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महंगाई और धीमे विकास से निपटे भारतः आईएमएफ

१८ अप्रैल २०१२

भारत की बढ़ती महंगाई और विकास पर उसके असर से दुनिया के देश चिंतित हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने तो बकायदा भारत से आग्रह किया है कि वो आर्थिक विकास को तेज करने और महंगाई को घटाने के लिए ब्याज दरों को स्थिर रखे.

तस्वीर: picture alliance/dpa

एक दिन पहले ही भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में 50 बेसिक प्वाइंट की कटौती का एलान किया जिससे कि अर्थव्यवस्था में तेजी लाई जा सके. महंगाई, ढांचागत बदलाव, नीतियां और भ्रष्टाचार इनमें से भारत की अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा कौन प्रभावित कर रहा है, इस पर जानकारों की अलग अलग राय है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर हुई सालाना चर्चा में माना है कि सरकार के लिए विकास को वापस पटरी पर लाना और महंगाई को नीचे करना सबसे बड़ी चुनौती है.

आईएमएफ के कुछ निदेशक भारत के विकास दर में आई कमी की वजह ब्याज दरों को नहीं मानते. उनकी दलील है कि भारत के आर्थिक ढांचे से जुड़े कारकों के लिए ब्याज दरों को जिम्मेदार मानना मुश्किल है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2012 और 2013 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर सात फीसदी रहने का अनुमान जताया है, जो पिछले दो साल के 8.4 फीसदी से कम है.

तस्वीर: REUTERS

आईएमएफ का कहना है कि महंगाई आने वाले दिनों में घटेगी लेकिन फिर भी भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्यों से यह ऊपर ही रहेगी. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "घरेलू स्तर पर प्रमुख समस्या यह है कि अगर सरकार की मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज नहीं होती, सुधारों को लागू नहीं किया जाता, महंगाई की दर ऊंची और स्थिर बनी रहती है तो निजी निवेश जो पहले से ही कमजोर हो रहा है वह और ज्यादा कमजोर होगा."

पूरी दुनिया को कर्ज देने वाली संस्था आईएमएफ का मानना है कि आर्थिक सुधार और वित्तीय एकीकरण, विकास के रास्ते की रुकावटों से निपटने के लिए जरूरी हैं और इसी से महंगाई भी घटेगी. बयान में यह भी कहा गया है कि भारत को बुनियादी ढांचे के विकास, लचीला मजदूर बाजार और सबको कर्ज मिल सके ऐसी व्यवस्था बनानी होगी तभी देश के विकास की क्षमता बनी रहेगी और उसका तरीके से इस्तेमाल हो सकेगा.

दुनिया भर के देशों में जब मंदी का दौर चल रहा है तब चीन और भारत ही दुनिया की उम्मीद हैं. ऐसे में अगर भारत की अर्थव्यवस्था अपनी पूरी क्षमता से आगे नहीं बढ़ती तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैरानी स्वाभाविक है. बीते साल में भ्रष्टाचार और महंगाई ने आर्थिक दुनिया पर निगाह रखने वालों की चिंता बढ़ा दी है.

एनआर/एमजे(रॉयटर्स)

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