नजदीक पहुंच रहे हैं. लेकिन एक ओर दिमाग और मानवीय व्यवहार की समझ बढ़ रही है और दूसरी तरफ बेहतर दवाइयां भी बन पा रही हैं. इस सबसे मनुष्य का प्रभुत्व कम हो रहा है और कुल मिला कर यह इंसानों के खिलाफ जा रहा है."

ब्रिटेन की नेशनल अकादमी ऑफ साइंस की रिपोर्ट में यह बात लिखी गई है. इस रिपोर्ट को तंत्रिका विज्ञान, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, मनोविज्ञान और नैतिकता के जानकारों ने मिल कर तैयार किया है.

इस रिपोर्ट से विवाद और सुरक्षा में तंत्रिका विज्ञान का मुद्दा दो हिस्सों में बंट गया. सेना की क्षमता बढ़ाना और दुश्मन की क्षमता तो कम या खत्म करना.

नई तकनीक

अगर क्षमता बढ़ाने की बात की जाए तो इस रिपोर्ट में न्यूरल इंटरफेस तकनीक की बात की गई है. ऐसी तकनीकों के जरिए ड्रोन विमान सीधे मनुष्य के दिमाग से संचालित हो सकेंगे. साथ ही सैनिकों की भर्ती के लिए भी न्यूरो इमेजिंग का सहारा लिया जा सकेगा ताकि विशेष गुणों पर ध्यान दिया जा सके. रिपोर्ट में लिखा गया है, "ऐसी दवाइयों को बनाने पर गहन काम किया जा रहा है जो तैनात सैनिक की सतर्कता, ध्यान और याददाश्त को बढ़ाती हों."

जानकार कहते हैं कि किसी एक खास काम के लिए क्षमताएं देखनी हों तो सैन्य कमांडरों के लिए दिमाग स्क्रीन करना अच्छा हो सकता है. ब्रेन मैपिंग में पता लग सकता है कि एक व्यक्ति सामान्य परिस्थिति में अच्छे फैसले ले सकता है तो कोई दूसरा तनाव की स्थिति में निर्णय लेने में सक्षम हो सकता है. इस कारण सेना में चुनाव के समय ही गुण देख लिए जा सकेंगे.

तस्वीर: picture-alliance/ZB

रिपोर्ट लिखने वालों में एक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की इरेने ट्रेसी कहती हैं कि न्यूरल इंटरफेस तकनीक अभी परीक्षण की स्थिति में है. "आप सोच सकते हैं कि मनुष्य का सेना के लिए कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है. सैनिकों के पुनर्वास के लिए भी और रिमोट जैसे उपकरणों के नियंत्रण के लिए भी. इसमें से कुछ अभी सपना ही है लेकिन जिस गति से तकनीक विकसित हो रही है यह साकार हो सकता है."

दिमाग और मशीन

फ्लावर ने उदाहरण दिया, "मनुष्य भविष्य में ब्रेन इम्प्लांट तकनीक से हवाई जहाज नियंत्रित कर सकेगा. यह एक नैतिक सवाल है. इस विचार से दिमाग और मशीन के बीच का अंतर धुंधला हो जाता है जिसे साफ करना जरूरी है. अगर हम ऐसी स्थिति में आ जाएं जहां हम मशीनों को नियंत्रित कर सकेंगे और इन मशीनों ने समझो युद्ध अपराध किए हों तो जिम्मेदार कौन होगा. आप या मशीन."

रिपोर्ट में एनर्जी वेपन्स (ऊर्जा हथियार) की भी चर्चा की गई है. इनमें एक है एक्टिव डिनायल सिस्टम, एडीएस. इसमें मिलिमीटर तरंग को त्वचा गर्म करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे दर्दनाक जलन होगी. हालांकि इन रिसर्च को अमल में लाने में अभी काफी वक्त लगेगा.

रिपोर्टः रॉयटर्स/आभा एम

संपादनः ए जमाल

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